14.7.15

अलसी (flax seeds)के स्वास्थ्य लाभ


श्रेष्ठ भोज्य पदार्थ अलसी में ओमेगा 3 फेटी एसिड व सबसे अधिक फाइबर होता है। इसे देव भोजन कहा गया है| यह कई रोगों के उपचार में लाभप्रद है। अब निम्न पंक्तियों मे यह बताया जाएगा कि अलग अलग रोगों मे अलसी का उपयोग कैसे किया जा सकता है-
 खाँसी होेने पर अलसी की चाय पीएं। पानी को उबालकर उसमें अलसी पाउडर मिलाकर चाय तैयार करें।एक चम्मच अलसी पावडर को दो कप (360 मिलीलीटर) पानी में तब तक धीमी आँच पर पकाएँ जब तक यह पानी एक कप न रह जाए। थोड़ा ठंडा होने पर शहद, गुड़ या शकर मिलाकर पीएँ। सर्दी, खाँसी, जुकाम, दमा आदि में यह चाय दिन में दो-तीन बार सेवन की जा सकती है। दमा रोगी एक चम्मच अलसी का पाउडर केा आधा गिलास पानी में 12 घंटे तक भिगो दे और उसका सुबह-शाम छानकर सेवन करे तो काफी लाभ होता है। गिलास काँच या चाँदी को होना चहिए।

3. समान मात्रा में अलसी पाउडर, शहद, खोपरा चूरा, मिल्क पाउडर व सूखे मेवे मिलाकर
औषधि तैयार करें। कमजोरी में व बच्चों के स्वास्थ्य के लिए उपकारी है


4 डायबीटिज के मरीज को आटा गुन्धते वक्त प्रति व्यक्ति 25 ग्राम अलसी काॅफी ग्राईन्डर में ताजा पीसकर आटे में मिलाकर इसका सेवन करना चाहिए। अलसी मिलाकर रोटियाँ बनाकर खाई जा सकती हैं। अलसी एक जीरो-कार फूड है अर्थात् इसमें कार्बोहाइट्रेट अधिक होता है।शक्कर की मात्रा न्यूनतम है।
5 कैंसर रोगियों को ठंडी विधि से निकला तीन चम्मच तेल, छः चम्मच पनीर में मिलाकर उसमें सूखे मेवे मिलाकर देने चाहिए। कैंसर रोगियों को ठंडी विधि से निकले तेल की मालिश भी करनी चाहिए।
6 साफ बीनी हुई और पोंछी हुई अलसी को धीमी आंच पर तिल की तरह भून लें। इसमें सेंधा नमक भी मिलाया जा सकता है। ज्यादा पुरानी भुनी हुई अलसी का प्रयोग कदापि न करें
7 बेसन में 25 प्रतिशत अलसी मिलाकर व्यंजन बनाएं। बाटी बनाते वक्त भी उसमें भी अलसी पाउडर मिलाया जा सकता है। सब्जी की ग्रेवी में भी अलसी पाउडर का प्रयोग करें।
8 अलसी सेवन के दौरान खूब पानी पीना चाहिए। इसमें पर्याप्त रेशा होता है जिसे ज्यादा पानी की जरूरत होती है|

     इस लेख के माध्यम से दी गयी जानकारी आपको अच्छी और लाभकारी लगी हो तो कृपया लाईक,comment  और शेयर जरूर कीजियेगा । आपके एक शेयर से किसी जरूरतमंद तक सही जानकारी पहुँच सकती है और हमको भी आपके लिये और बेहतर लेख लिखने की प्रेरणा मिलती है|




















29.5.15

गठिया,संधिवात के अनुभूत आयुर्वेदिक घरेलू उपचार // Gout, Arthritis Treatment


 

  
जिसकी अग्नि मंद है और नियमित व्यायाम नहीं करने वाला अगर विरुद्ध आहार करता है या अति स्निग्ध अन्न का सेवन कर तुरंत व्यायाम करता है उसे आम वात उत्पन्न होता है। अंग्रेजी में इसे (Rheumatism)रह्युमेटोईड अर्थराइटिस कहा जाता है।
इसे साधारण बोलचाल की भाषा में गठिया भी कहते है।भूख कम होने पर भी जीभ के वश हो कर खाया गया अन्न पचता नहीं और आँव स्वरूप हो जाता है जिसे आयुर्वेद में “आम” कहा गया है।यह आम प्रकुपित हुए वात दोष के द्वारा सम्पूर्ण शरीर में घुमने लगता है।
जब चलने-फिरने में तकलीफ होने लगे तो मन में तुरंत एक बीमारी का नाम आता है और वह है गठिया। यूं तो यह बीमारी आम-सी हो गई है, लेकिन इसका दर्द कई बार जीना मुहाल कर देता है। इससे बचाव के लिए क्या करें, क्या न करें-
शारीरिक रूप से स्वस्थ रहना बहुत जरूरी है। अपने सारे काम हम शरीर से ही तो करते हैं, लेकिन कई बार कुछ बीमारियों के कारण हम परेशान भी हो जाते हैं। उन्हीं में से एक बीमारी है गठिया। इसमें शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है, जिसकी वजह से जोड़ों में सूजन आ जाती है। ऐसे में पीडित दर्द के कारण ज्यादा चल नहीं सकता, दौड़ नहीं सकता, यहां तक कि हिलने-डुलने में भी परेशानी होने लगती है। पैरों के अंगूठे में इसका असर सबसे पहले देखने को मिलता है। अंगूठे बुरी तरह से सूज जाते हैं और तब तक ठीक नहीं होते, जब तक कि उनका इलाज न करवाया जाए। कई बार तो उंगलियों के जोड़ों में यूरिक एसिड के क्रिस्टल जमा हो जाते है, जिससे उंगलियों के जोड़ों में बहुत दर्द होता है। इस रोग की सबसे बड़ी पहचान ये है कि रात को जोड़ों का दर्द बढ़ता है और सुबह थकान महसूस होती है। इसका उपचार अगर जल्दी न कराया गया तो यह बीमारी भयंकर रूप ले सकती है। इसलिए हम आपको बता रहे हैं कि इसमें किन चीजों से परेहज करें और किन चीजों को डाइट में शामिल करें।

