26.10.16

दमा (अस्थमा ) की विषद जानकारी और आयुर्वेदिक नुस्खे





जब किसी व्यक्ति की सूक्ष्म श्वास नलियों में कोई रोग उत्पन्न हो जाता है तो उस व्यक्ति को सांस लेने मे परेशानी होने लगती है जिसके कारण उसे खांसी होने लगती है। इस स्थिति को दमा रोग कहते हैं।अस्थमा (Asthma) एक गंभीर बीमारी है, जो श्वास नलिकाओं को प्रभावित करती है। श्वास नलिकाएं फेफड़े से हवा को अंदर-बाहर करती हैं। अस्थमा होने पर इन नलिकाओं की भीतरी दीवार में सूजन होता है। यह सूजन नलिकाओं को बेहद संवेदनशील बना देता है और किसी भी बेचैन करनेवाली चीज के स्पर्श से यह तीखी प्रतिक्रिया करता है। जब नलिकाएं प्रतिक्रिया करती हैं, तो उनमें संकुचन होता है और उस स्थिति में फेफड़े में हवा की कम मात्रा जाती है। इससे खांसी, नाक बजना, छाती का कड़ा होना, रात और सुबह में सांस लेने में तकलीफ आदि जैसे लक्षण पैदा होते हैं।अस्थमा एक अथवा एक से अधिक पदार्थों (एलर्जेन) के प्रति शारीरिक प्रणाली की अस्वीकृति (एलर्जी) है। इसका अर्थ है कि हमारे शरीर की प्रणाली उन विशेष पदार्थों को सहन नहीं कर पाती और जिस रूप में अपनी प्रतिक्रिया या विरोध प्रकट करती है, उसे एलर्जी कहते हैं। हमारी श्वसन प्रणाली जब किन्हीं एलर्जेंस के प्रति एलर्जी प्रकट करती है तो वह अस्थमा होता है। यह साँस संबंधी रोगों में सबसे अधिक कष्टदायी है। अस्थमा के रोगी को सांस फूलने या साँस न आने के दौरे बार-बार पड़ते हैं और उन दौरों के बीच वह अकसर पूरी तरह सामान्य भी हो जाता है।
"दमा का कोई स्थायी इलाज नहीं है लेकिन इस पर नियंत्रण जरूर किया जा सकता है,ताकि दमे से पीड़ित व्यक्ति सामान्य जीवन व्यतीत कर सके।अस्थमा तब तक ही नियंत्रण में रहता है, जब तक मरीज जरूरी सावधाननियां बरत रहा है।"
दमा रोग के लक्षण:-
इस रोग के लक्षण व्यक्ति के अनुसार बदलते हैं। अस्थमा के कई लक्षण तो ऐसे हैं, जो अन्य श्वास संबंधी बीमारियों के भी लक्षण हैं। इन लक्षणों को अस्थमा के अटैक के लक्षणों के रूप में पहचानना जरूरी है।दमा रोग में रोगी को सांस लेने तथा सांस को बाहर छोड़ने में काफी जोर लगाना पड़ता है। जब मनुष्य के शरीर में पाई जाने वाले फेफड़ों की नलियों (जो वायु का बहाव करती हैं) की छोटी-छोटी तन्तुओं (पेशियों) में अकड़न युक्त संकोचन उत्पन्न होता है तो फेफड़ा वायु (श्वास) की पूरी खुराक को अन्दर पचा नहीं पाता है। जिसके कारण रोगी व्यक्ति को पूर्ण श्वास खींचे बिना ही श्वास छोड़ देने को मजबूर होना पड़ता है। इस अवस्था को दमा या श्वास रोग कहा जाता है। दमा रोग की स्थिति तब अधिक बिगड़ जाती है तब रोगी को श्वास लेने में बहुत दिक्कत आती है क्योंकि वह सांस के द्वारा जब वायु को अन्दर ले जाता है तो प्राय: प्रश्वास (सांस के अन्दर लेना) में कठिनाई होती है तथा नि:श्वास (सांस को बाहर छोड़ना) लम्बे समय के लिए होती हैं। दमा रोग से पीड़ित व्यक्ति को सांस लेते समय हल्की-हल्की सीटी बजने की आवाज भी सुनाई पड़ती है।
जब दमा रोग से पीड़ित रोगी का रोग बहुत अधिक बढ़ जाता है तो उसे
दौरा आने की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिससे रोगी को सांस लेने में बहुत अधिक दिक्कत आती है तथा व्यक्ति छटपटाने लगता है। जब दौरा अधिक क्रियाशील होता है तो शरीर में ऑक्सीजन के अभाव के कारण रोगी का चेहरा नीला पड़ जाता है। यह रोग स्त्री-पुरुष दोनों को हो सकता है। जब दमा रोग से पीड़ित रोगी को दौरा पड़ता है तो उसे सूखी खांसी होती है और ऐंठनदार खांसी होती है। इस रोग से पीड़ित रोगी चाहे कितना भी बलगम निकालने के लिए कोशिश करे लेकिन फिर भी बलगम बाहर नहीं निकलता है। अस्थमा के सभी रोगियों को रात के समय, खासकर सोते हुए, ज्यादा कठिनाई महसूस होती है।
इसके मुख्य लक्षण कुछ इस प्रकार हैं ….
