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23.9.17

पेट के रोगों की होम्योपैथिक चिकित्सा





उदर-विकार समय पर खाना न खाना, अधिक तली चीज़ें खाना, अत्यधिक खाना खाना अथवा भूखा रहना, मिर्च-मसालों का अधिक प्रयोग आदि उदर- विकारों को उत्पन्न करने के लिए पर्याप्त हैं। प्रमुख परेशानियां, कारण और होमियोपैथिक चिकित्सा से निवारण निम्न प्रकार संभव है –

अग्निमांद्य : 
अग्निमांद्य यानी जठराग्नि कमजोर हो जाने पर प्रमुख लक्षण होते हैं – भूखन लगना, भोजन से अरुचि होना, पेट भरा-भरा सा लगना। इसे अजीर्ण, बदहजमी और पेट भरा-भरा सा कहते हैं। अग्निमांद्य होने पर गैस की शिकायत रहना, कब्ज होना, पेट फूलना और भारी रहना, तबीयत में गिरावट, स्वभाव में चिड़चिड़ाहट और मन में खिन्नता रहना आदि अनेक विकार उत्पन्न हो जाते हैं। इन व्याधियों की चिकित्सा के लिए लक्षणों के अनुसार दवा चुनकर सेवन करना फायलक्षण एवं उपचार
कार्बोवेज : 
पाचन शक्ति कमजोर हो जाए, खाना देर से हजम होता हो और पूरी तरह से पच न पाने के कारण सड़ने लगता हो, जिससे गैस बनती हो, पेट फूल जाता हो, अधोवायु निकलने पर राहत मालूम देती हो, खट्टी डकारें आती हों या खाली डकारें आएं, गैस ऊपर की तरफ चढ़ती हो, जिसका दबाव छाती पर पड़ता हो और भोजन के आधा-एक घटे बाद ही कष्ट होने लगे, तो समझें कि ये लक्षण ‘कार्बोवेज’ दवा के हैं। ऐसी स्थिति में 30 शक्ति एवं 200 शक्ति की दवा अत्यन्त फायदेमंद होती है।
एण्टिमक्रूड : 
अग्निमांद्य के साथ-साथ जीभ पर दूध जैसी सफेद मैली परत चढ़ी होना, गर्मी के दिनों में उदर-विकार होने पर दस्त लग जाना, बदहजमी, भूख न लगना, एसिड एवं अचारों को खाने की प्रबल इच्छा, खट्टी डकरें, बच्चा दूध की उल्टी कर देता है, खाने के बाद पेट फूल जाना, खुली हवा में आराम मिलना आदि लक्षणों के आधार पर एण्टिमक्रूड दवा 6 एवं 30 शक्ति अत्यधिक कारगर है।देमंद है। प्रमुख दवाएं इस प्रकार हैं –
नक्सवोमिका : खाना खाने के घटे दो-घटे बाद तकलीफ होना, पेट में भारीपन, जैसे कोई पत्थर पेट में रखा हो, पेट फूलना, पेट में जलन मालूम देना, गैस के दबाव के साथ सिर में भारीपन बढ़ना, रोगी दुबले शरीर वाला, क्रोधी एवं चिड़चिड़ा स्वभाव, ठंड के प्रति अधिक सहिष्णुता, रोगी अचार, चटनी, तले पदार्थ खाना पसंद करता है और पचा भी लेता है। इसके बाद परेशानी होने लगती है। बहुत मद्यपान करने, बहुत भोग-विलास करने, बहुत ज्यादा खाने, आलसी जीवन बिताने और गरिष्ठ पदार्थों के सेवन से जिनकी पाचन शक्ति कमजोर हो गई हो एवं पाखाना जाने की इच्छा होती हो, किन्तु पाखाना बहुत कम होता हो और थोड़ी देर बाद पुनः पाखाने जाने की जरूरत होने लगती है, ऐसी स्थिति में ‘नवसवोमिका’ 30 एवं 200 शक्ति की दवा अत्यन्त फायदेमंद होती है। यह दवा प्राय:रात में सोने से पूर्व ही सेवन करनी चाहिए।
पल्सेटिला : 
प्यास बिलकुल न लगना जबकि जीभ सूखी हुई हो, भोजन के घटे-दो घंटे बाद तकलीफ होना, पेट में बोझ-सा लगना, जलन होना, सुबह उठने पर बिना कुछ खाए-पिए भी पेट भरा हुआ और भारी लगना, रोगी स्वास्थ्य में ठीक होता है, मोटा होता है, ऊष्ण प्रकृति (गर्म-तासीर) वाला होता है, शांत और मधुर स्वभाव का होता है, अधीरता के कारण बात करते-करते रो देना एवं शांत कराने पर चुप हो जाना, चटपटे, तले एवं घी से बने भारी पदार्थ हजम नहीं कर पाना, ठंडी हवा में आराम मिलना, खाने में स्वाद कम हो जाना, गर्म कमरे में एवं दर्द से विपरीत दिशा में लेटने पर परेशानी महसूस करना, ठंडी चीजों से आराम मिलना आदि लक्षणों के आधार पर 30 एवं 200 शक्ति की दवा बेहद कारगर साबित रही है।