अल्कोहल और सॉफ्ट ड्रिंक के सेवन से बचें: वैसे तो गठिया से पीडित व्यक्तियों को ढेर सारा पानी पीने और तरल पदार्थों का सेवन करने को कहा जाता है, लेकिन अगर वे अल्कोहल और सॉफ्ट ड्रिंक का सेवन करते हैं तो उनकी समस्या और भी बढ़ सकती है। अल्कोहल खासकर बीयर शरीर में यूरिक एसिड के लेवल को तो बढ़ाता ही है और तो और शरीर से गैर जरूरी तत्व निकालने में शरीर को रोकता है। अगर आप बीयर पीने के आदी हैं तो डॉंक्टर की सलाह लेकर एक या दो ड्रिंक ले सकते हैं। उसी तरह सॉफ्ट ड्रिंक खासकर मीठे पेय या सोडा से बचें, क्योंकि इसमें फ्रेक्टोस नामक तत्व होता है, जो यूरिक एसिड के बढ़ने में मदद करता है।

एक शोध से यह बात सामने आई है कि जो लोग ज्यादा मात्रा में फ्रेक्टोस वाली चीजों का सेवन करते हैं, उनमें गठिया होने का खतरा दोगुना हो जाता है।

मछली और मीट से परहेज करें:

खाने-पीने के शौकीन लोगों को अपने पसंदीदा खाने को छोड़ना पड़े तो उन्हें बहुत मुश्किल होती है। उन्हें भी और उनके परिवार वालों को भी। लेकिन बात जब अपनों की सेहत से जुड़ी हो तो थोड़ा ख्याल तो रखना ही पड़ता है। जब आपको गठिया हो तो उन खाद्य पदार्थों को खाने से बचना चाहिए, जिनमें अधिक मात्रा में प्यूरिन पाया जाता हो, क्योंकि ज्यादा प्यूरिन हमारे शरीर में ज्यादा यूरिक एसिड पैदा करता है। रेड मीट, हिलसा मछली, टूना, और एन्कोवी जैसी मछलियों में काफी मात्रा में प्यूरिन पाया जाता है, इसलिए इन्हें अपने खाने की मेन्यू से हटा दें।
परहेज - जितनी भी खाने-पीने की चीजें हमें कुदरत ने दी हैं, वे किसी बीमारी में फायदा करती हैं तो किसी में नुकसान भी करती हैं, इसलिए हमें उनका चुनाव अपने शरीर के हिसाब से करना होगा। उदाहरण के तौर पर लें तो शतावरी, पत्तागोभी, पालक, मशरूम, टमाटर, सोयाबीन तेल जैसी चीजें हमारे स्वस्थ खानपान का हिस्सा हैं, लेकिन गठिया से पीडित व्यक्तियों को इनसे परहेज करना चाहिए। जैसे कि 99 ग्राम पालक में 100 मिलीग्राम प्यूरिन पाया जाता है।

पथ्य -

गाजर, शकरकंद और अदरक का सूप पिएं:

गठिया परेशान कर रही है तो जड़ों वाले फल और सब्जियां जैसे गाजर, आलू, शकरकंद या दूसरे फल खाएं। आप अदरक का सूप भी पी सकते हैं। इनमें प्यूरिन की मात्रा काफी कम होती है।
योग के कतिपय रूप गठिया रोग में अत्यंत लाभकारी हो सकते हैं जो निम्न चित्र में दिखाए गये हैं-



















संधिवात में निम्न योगा लाभकारी सिद्ध हुए हैं-






वीर भद्रासन










भुजंगासन











पवन मुक्तासन








बालासन


विशिष्ट परामर्श-  


संधिवात,कमरदर्द,गठियासाईटिका ,घुटनो का दर्द आदि वात जन्य रोगों में जड़ी - बूटी निर्मित हर्बल औषधि ही अधिकतम प्रभावकारी सिद्ध होती है| रोग को जड़ से निर्मूलन करती है| औषधि से बिस्तर पकड़े पुराने रोगी भी दर्द मुक्त गतिशीलता हासिल करते हैं| बड़े अस्पतालों के महंगे इलाज़ के बावजूद निराश रोगी इस औषधि से आरोग्य हुए हैं|  त्वरित असर औषधि के लिए वैध्य श्री दामोदर से 98267-95656 पर संपर्क कर सकते हैं|












9.3.15

टी.बी (क्षय रोग). निवारक आयुर्वेदिक,घरेलू उपाय //TB (tuberculosis) :simple treatment


यक्ष्मा रोग बेहद संक्रामक श्वसन पथ का रोग है इसे तपेदिक अथवा क्षय रोग के नाम से भी जाना जाता है| यह mycobacterium tuberculosis नामक बेक्टीरिया से उत्पन्न होने वाला रोग है| वैसे तो यह रोग फेफड़े पर हमला करता है लेकिन रक्त संचरण के जरिये यह रोग शरीर के अन्य अंगों को भी अपनी लपेट में ले सकता है| रोगी के निरंतर संपर्क में रहने वाले व्यक्ति को भी यह रोग आक्रान्त कर सकता है| जिसकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है वह सहज ही रोग की चपेट में आ सकता है|
लक्षणों की बात करें तो थकावट इसका प्रमुख लक्षण है| खांसी बनी रहती है| बीमारी ज्यादा बढ़ जाने पर बलगन में खून के रेशे भी आते हैं| सांस लेने में दिक्कत आने लगती है| छोटी सांस इसका एक लक्षण है| बुखार बना रहता है या बार बार आता रहता है| वजन कम होंने लगता है| रात को अधिक पसीना आता है|छाती ,गुर्दे और पीठ में दर्द की अनुभूति होती है| टीबी के लिए उचित आधुनिक चिकित्सा जरूरी है.
मैं इस रोग में उपयोगी पांच उपचार दे रहा हूँ |ये सहायक उपचार हैं और रोग को काबू में लेने के लिए लाभदायक हैं-
१) लहसुन- में सल्फुरिक एसिड होता है जो टीबी के जीवाणु को खत्म करता है|
लहसुन का एलीसिन तत्व टीबी के जीवाणु की ग्रोथ को बाधित करता है| एक कप दूध में ४ कप पानी मिलाएं\ इसमें ५ लहसुन की कुली पीसकर डालें और उबालें जब तरल चौथाई भाग शेष रहे तो आंच से उतार् लें और ठंडा होने पर पीलें| ऐसा दिन में तीन बार करना है|

   दूसरा उपचार यह कि एक गिलास गरम दूध में लहसुन के रस की दस बूँदें डालें| रात को सोते वक्त पीएं|
२) केला - पौषक तात्वि, से परिपूर्ण फल है| केला शरीर के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है\ एक पका कला लें|मसलकर इसमें एक कप नारियल पानी ,आधा कप दही और एक चम्मच शहद मिलाएं| दिन में दो बार लेना कर्त्तव्य है|
कच्चे केले का जूस एक गिलास मात्रा में रोज सेवन करें|