दमा रोग से पीड़ित रोगी को रोग के शुरुआती समय में खांसी, सरसराहट और सांस उखड़ने के दौरे पड़ने लगते हैं।
दमा रोग से पीड़ित रोगी को वैसे तो दौरे कभी भी पड़ सकते हैं लेकिन रात के समय में लगभग 2 बजे के बाद दौरे अधिक पड़ते हैं।
दमा रोग से पीड़ित रोगी को कफ सख्त, बदबूदार तथा डोरीदार निकलता है।
दमा रोग से पीड़ित रोगी को सांस लेनें में बहुत अधिक कठिनाई होती है।
सांस लेते समय अधिक जोर लगाने पर रोगी का चेहरा लाल हो जाता है।
लगातार छींक आना
सामान्यतया अचानक शुरू होता है
यह किस्तों मे आता है
रात या अहले सुबह बहुत तेज होता है
ठंडी जगहों पर या व्यायाम करने से या भीषण गर्मी में तीखा होता है
दवाओं के उपयोग से ठीक होता है, क्योंकि इससे नलिकाएं खुलती हैं
बलगम के साथ या बगैर खांसी होती है
सांस फूलना, जो व्यायाम या किसी गतिविधि के साथ तेज होती है
शरीर के अंदर खिंचाव (सांस लेने के साथ रीढ़ के पास त्वचा का खिंचाव)
अस्थमा के लिए जांच
शहरों में पोल्यूशन बढने की वजह से अस्थमा रोगियों की संख्यां हर रोज बढ रही है। अस्थमा या दमा एक गंभीर वीमारी है जो श्वांस नलिकाओं को प्रभावित करती है। अस्थमा होने पर श्वांस नलिकाओं की भीतरी दीवार पर सूजन आ जाती है। इस स्थिति में सांस लेने में दिक्कत होती है और फेफड़ों में हवा की मात्रा कम हो जाती है। इससे खांसी आती है, नाक बजती है, छाती कड़ी हो सकती है, रात और सुबह में सांस लेने में तकलीफ आदि दिक्कतें शुरू हो जाती हैं। दमा का दौरा पडने पर श्वांस नलिकाएं पूरी तरह बंद हो जाती हैं जिससे शरीर के महत्व पूर्ण अंगों में आक्सीजन की आपूर्ति बंद हो जाती है। अस्थंमा एक गंभीर बीमारी है और इसका दौरा पडने पर व्यक्ति की मौत तक हो सकती है।
चेस्ट एक्सरे
अस्थमा में चेस्ट का एक्सरे कराना चाहिए। चेस्ट एक्सरे द्वारा अस्थमा को फेफडे की अन्य वीमारियों से अलग किया जा सकता है। एक्सरे द्वारा अस्थमा को देखा नहीं जा सकता लेकिन इससे संबंधित स्थितियां जानी जा सकती हैं।
स्पिरोमेटी
यह एक सामान्य प्रकार का टेस्ट होता है जो किसी भी मेडिकल क्लिनिक में हो सकता सकता है। इस जांच से सांस लेने की दिक्कमत या हृदय रोग को पहचाना जा सकता है। इस जांच से आदमी के सांस लेने की गति का पता चलता है।
एलर्जी टेस्ट