 अम्लता (एसीडिटी)
:

 पेट में अम्लता बढ़ जाए, तो पाचन-क्रिया बिगड़ जाती है, जिससे भोजन ठीक से पचने की अपेक्षा सड़ने लगता है और पेट व गले में जलन होती है, गले में खट्टा, तीखा, चटपटा पानी डकार के साथ आता है, छाती में जलन का अनुभव होता है,खट्टी व तीखी डकारें आती हैं। ये सब अम्लता के मुख्य लक्षण हैं। इसमें अपच के साथ-साथ कब्ज या दस्त होने की शिकायत बनी रहती है। कभी-कभी कड़वी और गर्म पानी के साथ उल्टी हो जाती है। लक्षणों के आधार पर प्रमुख औषधियां निम्न प्रकार है –

एसीडिटी के लक्षण एवं उपचार

अर्जेण्टम नाइट्रिकम : 
डकार आए और साथ में पेट दर्द भी हो, मीठा खाने में रुचि हो, पर मीठा खाने से कष्ट बढ़े, डकार आने से आराम मालूम देना, जी मतली करे, गैस बढ़े, पेट में जलन हो, मीठे के साथ-साथ नमकीन खाने की भी इच्छा रहती हो, गमीं से, मिठाई से, ठंडे खाने से परेशानी बढ़ना, खुली हवा में, डकार आने से आराम मिलना आदि लक्षण हो, तो 30 शक्ति की दवा उपयोगी है।
खाने के बाद जी मतली करे, गले में कड़वा खट्टा पानी डकार के साथ आए, रोगी शीत प्रकृति का हो, तो ‘नक्सवोमिका’ 30 शक्ति में लेनी चाहिए।
यदि डकार में खाए हुए अन्न का स्वाद आए, रोगी ऊष्ण प्रकृति का हो, मुंह सूखा रहे और प्यास न लगे, तो ‘पल्सेटिला’ 30 शक्ति में लेनी चाहिए।
नेट्रमफॉस :

 परेशानियां जो अत्यधिक अम्लता के कारण पैदा हो जाती हैं, पीली, चिकनी परत, जीभ के पिछले भाग पर, मुंह में घाव, जीभ की नोक पर घाव, गले की (टॉन्सिल) झिल्ली भी मोटी और चिकनी हो जाना, खाना निगलने में परेशानी महसूस करना, खट्टी डकारें, कड़वी उल्टी, हरा दस्त आदि लक्षण मिलने पर 12 × एवं 30 शक्ति की दवा अत्यन्त लाभदायक है।
चाइना : 

अम्लता के रोगी को ऐसा अनुभव हो कि पूरा पेट हवा से भरा हुआ है, डकार आने पर हलकापन और राहत अनुभव हो, डकरें खट्टी व बदबूदार हों या खाली डकारें ही आती हों, मुंह का स्वाद कड़वा रहे, मुंह में कड़वा पानी आता हो, ऐसा लगे कि खाना छाती पर ही अड़ा हुआ है, छाती में जलन होती हो, तो चाइना 30 शक्ति फायदेमंद होती है।

कब्ज (कांस्टिपेशन) :

 खाने में अनियमितता, जल्दी-जल्दी खाने, ठीक से चबा-चबाकर न खाने, भारी, तले हुए और मांसाहारी पदार्थों का सेवन करने, पाचन शक्ति कमजोर होने आदि कारणों से अधिकांश स्त्री-पुरुष कब्ज के शिकार बने रहते हैं। कब्ज होने से कई और रोग भी उत्पन्न हुआ करते हैं। जैसे-शरीर को पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाता, जिससे शरीर में सुस्ती व कमजोरी आती है। गैस एवं वातरोग उत्पन्न होते हैं। स्वस्थ रहने के लिए कब्ज का न होना पहली शर्त है।
ब्रायोनिया : 