३) सहजन की फली - सहजन की फली में जीवाणु नाशक और सूजन नाशक तत्व होते हैं| टीबी के जीवाणु से लड़ने में मदद करता है| मुट्ठी भर सहजन के पत्ते एक गिलास पानी में उबालें | नमक,काली मिर्च और निम्बू का रस मिलाएं| रोज सुबह खाली पेट सेवन करें| सहजन की फलियाँ उबालकर लेने से फेफड़े को जीवाणु मुक्त करने में सहायता मिलती है|

४) आंवला अपने सूजन विरोधी एवं जीवाणु नाशक गुणों के लिए प्रसिद्ध है| आंवला के पौषक तत्त्व शरीर की प्रक्रियाओं को सुचारू चलाने की ताकत देते है| चार या पांच आंवले के बीज रहित कर लें जूसर में जूस निकालें| यह जूस सुबह खाली पेट लेना टीबी रोगी के लिए अमृत तुल्य है\ कच्चा आंवला या चूर्ण भी लाभदायक है|
५) संतरा - फेफड़े पर संतरे का क्षारीय प्रभाव लाभकारी है| यह इम्यून सिस्टम को बल देने वाला है| कफ सारक है याने कफ को आसानी से बाहर निकालने में सहायता कारक है| एक गिलास संतरे के रस में चुटकी भर नमक ,एक बड़ा चम्मच शहद अच्छी तरह मिलाएं\ सुबह और शाम पीएं|
६) तपेदिक का योग - आक का दूध १ तोला (10 ग्राम ), हल्दी बढ़िया १५ तोले(150 ग्राम ) - दोनों को एक
साथ खूब खरल करें । खरल करते करते बारीक चूर्ण बन जायेगा । मात्रा - दो रत्ती से चार रत्ती(1/4 ग्राम से
1/2 ग्राम तक )तक मधु (शहद) के साथ दिन में तीन-चार बार रोगी को देवें । तपेदिक के साथी ज्वर खांसी,
फेफड़ों से कफ में रक्त (खून) आदि आना सब एक दो मास के सेवन से नष्ट हो जाते हैं और रोगी भला चंगा
हो जाता है|
इस औषध से वे निराश हताश रोगी भी अच्छे स्वस्थ हो जाते हैं जिन्हें डाक्टर अस्पताल से
असाध्य कहकर निकाल देते हैं । बहुत ही अच्छी औषध है
७) प्रयोग शाला में किए गए अध्ययनों में यह बात सामने आई कि विटामिन सी शरीर में कुछ ऐसे तत्वों के उत्पादन को सक्रिय करता है जो टीबी को खत्म करती हैं.
 ये तत्व फ्री रैडिकल्स के नाम से जाने जाते हैं और यह t b के उस स्वरूप में भी कारगर होता है जब पारंपरिक antibiotics दवाएं भी नाकाम हो जाती हैं.विटामिन सी की ५०० एम जी की एक गोली दिन में तीन बार लेना चाहिये|








12.12.14

फाईबर युक्त भोजन से वजन कम करें // weight reducing fiber diet .

    दिनों दिन बढ़ता वजन न सिर्फ आपको मोटापे का शिकार बना सकता है बल्कि यह आपके लिए कई गंभीर रोगों की वजह हो सकता है। ऐसे में आप चाहकर भी अपना वजन कम नहीं कर पा रहे हैं तो डाइट में फाइबर युक्त चीजों की मात्रा बढ़ा लेने से वजन घटाने में आपको बहुत मदद मिलेगी।
न्यूट्रिशन जर्नल में प्रकाशित शोध की मानें तो जिन लोगों ने दो सालों तक 1000 कैलोरी के भोजन में रोज आठ ग्राम फाइबर युक्त डाइट ली है, उनका वजन साढ़े चार पाउंड से कम हुआ है। यानी फाइबर युक्त डाइट के सेवन से वजन पर नियंत्रण आसान है क्योंकि यह फैट्स पचाने में मदद करता है।
को पचने में सहायता करता है, कब्ज से बचाता है और पेट साफ करने में मदद करता है।शरीर के अंदर दूषित पदार्थों को भोजन से दूर करता है।
कोलेस्ट्रॉल को कम करता है और दिल की बीमारी के खतरे को रोकता है।
रक्त में शुगर की मात्रा को नियंत्रित करता है।
शरीर का भार नियंत्रित करने में सहायक होता है।
खाने की मात्रा बढ़ाता है और बिना कैलोरी बढ़ाए पेट भरता है।
अनेक बीमारियों से बचाता है
हम जानते हैं कि डायबिटीज और कोलेस्ट्रॉल जैसी बीमारियां भारत में तेजी से फैल रही हैं। अपना खान-पान ठीक कर हम इनसे काफी हद तक बचाव कर सकते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक हमारे देश में मधुमेह, हृदय रोग तथा कैंसर जैसी बीमारियां सही खान-पान न होने के कारण तेजी से पांव पसार रही हैं, जबकि इन बीमारियों से बचना मुश्किल काम नहीं है।
किन-किन पदार्थों में पाया जाता है |
फाइबर चोकर सहित गेहूं के आटे, हरी पत्तेदार सब्जियों, सेब, पपीता, अंगूर, खीरा, टमाटर, प्याज, छिलके वाली दालों, सलाद, शकरकंद, ईसबगोल की भूसी, दलिया, बेसन और सूजी जैसे खाद्य पदार्थो में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। यदि हम इन्हें अपने भोजन का जरूरी हिस्सा बना लें तो शरीर में फाइबर की पूर्ति आसानी से की जा सकती है।
एक मध्यम आकार के सेब में करीब चार ग्राम फाइबर होता है। इसके अलावा, इसमें विटामिन सी और पोटाशियम भी अच्छी मात्रा में होता है।
एक कप हरी बीन्स में चार ग्राम फाइबर मिलता है। इसके अलावा बीन्स में विटामिन सी अच्छी मात्रा में है जो आपकी त्वचा के लिए भी फायदेमंद है।
चना-