कई बार डॉक्टर एलर्जी टेस्ट के बारे में सलाह देते हैं, इस टेस्ट से यह पता लगाया जा सकता है कि आदमी कि टिगर्स की सही स्थिति क्‍या है और कौन सी परिस्थितियां आपको प्रभावित कर सकती हैं।
स्किन प्रिक टेस्ट
स्किन प्रिक टेस्ट बहुत साधारण तरीके से होता है और एलर्जिक टिगर्स जानने का बहुत ही प्रभावी तरीका होता है। यह बहुत ही सस्ता, तुरंत रिजल्ट देने वाला और बहुत ही सुरक्षित टेस्ट होता है।
पीक फ्लो
इस जांच द्वारा पता लगया जा सकता है कि आदमी अपने फेफडे से कितनी तेजी से और आसानी से सांसों को बाहर कर रहा हे। अस्थमा को बेहतर तरीके से कंट्रोल करने के लिए यह जरूरी है कि आप अपनी सांसों को तेजी से बाहर निकालें। इस मशीन में एक मार्कर होता है जो सांस बाहर निकालते समय स्लाइड को बाहर की ओर ढकेलता है।
ब्लड टेस्ट
ब्लड टेस्ट, द्वारा अस्थमा का पता नहीं लगाया जा सकता है लेकिन शरीर के त्वचा की एलर्जी के लिए यह टेस्ट बहुत ही कारगर होता है।
शारीरिक परीक्षण
अस्थमा की जांच के लिए डॉक्टर आपका शारीरिक परीक्षण भी कर सकते हैं जैसे, चेस्ट के घरघराहट की आवाज सुनना। चेस्टं के घरघराहट की आवाज से अस्थतमा की गंभीरता को पहचाना जा सकता है।

दमा रोग होने का कारण:-
अब हम अस्थमा होने के कारणों पर प्रकाश डालते हैं ,यह कारणों से हो सकता है। अनेक लोगों में यह एलर्जी मौसम, खाद्य पदार्थ, दवाइयाँ इत्र, परफ्यूम जैसी खुशबू और कुछ अन्य प्रकार के पदार्थों से हो सकता हैं; कुछ लोग रुई के बारीक रेशे, आटे की धूल, कागज की धूल, कुछ फूलों के पराग, पशुओं के बाल, फफूँद और कॉकरोज जैसे कीड़े के प्रति एलर्जित होते हैं। जिन खाद्य पदार्थों से आमतौर पर एलर्जी होती है उनमें गेहूँ, आटा दूध, चॉकलेट, बींस की फलियाँ, आलू, सूअर और गाय का मांस इत्यादि शामिल हैं। कुछ अन्य लोगों के शरीर का रसायन असामान्य होता है, जिसमें उनके शरीर के एंजाइम या फेफड़ों के भीतर मांसपेशियों की दोषपूर्ण प्रक्रिया शामिल होती है। अनेक बार अस्थमा एलर्जिक और गैर-एलर्जीवाली स्थितियों के मेल से भड़कता है, जिसमें भावनात्मक दबाव, वायु प्रदूषण, विभिन्न संक्रमण और आनुवंशिक कारण शामिल हैं। एक अनुमान के अनुसार, जब माता-पिता दोनों को अस्थमा या हे फीवर (Hay Fever) होता है तो ऐसे 75 से 100 प्रतिशत माता-पिता के बच्चों में भी एलर्जी की संभावनाएँ पाई जाती हैं।इसके कुछ मुख्य कारण ये हैं….