खाने के बाद कड़वी और खट्टी डकारें आएं, पेट में भारीपन हो, डकार में खाए हुए पदार्थ की गंध या स्वाद हो, अधिक प्यास, मुंह व होंठ सूखना, सुबह मतली आना, गर्म चीज खाने से कष्ट बढ़े, खाना खाते ही तबीयत बिगड़े, हिलने-डुलने से कष्ट बढ़े, ठंड एव् ठंडी हवा से आराम हो, पेट को छूने से अथवा खांसी आने पर परेशानी बढ़ जाना, दर्द वाली सतह पर लेटने, कसकर दबाने से, आराम करने से परेशानियां कम हो जाती हों, तो ब्रायोनिया 30 शक्ति की दवा फायदेमंद है।

कब्ज का लक्षण एवं उपचार

हाइड्रेस्टिस : 
अगर रोगी सिर्फ कब्ज का ही रोगी हो, तो हाइड्रेस्टिस बहुत अक्सीर दवा है। पेट खाली-खाली-सा लगे, मीठा-मीठा हलका-सा दर्द हो और कब्ज के सिवाय अन्य कोई लक्षण न हो, तो हाइड्रेस्टिस दवा के मूल अर्क (मदर टिंचर) की 5-5 बूंद 2 चम्मच पानी में सुबह खाली पेट लगातार कई दिन लेने से कब्ज दूर हो जाती है।
नक्सवोमिका : 

उक्त दवा के मुख्य लक्षण ऊपर वर्णित किए जा चुके हैं। कब्ज की अवस्था में, जो लोग बैठक का काम ज्यादा करते हैं, बार-बार शौच के लिए जाते हैं, पर पेट ठीक से साफ नहीं होता, हर बार थोड़ा-थोड़ा पाखाना हो और शौच के बाद भी हाजत बनी रहे, तो नक्सवोमिका 200 शक्ति की तीन खुराकें 15 मिनट के अंतर पर रात में सोने से एक घंटा पहले ले लेनी चाहिए। दस्त के बाद पेट में मरोड़ होना भी इसका एक लक्षण है।
मैग्नेशिया म्यूर : 

यह दवा शिशुओं के लिए उपयोगी है। खास कर दांत-दाढ़ निकलते समय हो, दूध न पचता हो, उन्हें उक्त दवा 30 शक्ति की देना फायदेमंद है। इसके अलावा ‘साइलेशिया’ दवा भी अत्यंत फायदेमंद है।
अतिसार (डायेरिया) : 
उदर-विकार में जहां अपच के कारण कब्ज हो जाने से शौच नहीं आता, वहीं अपच के कारण अतिसार होने से बार-बार शौच आता है, जिसे दस्त लगना कहते हैं। कभी-कभी निर्जलन की स्थिति (डिहाइड्रेशन) बन जाती है, यानी शरीर में पानी की कमी हो जाती है, बार-बार थोड़ा-थोड़ा मल निकलता है। फिर भी पेट साफ और हलका नहीं लगता।

डायरिया का लक्षण एवं उपचार

मैग्नेशिया कार्ब :
 शिशुओं के लिए उत्तम दवा है। दूध पीता बच्चा, हरे-पीले और झागदार दस्त बार-बार करे, मल से और शरीर से खट्टी दुर्गन्ध आए, दस्त में अपना दूध निकाले, तो उक्त दवा 30 शक्ति कारगर है।
एलूमिना : 


कुछ रोगियों को टट्टी की हाजत ही नहीं होती और वे 2-3 दिन तक हाजत का अनुभव नहीं करते। शौच के लिए बैठते हैं, तब बड़ी मुश्किल से सूखी काली तथा बकरी की मेंगनी जैसी गोलियों की शक्ल में टट्टी होती है, आलू खाने से कष्ट बढ़ जाता है, मलाशय की पेशियां इतनी शिथिल हो जाती है कि स्वयं मल बाहर नहीं फेंक पातीं। यहां तक कि पतले मल को निकालने के लिए भी जोर लगाना पड़ता है। पेशाब करने में जोर लगाना पड़े, पीठ में दर्द हो, तो इन लक्षणों के आधार पर ‘एलुमिना’ 30 एवं 200 शक्ति की कुछ खुराक ही कारगर असर दिखाती है।