काबुली चने के तीन चौथाई कप में आपको आठ ग्राम फाइबर मिलेगा। इसके अलावा, इसमें विटामिन बी6 और फोलेट अच्छी मात्रा में हैं जो शरीर में नई कोशिकाओं के बनने में मदद करते हैं और फर्टिलिटी भी बढ़ाते हैं।
कद्दू-एक कटोरी कद्दू की सब्जी में तीन ग्राम फाइबर होता है। इसके अलावा, इसमें विटामिन ए, विटामिन सी, ई और पोटैशियम जैसे तत्व भी अच्छी मात्रा में है।



भोजन पौष्टिक हो यह तो जरूरी है ही, वह फाइबर से युक्त हो, यह भी बहुत जरूरी है। इससे हमारा पाचन तंत्र ठीक रहता है और शरीर भी ठीक तरह से काम करता है। फाइबर हम सभी के लिए जरूरी है। इसकी मात्रा उम्र पर निर्भर करती है। 50 साल तक की उम्र की महिलाओं के लिए रोजाना लगभग 25 ग्राम और इसी उम्र के पुरुषों के लिए 38 ग्राम फाइबर की जरूरत होती है। 50 साल से अधिक आयु वर्ग की महिलाओं के लिए लगभग 21 ग्राम और पुरुषों के लिए 30 ग्राम फाइबर की आवश्यकता होती है। यह जरूरत उम्र और लिंग के अनुसार बदलती रहती है।

फाइबर के फायदे-

फाइबर खाद्य पदार्थों के छिलकों और उनके रेशों में पाया जाने वाला उपयोगी तत्व है। वास्तव में यह एक न हजम होने वाला खाने का हिस्सा होता है, लेकिन यह हमारे शरीर के लिए बेहद उपयोगी होता है। इसे रफेज के नाम से भी जाना जाता है। यह पाचन क्रिया को बढ़ाता है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी विकसित करता है। फाइबर दो तरह के होते हैं, एक पानी में घुलनशील फाइबर और दूसरा पानी में न घुलने वाला। जो फाइबर पानी में घुल जाते हैं, वे हैं हरी सब्जियां, जड़वाली सब्जियां, मक्का, गेहूं आदि। इसी तरह सेब, संतरा, ओट्स, बीन्स तथा स्प्राउट्स पानी में न घुलने वाले फाइबर हैं।
फाइबर की कमी से होने वाली बीमारियां-
फाइबर की उचित मात्रा न मिल पाने से शरीर मोटापे का शिकार हो जाता है। मुंह में छाले हो जाना आम बात है। कब्ज, गैस, पेट से संबंधित अन्य बीमारियां जैसे अल्सर आदि से जूझना पड़ सकता है। इसके अलावा आंतों का कैंसर, बवासीर, दिल की बीमारियां भी हो सकती हैं।
कमी की पूर्ति कैसे करें-
अपने नाश्ते में ओट्स, केला और दलिया शामिल करें। दिन में भूख लगने पर स्नैक्स की जगह फ्रूट्स के स्नैक्स को प्राथमिकता दें। इस तरह रात के खाने में छिलके वाली दालें, सलाद और फलों को चुनें। फल या सब्जी का जूस लेने के बजाए उसे साबूत ही खाएं तो ज्यादा अच्छा है।
     इस पोस्ट में दी गयी जानकारी आपको अच्छी और लाभकारी लगी हो तो कृपया लाईक और शेयर जरूर कीजियेगा । आपके एक शेयर से किसी जरूरतमंद तक सही जानकारी पहुँच सकती है और हमको भी आपके लिये और अच्छे लेख लिखने की प्रेरणा मिलती है|







11.12.14

नसों के ब्लाकेज हटाकर हृदय की सुरक्षा पीपल के पत्ते से //Protection of the heart with leaves of Peeple tree




    धमनियों में कोलेस्ट्रोल जम जाने से रक्त परिसंचरण में रुकावट पड़ने से हार्ट अटेक| ,ब्रेन स्ट्रोक ,लकवा
जैसे रोगों में पीपल के पत्ते के प्रयोग से 85 प्रतिशत ब्लॉकेज दूर किये जा सकते हैं| .
विधि: पीपल के 10 पत्ते लें जो कोमल गुलाबी कोंपलें न हों,बल्कि पत्ते हरे, कोमल व भली प्रकार विकसित हों। प्रत्येक का ऊपर व नीचे का कुछ भाग कैंची से काटकर अलग कर दें।
पत्ते का बीच का भाग पानी से साफ कर लें। इन्हें एक गिलास पानी में धीमी आँच पर पकने दें। जब पानी
उबलकर एक तिहाई रह जाए तब ठंडा होने पर साफ कपड़े से छान लें और उसे ठंडे स्थान पर रख दें,
इस काढ़े की तीन खुराकें बनाकर प्रत्येक तीन घंटे बाद लें। हार्ट अटैक के बाद कुछ समय हो जाने के
पश्चात लगातार पंद्रह दिन तक इसे लेने से हृदय पुनः स्वस्थ हो जाता है और फिर दिल का दौरा पड़ने की
संभावना नहीं रहती।




* पीपल के पत्ते में दिल को बल और शांति देने की अद्भुत क्षमता है।
* इस पीपल के काढ़े की तीन खुराकें सवेरे 8 बजे, 11 बजे व 2 बजे ली जा सकती हैं।
* खुराक लेने से पहले पेट एक दम खाली नहीं होना चाहिए, बल्कि सुपाच्य व हल्का नाश्ता करने के बाद ही लें।
* प्रयोगकाल में तली चीजें, चावल आदि न लें। मांस, मछली, अंडे, शराब, धूम्रपान का प्रयोग बंद कर दें।
नमक, चिकनाई का प्रयोग बंद कर दें।
* अनार, पपीता, आंवला, बथुआ, लहसुन, मैथी दाना, सेब का मुरब्बा, मौसंबी, रात में भिगोए काले चने,

किशमिश, गुग्गुल, दही, छाछ आदि लें । 




23.11.13

गेहूं के जवारे हैं अच्छे स्वास्थय की कुंजी // Wheat grassThe key to good health








*गेहूं के जवारे में प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट, मिनरल्स आदि वे सभी पौष्टिक तत्व है जो शरीर को स्वस्थ और तंदुरुस्त बनाये रखने के लिए जरूरी है |
*लंबे और गहन अनुसंधान के बाद पाया गया है कि शारीरिक कमजोरी, रक्ताल्पता, दमा, खांसी, पीलिया, मधुमेह, वात-व्याधि, बवासीर जैसे रोगों में गेहूं के छोटे-छोटे हरे पौधों के रस का सेवन खासा कारगर साबित हुआ है |यहां तक कि इसकी मानवीय कोशिकाओं को फिर से पैदा करने की विशिष्ट क्षमता और उच्चकोटि के एंटीऑक्सीडेंट होने के कारण कैंसर जैसे घातक रोग की प्रारंभिक अवस्था में इसका अच्छा प्रभाव देखा गया है |