औषधियों का अधिक प्रयोग करने के कारण कफ सूख जाने से दमा रोग हो जाता है।
जानवरों से (जानवरों की त्वचा, बाल, पंख या रोयें से)
ठंडी हवा या मौसमी बदलाव

मनुष्य के शरीर की पाचन नलियों में जलन उत्पन्न करने वाले पदार्थों का सेवन करने से भी दमा रोग हो सकता है।
मल-मूत्र के वेग को बार-बार रोकने से दमा रोग हो सकता है।
धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों के साथ रहने या धूम्रपान करने से दमा रोग हो सकता है।यदि गर्भावस्था के दौरान कोई महिला तंबाकू के धुएं के बीच रहती है, तो उसके बच्चे को अस्थमा होने का खतरा होता है।मजबूत भावनात्मक मनोभाव (जैसे रोना या लगातार हंसना) और तनाव
फेफड़ों में कमजोरी, हृदय में कमजोरी, गुर्दों में कमजोरी, आंतों में कमजोरी, स्नायुमण्डल में कमजोरी तथा नाकड़ा रोग हो जाने के कारण दमा रोग हो जाता है।
मनुष्य की श्वास नलिका में धूल तथा ठंड लग जाने के कारण दमा रोग हो सकता है।
धूल के कण, खोपड़ी के खुरण्ड, कुछ पौधों के पुष्परज, अण्डे तथा ऐसे ही बहुत सारे प्रत्यूजनक पदार्थों का भोजन में अधिक सेवन करने के कारण दमा रोग हो सकता है।
पारिवारिक इतिहास, जैसे की परिवार में पहले किसी को अस्थमा रहा हो तो आप को अस्थमा होने की सम्भावना है।
मोटापे से भी अस्थमा हो सकता है। अन्य समस्याएं भी हो सकती हैं।
सिर्फ पदार्थ ही नहीं बल्कि भावनाओं से भी दमे का दौरा शुरू हो सकता है। जैसे क्रोध, रोना व विभिन्न प्रकार की उत्तेजनाएं।
खून में किसी प्रकार से दोष उत्पन्न हो जाने के कारण भी दमा रोग हो सकता है।
नशीले पदार्थों का अधिक सेवन करने के कारण दमा रोग हो सकता है।
खान-पान के गलत तरीके से दमा रोग हो सकता है।




मानसिक तनाव, क्रोध तथा अधिक भय के कारण भी दमा रोग हो सकता है।
खांसी, जुकाम तथा नजला रोग अधिक समय तक रहने से दमा रोग हो सकता है।
नजला रोग होने के समय में संभोग क्रिया करने से दमा रोग हो सकता है।
भूख से अधिक भोजन खाने से दमा रोग हो सकता है।
मिर्च-मसाले, तले-भुने खाद्य पदार्थों तथा गरिष्ठ भोजन करने से दमा रोग हो सकता है।
यदि आपके घर में पालतू जानवर है तो उसे अपने विस्तर पर या बेडरूम में न आने दें |
पंखोंवाले तकिए का इस्तेमाल न करें |
मोल्ड की संभावना वाली जगहों जैसे गार्डन या पत्तियों के ढेरों में काम न करें और न ही खेलें |
दोपहर के वक्त जब परागकणों की संख्या बढ जाती है बाहर न ही काम करें और न ही खेलें |
अस्थमा से प्रभावित व्यक्ति से किसी तरह का अलग व्यवहार न करें |
अस्थमा का अटैक आने पर न घबराएं.इससे प्रॉब्लम और भी बढ जाएगी. ये बात उन माता-पिता को ध्यान देने वाली है जिनके बच्चों को अस्थमा है अस्थमा अटैक के दौरान बच्चों को आपकी प्रतिक्रिया का असर पडता है यदि आप ही घबरा जाएंगे तो आपको देख उनकी भी घबराहट और भी बढ सकती है | एलर्जी की जांच कराएं इसकी मदद से आप अपने अस्थमा ट्रिगर्स मूल कारण की पहचान कर सकते है

अस्थमा के बारे में अपनी और या अपने बच्चे की जानकारी बढाएं इससे इस बीमारी पर अच्छी तरह से कंट्रोल करने की समझ बढेगी |
बेड सीट और मनपसंद स्टफड खिलोंनों को हर हफ्ते धोंए वह भी अच्छी क्वालिटीवाल एलर्जक को घटाने वाले डिटर्जेंट के साथ |
सख्त सतह वाले कारपेंट अपनाए |
एलर्जी की जांच कराएं इसकी मदद से आप अपने अस्थमा ट्रिगर्स मूल कारण की पहचान कर सकते है |
किसी तरह की तकलीफ होने पर या आपकी दवाइयों के आप पर बेअसर होने पर अपने डॉक्टर से संर्पक करें |