कैमोमिला :
 बेचैनी, चिड़चिड़ापन, बच्चा एक वस्तु मांगता है, मिलने पर लेने से मना कर देता है, जिद्दी स्वभाव, गर्म-हरा पानी जैसा बदबूदार दस्त (जैसे किसी ने पालक में अंडा फेंट दिया हो), पेशाब के रास्ते में जलन, मां के गुस्सा करने के समय बच्चे को दूध पिलाने के बाद बच्चे को दस्त होना आदि लक्षणों के आधार पर 30 शक्ति की दवा फायदेमंद रहती है।
एलोस : 
रोगी को मांस के प्रति घृणा रहती है। जूस एवं तरल पदार्थों की इच्छा बनी रहती है, किंतु पीते ही पेट फूलने लगता है। पेट में भारीपन, फूला हुआ, शौच से पूर्व एवं बाद में भी पेट दर्द, रोगी कुछ भी खाता है, फौरन पाखाने जाना पड़ता है। पाखाने में श्लेष्मायुक्त स्राव अधिक निकलता है। साथ ही गैस भी अधिक निकलती है। ऐसी स्थिति में उक्त औषधि 30 शक्ति में नियमित सेवन करानी चाहिए।


पोडोफाइलम : 
उल्टी के साथ दस्त, अधिक प्यास, पेट फूला हुआ, पेट के बल ही रोगी लेट सकता है, यकृत की जगह पर दर्द, रगड़ने पर आराम, कालरा रोग होने पर, बच्चों में सुबह के वक्त, दांत निकलने के दौरान हरा दस्त, पानीदार, बदबूदार पाखाना आदि लक्षण मिलने पर 30 शक्ति में औषधि का प्रयोग हितकारी रहता है।
कैल्केरिया कार्ब :
 जरा-सा दबाव भी (बच्चे चाक खड़िया खाते हैं) पेट पर बर्दाश्त नहीं कर पाता, पीला बदबूदार पाखाना, अधपचा खाना निकलता है, किंतु अधिक भूख लगती है, पहले पाखाना कड़ा होता है, बाद में दस्त होते हैं, 200 शक्ति में लें।
• पहले सिरदर्द, फिर दस्त – ‘एलो’, ‘पोडोफाइलम’।
• खट्टी वस्तुओं से – ‘एलो’, ‘एण्टिमकूड’।
• किसी आकस्मिक बीमारी के कारण – ‘चाइना’, ‘कार्बोवेज’।
• शराब पीने के कारण – ‘आर्सेनिक’, ‘लेकेसिस’, ‘नक्सवोमिका’।
• बुखार के कारण – ‘कैमोमिला’ ।
• नहाने के बाद – ‘एण्टिमक्रूड’।
• बियरपीने के कारण – ‘कालीबाई’, ‘सल्फर’, ‘इपिकॉक’, ‘म्यूरियाटिक एसिड’ आदि।
• गोभी खाने से – ‘ब्रायोनिया’, ‘पेट्रोलियम’।
• नाक बहने एवं फेफड़ों की गड़बड़ी के साथ – ‘सैंग्युनेरिया’।
• मौसम-परिवर्तन के साथ – ‘एकोनाइट’, ‘ब्रायोनिया’, ‘नेट्रम सल्फ’, ‘केप्सिकम’, ‘डल्कामारा’, ‘मरक्यूरियस’।
• आइसक्रीम व अन्य ठंडी वस्तुओं के कारण – ‘पल्सेटिला’, ‘एकोनाइट’, ‘आर्सेनिक’, ‘ब्रायोनिया’।
• कॉफी के कारण – ‘साइक्लामेन’, ‘थूजा’ ।
• जुकाम दब जाने से – ‘सैंग्युनेरिया’ ।
• अंडे खाने के बाद – ‘चिनिनम आर्स’।
• उत्तेजना अथवा व्यग्रता के कारण – ‘एकोनाइट’, ‘अर्जेण्टम नाइट्रिकम’, ‘जेलसीमियम’, ‘इग्नेशिया’, ‘ओपियम’, ‘फॉस्फोरिक एसिड’।
• त्वचा रोग हो जाने पर – ‘ब्रायोनिया’, ‘सल्फर’।
• चिकनी एवं तैलीय वस्तुएं खाने के बाद – ‘पल्सेटिला’।
• फल खाने के बाद – ‘आसेंनिक’, ‘ब्रायोनिया’, ‘चाइना’, ‘पोडोफाइलम’, ‘पल्सेटिला’, ‘क्रोटनटिंग’।
• पेट की गड़बड़ियों के कारण – ‘एण्टिमकूड’, ‘नक्सवोमिका’, ‘पल्सेटिला’ ।
• गर्मी के कारण – ‘एण्टिमकूड’, ‘ब्रायोनिया’, ‘कैमोमिला’, ‘सिनकोना’, ‘क्यूफिया’, ‘इपिकॉक’, ‘पीडोफाइलम’।
• अम्लता (हाइपर एसिडिटी) के कारण – ‘कैमोमिला’, ‘रयूम’, ‘रोविनिया’ ।
• अांतों की कमजोरी के कारण – ‘अर्जेण्टमनाइट’, ‘सिनकोना’, ‘सिकेल’।
• पीलिया के कारण – ‘चिओनेंथस’
• मांस खाने के कारण – ‘आर्सेनिक’, ‘क्रोटनटिंग’।
• दूध पीने के कारण – ‘एथूजा’, ‘मैगकार्ब’, ‘नक्समॉश’, ‘मैगमूर’, ‘सीपिया’।
• चलने-फिरने से – ‘ब्रायोनिया’।
• ऊपर से नीचे उतरने (सीढ़ियां उतरने) के कारण – ‘बोरैक्स’, ‘सैनीक्यूला’ ।
• गुर्दो के संक्रमण के कारण – ‘टेरेबिंथ’ ।
• प्याज खाने से – ‘थूजा’ ।
• सूअर का मांस खाने से – ‘एकोनाइट’, ‘पल्सेटिला’ ।
• मिठाई खाने के कारण – ‘अर्जेण्टम नाइट्रिकम’, ‘गेम्बोजिया’।
• तम्बाकू खाने से – ‘टेबेकम’, ‘कैमोमिला’।
• क्षयरोग के साथ दस्त – ‘आर्निका’, ‘बेप्टिशिया’, ‘सिनकोना’, ‘क्यूप्रमआस’, ‘फॉस्फोरस’ आदि।
• सन्निपात ज्वर के साथ – ‘आर्सेनिक’, ‘बेप्टिशिया’, ‘हायोसाइमस’, ‘म्यूरियाटिक एसिड’।
• आंतों में घाव हो जाने के कारण – ‘मर्ककॉर’, ‘कालीबाई’।
• पेशाब के साथ दस्त – ‘एलोस’, ‘एलूमिना’, ‘एपिस’।
• खांसने पर पाखाना निकल जाना – ‘कॉस्टिकम’।