*गेहूं हमारे आहार का मुख्य घटक है | इसमें पोषक तत्वों की भरपूर मात्रा होती है | इस संदर्भ में तमाम महत्वपूर्ण खोजें हुई हैं. अमेरिका के सुप्रसिद्ध चिकित्सा वैज्ञानिक डॉ. ए. विग्मोर ने गेहूं के पोषक और औषधीय गुणों पर लंबे शोध और गहन अनुसंधान के बाद पाया है कि शारीरिक कमजोरी, रक्ताल्पता, दमा, खांसी, पीलिया, मधुमेह, वात-व्याधि, बवासीर जैसे रोगों में गेहूं के छोटे-छोटे हरे पौधे के रस का सेवन खासा कारगर साबित हुआ है |

एन्टी आक्सी डेंट से भरपूर --
यहां तक कि इसकी मानव कोशिकाओं को फिर से पैदा करने की विशिष्ट क्षमता और
उच्चकोटि के एन्टीऑक्सीडेंट होने के कारण कैंसर जैसे घातक रोग की प्रारंभिक
अवस्था में इसका अच्छा असर देखा गया है | यही नहीं, फोड़े-फुंसियों और घावों पर गेहूं के छोटे हरे पौधे की पुल्टिस 'एंटीसेप्टिक'और 'एंटीइन्फ्लेमेटरी' औषधि की तरह काम करती है. डॉ. विग्मोर के अनुसार, किसी भी तरह की शारीरिक कमजोरी दूर करने में गेहूं के जवारे का रस किसी भी उत्तम टॉनिक से बेहतर साबित हुआ है |



प्राकृतिक बलवर्धक टॉनिक -
यह ऐसा प्राकृतिक बलवर्धक टॉनिक है जिसे किसी भी आयुवर्ग के स्त्री-पुरुष और
बच्चे जब तक चाहे प्रयोग कर सकते हैं, इसी गुणवत्ता के कारण इसे 'ग्रीन
ब्लड' की संज्ञा दी गयी है |
पोषक तत्वों की अधिकता के कारण गेहूं को खाद्यान्नों में सर्वोपरि माना गया
है. इसमें प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट, मिनरल्स आदि वे सभी पौष्टिक
तत्व विद्यमान रहता है जो शरीर को स्वस्थ और तंदुरुस्त बनाये रखने के लिए
जरूरी है |
रोग प्रतिरोधक क्षमता -
शोध वैज्ञानिकों के अनुसार, गेहूं के ताजे जवारों (गेहूं केहरे नवांकुरों) के साथ थोड़ी सी हरी दूब और चार-पांच काली मिर्च को पीसकर उसका रस निकालकर पिया जाए तो इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है |यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि दूब घास सदैव स्वच्छ स्थानों जैसे खेत, बाग-बगीचों से ही लेना चाहिए |
वैज्ञानिकों ने गेहूं के जवारे उगाने का सरल तरीका भी बताया है.
इसके लिए मिट्टी के छोटे-छोटे सात गमले लिये जाएं और उन्हें साफ जगह से
मिट्टी से भर ली जाए. मिट्टी भुरभुरी और रासायनिक खाद रहित होनी चाहिए |



अब इन गमलों में क्रम से प्रतिदिन एक-एक गमले में रात में भिगोया हुआ एक-एक
मुट्ठी गेहूं बो दें. दिन में दो बार हल्की सिंचाई कर दे. 6-7 दिन में जब
जवारे थोड़े बड़े हो जाएं तो पहले गमले से आधे गमले के कोमल जवारों को जड़
सहित उखाड़ लें |
ध्यान रखें, जवारे 7-8 इंच के हों तभी उन्हें उखाड़ें. इससे ज्यादा बड़े होने पर
उनके सेवन से अपेक्षित लाभ नहीं मिलता. जवारे का रस सुबह खाली पेट लेना हीउपयोगी होता है
ख्याल रखें कि जवारे को छाया में ही उगाएं. गमले रोज मात्र आधे घंटे के लिए
हल्की धूप में रखें. जवारों का रस निकालने के लिए 6-7 इंच के पौधे उखाड़कर
उनका जड़वाला हिस्सा काटकर अलग कर दें |

अच्छी तरह धोकर साफ करके सिल पर पीस लें. फिर मुट्ठी से दबाकर रस निकाल लें. ग्रीन ब्लड तैयार है |
इस रस के सेवन से हीमोग्लोबिन बहुत तेजी से बढ़ता है और नियमित सेवन से शरीर पुष्ट और निरोग हो जाता है.
दूर्वा घास' के बारे में आरोग्य शास्त्रों में लिखा है कि इसमें अमृत भरा है,इसके नियमित सेवन से लंबे समय तक निरोग रहा जा सकता है | आयुर्वेद के अनुसार, गेहूं के जवारे के रस के साथ 'मेथीदाने' के रस के सेवन से बुढ़ापा दूर भगाया जा सकता है |


एक चम्मच मेथी दाना  रात मे भिगो दें  सुबह छानकर  इस रस को जवारे  के रस  के साथ मिलाकर  सेवन करें|

उपरोक्त के साथ आधा नींबू का रस, आधा छोटा चम्मच सोंठ और दो चम्मच शहद मिला देने से इस पेय की गुणवत्ता कई गुना बढ़ जाती है | इस पेय में विटामिन ई, सी और कोलीन के साथ कई महत्वपूर्ण इंजाइम्स और पोषक 



3.2.12

फ़ोडे,फ़ुन्सियां,गुमडे की घरेलू ,आयुर्वेदिक चिकित्सा Fode funsiya


                                                                                                   

  

फ़ोडॆ ,गुमडॆ ,गांठ होना त्वचा का रोग है।खासकर स्टेफ़िलोकोकस जीवाणु इस रोग के लिये उत्तरदायी माना जाता है।इस रोग में त्वचा के रोम छिद्रों में संक्रमण होने से स्थानीय तौर पर पर पीडाकारक सूजन और ऊभार बन जाते हैं जिसमे पीप पड जाती है। एक या अधिक रोम छिद्र प्रभावित हो सकते हैं। स्वेद ग्रंथियों में संक्रमण होने से भी फ़ोडे-फ़ुन्सियां होती हैं। पककर फ़ूटने पर पीप स्राव होता है। साधारणतया यह रोग घरेलू ईलाज से ठीक हो जाता है। लेकिन पुराने रोग के में ईलाज कुछ लंबे समय लगता है।