इस रोग से पीड़ित रोगी को शराब, तम्बाकू तथा अन्य नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि ये पदार्थ दमा रोग की तीव्रता को बढ़ा देते हैं।
एयरटाइट गद्दे .बॉक्स स्प्रिंग और तकिए के कवर का इस्तेमाल करें ये वे चीजें है जहां पर अक्सर धूल-कण होते है जो अस्थमा को ट्रिगर करते है
पालतू जानवरों को हर हफ्ते नहलाएं,इससे आपके घर में गंदगी पर कंट्रोल रहेगा |
अस्थमा से प्रभावित बच्चों को उनकी उम्र वाले बच्चों के साथ सामान्य गतिविधियों में भाग लेने दें |
दमा रोग से पीड़ित रोगी को ध्रूमपान नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से रोगी की अवस्था और खराब हो सकती है।घर में या अस्थमा से प्रभावित लोगों के आस -पास धूम्रपान न करें संभव हो तो धूम्रपान ही करना बंद कर दें क्योंकि अस्थमा से प्रभावित कुछ लोगों को कपडों पर धुएं की महक से ही अटैक आ सकता है |
इस रोग से पीड़ित रोगी को भोजन में लेसदार पदार्थ तथा मिर्च-मसालेदार चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।
रोगी व्यक्ति को धूल तथा धुंए भरे वातावरण से बचना चाहिए क्योंकि धुल तथा धुंए से यह रोग और भी बढ़ जाता है।
रोगी व्यक्ति को मानसिक परेशानी, तनाव, क्रोध तथा लड़ाई-झगड़ो से बचना चाहिए।
दमा रोग से पीड़ित रोगी को गर्म बिस्तर पर सोना चाहिए।
दमा रोग से पीड़ित रोगी को अपनी रीढ़ की हड्डी की मालिश करवानी चाहिए तथा इसके साथ-साथ कमर पर गर्म सिंकाई करवानी चाहिए। इसके बाद रोगी को अपनी छाती पर न्यूट्राल लपेट करवाना चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से कुछ ही दिनों में दमा रोग ठीक हो जाता है।
शरीर शोधन में कफ के निवारण के लिए वमन (उल्टी) लाभप्रद उपाय है। श्वास के रोगी को आमाशय, आतों और फेफड़ों के शुद्धीकरण के लिएअमलतास' का विरेचन विशेष लाभप्रद है। इसके लिए 250 मि.ली. पानी में 5 से 10 ग्राम अमलतास का गूदा उबालें। चौथाई शेष रहने पर छानकर रात को सोते समय दमा पीड़ित शख्स को चाय की तरह पिला दें।
दमा रोग से पीड़ित रोगी को अपने रोग के होने के कारणों को सबसे पहले दूर करना चाहिए और इसके बाद इस रोग को बढ़ाने वाली चीजों से परहेज करना चहिए। फिर इस रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार कराना चाहिए।
इस रोग से पीड़ित रोगी को कभी घबराना नहीं चाहिए क्योंकि ऐसा करने से दौरे की तीव्रता (तेजी) बढ़ सकती है।
दमा रोग से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी को कम से कम 10 मिनट तक कुर्सी पर बैठाना चाहिए क्योंकि आराम करने से फेफड़े ठंडे हो जाते हैं। इसके बाद रोगी को होंठों से थोड़ी-थोड़ी मात्रा में हवा खींचनी चाहिए और धीरे-धीरे सांस लेनी चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
दमा रोग से पीड़ित रोगी को अपने पेड़ू पर मिट्टी की पट्टी और उसके बाद गुनगुने जल का एनिमा लेना चाहिए। फिर लगभग 10 मिनट के बाद सुनहरी बोतल का सूर्यतप्त जल जो प्राकृतिक चिकित्सा से बनाया गया है उसे लगभग 25 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन पीना चाहिए। इस प्रकार की क्रिया को प्रतिदिन नियमपूर्वक करने से दमा रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
दमा रोग से पीड़ित रोगी को सप्ताह में 2-3 बार सुबह के समय में कुल्ला-दातुन करना चाहिए। इसके बाद लगभग डेढ़ लीटर गुनगुने पानी में 15 ग्राम सेंधानमक मिलाकर धीरे-धीरे पीकर फिर गले में उंगुली डालकर उल्टी कर देनी चाहिए। इससे रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।