टीके वगैरह लगने के बाद (बच्चों में) दस्त होना – ‘साइलेशिया’, ‘थूजा’ ।
• सब्जियां (तरबूज वगैरह) खाने के बाद – ‘आर्सेनिक’, ‘ब्रायोनिया’ ।
• प्रदूषित जल पीने के कारण – ‘जिंजिबर’, ‘एल्सटोनिया’, ‘कैम्फर’ ।
• बच्चों में दस्त होना – ‘एकोनाइट’, ‘एथूजा’, ‘अर्जेण्टमनाइट’, ‘आर्सेनिक’, ‘बेलाडोना’, ‘बोरैक्स’, ‘कैल्केरिया कार्ब’, ‘कैल्केरियाफॉस’, ‘कैमोमिला’, ‘कोलोसिंथ’, ‘क्रोटनटिंग’, ‘सल्फर’, ‘वेरेट्रम एल्बम’।
• बच्चों में दांत निकलने के दौरान दस्त – ‘एकोनाइट’, ‘एथूजा’, ‘बेलाडोना’, ‘कैल्केरिया आदि।
• बूढ़े व्यक्तियों को दस्त होने पर – ‘एण्टिमकूड’, ‘कार्बोवेज’, ‘सिनकोना’, ‘सल्फर’ ।
• स्त्रियों में मासिक ऋतु स्राव से पहले व बाद में दस्त – ‘अमोनब्रोम’, ‘बोविस्टा’।
• लेटे रहने पर स्त्रियों को दस्त की हाजत होना – ‘कैमोमिला’, ‘हायोसाइमस’, ‘सिकेलकॉर’।