नीचे फ़ोडे-फ़ुन्सियों,घुमडे- गांठ के घरेलू उपचार दिए गये हैं जिनसे रोग शीघ्र ही नियंत्रित होकर रोगी स्वस्थ्य हो जाता है--
Protected by Copyscape DMCA Copyright Detector१) करेले का रस ५० मिलि में एक निंबू का रस मिलाकर रोज सुबह खाली पेट कुछ दिन तक लेते रहने से शरीर की गुमडे-गांठ की प्रवत्ति से मुक्ति मिल जाती है।









२) जीरा पानी के साथ पीसकर पेस्ट जैसा बनाकर फ़ोडे-फ़ुंसियों पर लगाना चाहिये।


३) नागरवेल पान को मामूली तपायें फ़िर उस पर अरंडी का तेल चुपडकर सूजन वाले स्थान पर लगाकर पट्टी बांधें। २-३ घंटे में पान बदलते रहें। फ़ोडा फ़ूटकर पीप निकल जायेगा।





४) मक्का(कोर्न) का आटा का प्रयोग लाभदायक है। १००मिलि पानी उबालें उसमे मक्का का आटा घोलते जायें। जब पेस्ट जैसा गाढा हो जाये तब आंच से उतारलें। इसे फ़ोडे फ़ुंसी,गुमड गांठ पर लगाकर पट्टी बांधें। २-३ घंटे के अंतर पर यह प्रक्रिया पुन: करते रहने से फ़ोडा पक जाता है और पीप बाहर निकल जाती है।



५) २०० मिलि दूध ऊबालें। इसमें १५ ग्राम नमक धीरे-धीरे मिलाते जाएं। जल्दी मिलाने से दूध फ़ट जाएगा। अब इसे गाढा बनाने के लिये ब्रेड के टुकडे उसमें डालें।पेस्ट जैसा बनने पर आंच से उतारें। इसे फ़ोडे फ़ुंसी पर हर तीन घंटे बाद लगाकर पट्टी बांधते रहने से कच्चा फ़ोडा-गांठ पक कर फ़ूट निकलता है।यह ध्यान देने योग्य है कि पीप त्वचा के अन्य हिस्से पर न लगे अन्यथा संक्रमण फ़ैलने का खतरा रहता है। फ़ोडा-फ़ुंसी रोगी के टावेल,कपडे,दाढी का सामान आदि अन्य व्यक्ति उपयोग नहीं करें।
६) प्याज और लहसुन फ़ोडे फ़ुंसी के उत्तम उपचारों मे शुमार होते हैं।प्याज और लहसुन का रस बराबर मात्रा में मिलाकर फ़ोडे-फ़ुंसी पर लगाने से अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं।

७) हल्दी का प्रयोग हितकारी उपाय है। ३-४ हल्दी की गांठें आग में जलाएं फ़िर बारीक पीसकर १००मिलि पानी में घोल लें। यह मिश्रण फ़ोडे-फ़ुंसी पर लगाते रहने से फ़ोडे पक कर फ़ूट जाते है। हल्दी में जीवाणु नाशक गुण होते हैं।
८) प्याज में जीवाणु नाशक गुण होते हैं। चाकू से प्याज की चीरें काट लें ।फ़ोडे फ़ुंसी पर रखकर पटी बांधें। कुछ ही बार ऐसा करने से फ़ोडा पक जाएगा। मामूली दबाकर पीप निकाल दें।






९) गरम पानी में कपडा डुबोकर निचोडकर ३-४ तह(लेयर) बनाकर यह पट्टी फ़ोडे पर रखने और ठंडा हो जाने पर फ़िर गरम पटी रखते रहने से भी फ़ोडा-गांठ शीघ्र फ़ूट जाता है।



१०) चेहरे की फ़ुंसियों को दबाकर पीप नहीं निकालना चाहिये वर्ना चेहरे पर दाग बाकी रह जाएंगे और उनको ठीक करने का अतिरिक्त उपचार करना होगा।



११) एक गिलास जल में एक चम्मच हल्दी पावडर घोलकर रोज सुबह पीने से कुछ ही रोज में खून साफ़ होकर फ़ोडे फ़ुंसियां ठीक हो जाती हैं|



















10.4.11

दन्तशूल के घरेलू उपचार //Toothache home remedies


                                             
                                              

दांत,मसूढों और जबडों में होने वाली पीडा को दंतशूल से परिभाषित किया जाता है। हममें से कई लोगों को ऐसी पीडा अकस्मात हो जाया करती है। दांत में कभी सामान्य तो कभी असहनीय दर्द उठता है। रोगी को चेन नहीं पडता। मसूडों में सूजन आ जाती है। दांतों में सूक्छम जीवाणुओं का संक्रमण हो जाने से स्थिति और बिगड जाती है। मसूढों में घाव बन जाते हैं जो अत्यंत कष्टदायी होते हैं।दांत में सडने की प्रक्रिया शुरु हो जाती है और उनमें केविटी बनने लगती है।जब सडन की वजह से दांत की नाडियां प्रभावित हो जाती हैं तो पीडा अत्यधिक बढ जाती है।

   प्राकृतिक उपचार दंत पीडा में लाभकारी होते हैं। सदियों से हमारे बडे-बूढे दांत के दर्द में घरेलू पदार्थों का उपयोग करते आये हैं। यहां हम ऐसे ही प्राकृतिक उपचारों की चर्चा कर रहे हैं।


१) बाय बिडंग १० ग्राम,सफ़ेद फ़िटकरी १० ग्राम लेकर तीन लिटर जल में उबालकर जब मिश्रण एक लिटर रह जाए तो आंच से उतारकर ठंडा करके एक बोत्तल में भर लें। दवा तैयार है। इस क्वाथ से सुबह -शाम कुल्ले करते रहने से दांत की पीडा दूर होती है और दांत भी मजबूत बनते हैं।





२) लहसुन में जीवाणुनाशक तत्व होते हैं। लहसुन की एक कली थोडे से सैंधा नमक के साथ पीसें फ़िर इसे दुखने वाले दांत पर रख कर दबाएं। तत्काल लाभ होता है। प्रतिदिन एक लहसुन कली चबाकर खाने से दांत की तकलीफ़ से छुटकारा मिलता है।