दमा रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में रीढ़ की हड्डी को सीधे रखकर खुली और साफ स्वच्छ वायु में 7 से 8 बार गहरी सांस लेनी चाहिए और छोड़नी चाहिए तथा कुछ दूर सुबह के समय में टहलना चाहिए।
दमा रोग से पीड़ित रोगी को चिंता और मानसिक रोगों से बचना चाहिए क्योंकि ये रोग दमा के दौरे को और तेज कर देते हैं।
दमा रोग से पीड़ित रोगी को अपने पेट को साफ रखना चाहिए तथा कभी कब्ज नहीं होने देना चाहिए।
दमा रोग से पीड़ित रोगी को धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों के साथ नहीं रहना चाहिए तथा धूम्रपान भी नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से इस रोग का प्रकोप और अधिक बढ़ सकता है।
दमा रोग को ठीक करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार कई प्रकार के आसन भी है जिनको करने से दमा रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है। ये आसन इस प्रकार हैं- योगमुद्रासन, मकरासन, शलभासन, अश्वस्थासन, ताड़ासन, उत्तान कूर्मासन, नाड़ीशोधन, कपालभाति, बिना कुम्भक के प्राणायाम, उड्डीयान बंध, महामुद्रा, श्वास-प्रश्वास, गोमुखासन, मत्स्यासन, उत्तामन्डूकासन, धनुरासन तथा भुजांगासन आदि।
कंबल या दरी बिछाकर घुटनों के बल लेट जाएं और अपने दाहिने पांव को घुटने से मोड़कर नितंब के नीचे लगा दें। अब बाएं पांव को भी घुटने से मोड़कर, बाएं भुजदण्ड पर रख लें और दोनों हाथों को गर्दन के पीछे ले जाकर परस्पर मिला लें। इस आसन की यही पूर्ण स्थिति है।इस आसन से फेंफड़ों में शक्ति आती है। दमा और क्षय आदि रोगों को यह शांत करता है। साथ ही हाथ-पांवों में लचीलापन और दृढ़ता लाकर उन्हें मजबूत बनाता है। यह आसन लड़के और लड़कियों के लिए बेहद फायदेमंद है।
बायीं नासिका के छिद्र में रुई लगाकर बन्द कर लेने से दाहिनी नासिका ही चलेगी। इस स्वर चिकित्सा से दमा के रोगियों को बहुत आराम मिलता है।
भोजन में प्रात: तुलसी, अदरक, गुलबनफसा आदि की चाय या सब्जी का सूप, दोपहर में सादी रोटी व हरी सब्जी, गर्म दाल, तीसरे पहर सूप या देशी चाय और रात्रि में सादे तरीके से बनी मिश्रित हरी सब्जिया माइक्रोवेब या कुकर से वाष्पित (स्ट्रीम्ड) सब्जियों का सेवन करे।
दमा रोग से पीड़ित रोगी को रात के समय में जल्दी ही भोजन करके सो जाना चाहिए तथा रात को सोने से पहले गर्म पानी को पीकर सोना चाहिए तथा अजवायन के पानी की भाप लेनी चाहिए। इससे रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
दमा रोग से पीड़ित रोगी को अपनी छाती पर तथा अपनी रीढ़ की हड्डी पर सरसों के तेल में कपूर डालकर मालिश करनी चाहिए तथा इसके बाद भापस्नान करना चाहिए। ऐसा प्रतिदिन करने से रोगी का रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
दमा रोग से पीड़ित रोगी का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन नींबू तथा शहद को पानी में मिलाकर पीना चाहिए और फिर उपवास रखना चाहिए। इसके बाद 1 सप्ताह तक फलों का रस या हरी सब्जियों का रस तथा सूप पीकर उपवास रखना चाहिए। फिर इसके बाद 2 सप्ताह तक बिना पका हुआ भोजन करना चाहिए। इसके बाद साधारण भोजन करना चाहिए।
सबसे पहले पेट पर मिट्टी की पट्टी सुबह-शाम रखकर कब्ज के कारण आतों में सचित मल को मुलायम करे। तत्पश्चात एनिमा या वस्ति क्रिया अथवा अरंडी के तेल से ‘गणेश क्रिया’ करके कब्ज को तोड़े।