३) हींग दंतशूल में गुणकारी है। दांत की गुहा(केविटी) में थोडी सी हींग भरदें। कष्ट में राहत मिलेगी।

४) तंबाखू और नमक महीन पीसलें। इस टूथ पावडर से रोज दंतमंजन करने से दंतशूल से मुक्ति मिल जाती है।
५) बर्फ़ के प्रयोग से कई लोगों को दांत के दर्द में फ़ायदा होता है। बर्फ़ का टुकडा दुखने वाले दांत के ऊपर या पास में रखें। बर्फ़ उस जगह को सुन्न करके लाभ पहुंचाता है।









६) कुछ रोगी गरम सेक से लाभान्वित होते हैं। गरम पानी की थैली से सेक करना प्रयोजनीय है।












७) प्याज कीटाणुनाशक है। प्याज को कूटकर लुग्दी दांत पर रखना हितकर उपचार है। एक छोटा प्याज नित्य भली प्रकार चबाकर खाने की सलाह दी जाती है। इससे दांत में निवास करने वाले जीवाणु नष्ट होंगे।




८) लौंग के तैल का फ़ाया दांत की केविटी में रखने से तुरंत फ़ायदा होगा। दांत के दर्द के रोगी को दिन में ३-४ बार एक लौंग मुंह में रखकर चूसने की सलाह दी जाती है।







९) नमक मिले गरम पानी के कुल्ले करने से दंतशूल नियंत्रित होता है। करीब ३०० मिलि पानी मे एक बडा चम्मच नमक डालकर तैयार करें।दिन में तीन बार कुल्ले करना उचित है।
१०) पुदिने की सूखी पत्तियां पीडा वाले दांत के चारों ओर रखें। १०-१५ मिनिट की अवधि तक रखें। ऐसा दिन में १० बार करने से लाभ मिलेगा।
११) दो ग्राम हींग नींबू के रस में पीसकर पेस्ट जैसा बनाले। इस पेस्ट से दंत मंजन करते रहने से दंतशूल का निवारण होता है।






१२। मेरा अनुभव है कि विटामिन सी ५०० एम.जी. दिन में दो बार और केल्सियम ५००एम.जी दिन में एक बार लेते रहने से दांत के कई रोग नियंत्रित होंगे और दांत भी मजबूत बनेंगे।
१३)  मुख्य बात ये है कि  सुबह-शाम दांतों की स्वच्छता करते रहें। दांतों के बीच की जगह में अन्न कण फ़ंसे रह जाते हैं और उनमें जीवाणु पैदा होकर दंत विकार उत्पन्न करते हैं।
१४) शकर का उपयोग हानिकारक है। इससे दांतो में जीवाणु पैदा होते हैं। मीठी वसुएं हानिकारक हैं। लेकिन कडवे,ख्ट्टे,कसेले स्वाद के पदार्थ दांतों के लिये हितकर होते है। नींबू,आंवला,टमाटर ,नारंगी का नियमित उपयोग लाभकारी है। इन फ़लों मे जीवाणुनाशक तत्व होते हैं। मसूढों से अत्यधिक मात्रा में खून जाता हो तो नींबू का ताजा रस पीना लाभकारी है।
१५)    हरी सब्जियां,रसदार फ़ल भोजन में प्रचुरता से शामिल करें।




१६)  दांतों की  केविटी में दंत चिकित्सक केमिकल मसाला भरकर इलाज करते हैं। सभी प्रकार के जतन करने पर भी दांत की पीडा शांत न हो तो दांत उखडवाना ही आखिरी उपाय है।
        इस पोस्ट में दी गयी जानकारी आपको अच्छी और लाभकारी लगी हो तो कृपया लाईक और शेयर जरूर कीजियेगा । आपके एक शेयर से किसी जरूरतमंद तक सही जानकारी पहुँच सकती है और हमको भी आपके लिये और अच्छे लेख लिखने की प्रेरणा मिलती है



25.1.11

मूत्राषय प्रदाह (cystitis) के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार Mootrashay Pradah

                                                                    


     मूत्राषय   में रोग-जीवाणुओं का संक्रमण होने से मूत्राषय प्रदाह रोग उत्पन्न होता है। निम्न मूत्र पथ के अन्य अंगों किडनी, यूरेटर और प्रोस्टेट ग्रंथि और योनि में भी संक्रमण का असर देखने में आता है। इस रोग  के कई कष्टदायी लक्षण  होते हैं जैसे-तीव्र गंध वाला पेशाब होना,पेशाब का रंग बदल जाना, मूत्र त्यागने में जलन और दर्द  अनुभव होना, कमजोरी मेहसूस होना,पेट में पीडा और शरीर में बुखार की हरारत रहना। हर समय मूत्र त्यागने की ईच्छा बनी रहती है। मूत्र पथ में जलन  बनी रहती है। मूत्राषय में सूजन आ जाती है।
     यह रोग पुरुषों की तुलना में स्त्रियों में ज्यादा देखने में आता है। इसका कारण यह है कि स्त्रियों की पेशाब नली (दो इंच) के बजाय पुरुषों की मूत्र नलिका ७ इंच लंबाई  की होती है। छोटी नलिका से होकर संक्रमण सरलता से मूत्राषय को आक्रांत कर लेता है। गर्भवती स्त्रियां और सेक्स-सक्रिय औरतों में मूत्राषय प्रदाह रोग अधिक पाया जाता है। ऋतू निवृत्त महिलाओं में भी यह रोग अधिक होता है।
     इस रोग में मूत्र खुलकर नहीं होता है और जलन की वजह से रोगी पूरा पेशाब नहीं कर पाता है और मूत्राषय में पेशाब बाकी रह जाता है। इस शेष रहे मूत्र में जीवाणुओं का संचार होकर रोगी की स्थिति ज्यादा खराब हो सकती है।
    आधुनिक चिकित्सक एन्टीबायोटिक दवाओं से इस रोग को काबू में करते हैं लेकिन कुदरती और घरेलू पदार्थॊं  के उपचार  इस रोग में अधिक फ़लदायी होते है।






१)  खीरा ककडी का रस इस रोग में अति लाभदायक है। २०० मिलि ककडी के रस में एक बडा चम्मच नींबू का रस  और एक चम्मच शहद मिलाकर हर तीन घंटे के फ़ासले से पीते रहें।



२) पानी और अन्य तरल पदार्थ प्रचुर मात्रा में प्रयोग करें। प्रत्येक १० -१५ मिनिट के अंतर पर एक गिलास पानी या फ़लों का रस पीयें। सिस्टाइटिज नियंत्रण का यह रामबाण उपचार है।






३)  मूली के पत्तों का रस लाभदायक है। १०० मिलि रस दिन में ३ बार प्रयोग करें।





 
४)  नींबू का रस इस रोग में उपयोगी है। वैसे तो नींबू स्वाद में खट्टा होता है लेकिन गुण क्छारीय हैं। नींबू का रस मूत्राषय में उपस्थित जीवाणुओं को नष्ट करने में सहायक होता है। मूत्र में रक्त आने की स्थिति में भी लाभ होता है।
५)  पालक रस १२५ मिलि में नारियल का पानी मिलाकर पीयें। तुरंत फ़ायदा होगा। पेशाब में जलन मिटेगी।







६)  पानी में मीठा सोडा यानी सोडा बाईकार्ब मिलाकर पीने से तुरंत लाभ प्रतीत होता है लेकिन इससे रोग नष्ट नहीं होता। लगातार लेने से स्थिति ज्यादा बिगड सकती है।
७) गरम पानी से स्नान करना चाहिये। पेट और नीचे के हिस्से में गरम पानी की बोतल से सेक करना चाहिये। गरम पानी के टब में बैठना लाभदायक है।
८)  मूत्राषय प्रदाह रोग की शुरुआत में तमाम गाढे भोजन बंद कर देना चाहिये।दो दिवस का  उपवास करें। उपवास के दौरान पर्याप्त मात्रा में तरल,पानी,दूध लेते रहें।
९)  विटामिन सी (एस्कार्बिक एसिड) ५०० एम जी दिन में ३ बार लेते रहें। मूत्राषय प्रदाह निवारण में उपयोगी है।






१०) ताजा भिंडी लें। बारीक काटॆं। दो गुने जल में उबालें। छानकर यह काढा दिन में दो बार पीने से मूत्राषय प्रदाह की वजह से होने वाले पेट दर्द में राहत मिल जाती है।





११)  आधा गिलास मट्ठा में आधा गिलास जौ का मांड मिलाएं इसमें नींबू का रस ५ मिलि मिलाएं और पी जाएं। इससे मूत्र-पथ के रोग नष्ट होते है।
१२) आधा गिलास  गाजर का रस में इतना ही पानी मिलाकर पीने से मूत्र की जलन दूर होती है। दिन में दो बार प्रयोग कर सकते हैं।












  • मसूड़ों के सूजन के घरेलू उपचार
  • अनार खाने के स्वास्थ्य लाभ
  • इसबगोल के औषधीय उपयोग
  • अश्वगंधा के फायदे
  • लकवा की चमत्कारी आयुर्वेदिक औषधि वृहत वात चिंतामणि रस
  • मर्द को लंबी रेस का घोडा बनाने के अद्भुत नुस्खे
  • सदाबहार पौधे के चिकित्सा लाभ
  • कान बहने की समस्या के उपचार
  • पेट की सूजन गेस्ट्राईटिस के घरेलू उपचार
  • पैर के तलवों में जलन को दूर करने के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार
  • लकवा (पक्षाघात) के आयुर्वेदिक घरेलू नुस्खे
  • डेंगूबुखार के आयुर्वेदिक नुस्खे
  •  काला नमक और सेंधा नमक मे अंतर और फायदे
  • कालमेघ जड़ी बूटी लीवर रोगों की महोषधि
  • हर्निया, आंत उतरना ,आंत्रवृद्धि के आयुर्वेदिक उपचार
  • पाइल्स (बवासीर) के घरेलू आयुर्वेदिक नुस्खे
  • चिकनगुनिया के घरेलू उपचार
  • चिरायता के चिकित्सा -लाभ
  • ज्यादा पसीना होने के के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार
  • पायरिया रोग के आयुर्वेदिक उपचार
  •  व्हीटग्रास (गेहूं के जवारे) के रस और पाउडर के फायदे
  • घुटनों के दर्द को दूर करने के रामबाण उपाय
  • चेहरे के तिल और मस्से हटाने के उपचार
  • अस्थमा के कारण, लक्षण, उपचार और घरेलू नुस्खे
  •  वृक्क अकर्मण्यता(kidney Failure) की रामबाण हर्बल औषधि
  • शहद के इतने सारे फायदे नहीं जानते होंगे आप!
  • वजन कम करने के उपचार
  • केले के स्वास्थ्य लाभ
  • लीवर रोगों की महौषधि भुई आंवला के फायदे
  • हरड़ के गुण व फायदे
  • कान मे मेल जमने से बहरापन होने पर करें ये उपचार
  • पेट की खराबी के घरेलू उपचार
  • शिवलिंगी बीज के चिकित्सा उपयोग
  • दालचीनी के फायदे
  • बवासीर के खास नुखे
  • भूलने की बीमारी के उपचार
  • आम खाने के स्वास्थ्य लाभ
  • सोरायसीस के उपचार
  • गुर्दे की सूजन के घरेलू उपचार
  • रोग के अनुसार आयुर्वेदिक उपचार
  • कमर दर्द के उपचार
  • कड़ी पत्ता के उपयोग और फायदे
  • ग्वार फली के फायदे
  •  सीने और पसली मे दर्द के कारण और उपचार
  • जायफल के फायदे
  • गीली पट्टी से त्वचा रोग का इलाज
  • मैदा खाने से होती हैं जानलेवा बीमारियां
  • थेलिसिमिया रोग के उपचार
  •  दालचीनी के फायदे
  • भूलने की बीमारी का होम्योपैथिक इलाज
  • गोमूत्र और हल्दी से केन्सर का इयाल्ज़
  • कमल के पौधे के औषधीय उपयोग
  • चेलिडोनियम मेजस के लक्षण और उपयोग
  • शिशु रोगों के घरेलू उपाय
  • वॉटर थेरेपी से रोगों की चिकित्सा
  • काला नमक और सेंधा नमक मे अंतर और फायदे
  • दालचीनी के अद्भुत लाभ
  • वीर्य बढ़ाने और गाढ़ा करने के आयुर्वेदिक उपाय
  • लंबाई ,हाईट बढ़ाने के अचूक उपाय
  • टेस्टेटरोन याने मर्दानगी बढ़ाने के उपाय