नाक के बढ़े हुए मास या हड्डी से छुटकारा पाने के लिए तेल नेति, रबर नेति व नमक पड़े हुए गर्म पानी से जल नेति करे।
फेफड़े में बसी ठडक निकालने के लिए छाती और पीठ पर कोई गर्म तासीर वाला तेल लगाकर ऊपर से रुई की पर्त बिछाकर रातभर या दिन भर बनियान पहने रहें।
बायीं नासिका के छिद्र में रुई लगाकर बन्द कर लेने से दाहिनी नासिका ही चलेगी। इस स्वर चिकित्सा से दमा के रोगियों को बहुत आराम मिलता है
अस्थमा के लिए उचित आहार
मछली के नियमित सेवन से आप कई बीमारियों से निजात पा सकते हैं। जब बात हो अस्थमा की तो अस्थमैटिक मरीजों को अस्थमा से जुड़ी समस्याओं से निजात पाने के लिए निश्चित रूप से मछली का सेवन करना चाहिए। फैटी फिश अस्थमा रोगियों के लिए बहुत फायदेमंद होती है। अस्थमा के मरीजों को सप्ताह में कम से कम दो बार मछली का सेवन जरूर करना चाहिए। इससे ना सिर्फ वे आसानी से सांस ले सकते हैं बल्कि उनके गले की सूजन, खराश, संकरी श्‍वासनली इत्यादि में भी सुधार होता है। क्या आप जानते हैं जो अस्थमैटिक मरीज सप्ताह में दो बार मछली का सेवन करते हैं, ऐसे मरीजों में लगभग 90 फीसदी अस्थमा की समस्याएं कम हो जाती हैं।

समुद्री मछली, सैल्मन, ट्यूना और कॉड लिवर इत्यादि को मिलाकर ही फिश ऑयल और फिश के अन्य उत्पादों का निर्माण किया जाता है। फिश ऑयल में ओमेगा 3 फैटी एसिड होता है जो कि बहुत जल्दी अस्‍थमा रोगियों को ठीक करने में कारगार है। यानी यदि अस्थमा रोगी फिश ऑयल का सेवन करते हैं तो ये उनके स्‍वास्‍थ्‍य के लिए लाभदायक है। इससे गले में आने वाली सूजन से निजात मिलती हैं। जो बच्चे श्वास दमा (bronchial asthma) के शिकार होते हैं उनके लिए फिश ऑयल का सेवन बहुत फायदेमंद है। अस्थमा रोगियों के लिए रोजाना तीन ग्राम फिश ऑयल लेना उनके अस्थमा की समस्याओं को दूर कर सकता है। लेकिन यदि इससे अधिक फिश ऑयल लिया जाता है तो सांस संबंधी विकार, दस्त की समस्या और नाक से खून बहना इत्यादि की समस्या हो सकती है। अस्थमा के दौरान आराम पाने के लिए फिश ऑयल के बदले दवाओं का सेवन नहीं करना चाहिए। अस्थमा से निजात पाने के लिए फिश ऑयल का इस्तेमाल करने से पहले डॉक्टर से जरूर सलाह लेनी चाहिए। अस्थमा के अलावा फिश ऑयल से दिल की बीमारियां, अलजाइमर रोग, अर्थराइटिस और ऑस्टियोपोरोसिस जैसी बीमारियों को भी कम किया जा सकता है।
अस्थमा के रोगी को शीतल खाद्य पदार्थो और शीतल पेयों का सेवन नहीं करना चाहिए।
उष्ण मिर्च-मसाले व अम्लीय रस से बने खाद्य पदार्थो का सेवन न करें।
भोजन में अरबी, कचालू, रतालू, फूलगोभी आदि का सेवन न करें।
अस्थमा के रोगी को केले नहीं खाने चाहिए।
उड़द की दाल से बने खाद्य पदार्थो का सेवन नहीं करना चाहिए।
अस्थमा के रोगी को दही और चावल का सेवन नहीं करना चाहिए।
हाल के सर्वेक्षण से पता चलता है कि फैट युक्त पदार्थ जैसे दूध, बटर से अस्थमा की तीव्रता कम हो जाती है। वो बच्चे जो ज़्यादा फैट युक्त आहार लेते है उनकी तुलना में वो बच्चे जो फैट युक्त आहार कम लेते हैं, उनमें आस्थमा की सम्भावना अधिक होती है।
आस्थमा अटैक के समय कॉफी बहुत ही फायदेमंद सिद्ध हो सकती है क्योंकि कैफीन थियोफाइलिन से बहुत ही मिलता जुलता है और थियोफाइलिन का इस्तेमाल कई दवाओं में होता है, जिससे कि सांस लेने में मदद मिलती है। लेकिन वो लोग जो थियोफाइलिन ले रहे है उन्हें कैफीन युक्त चाय, काफी या कोल्ड ड्रिंक नहीं लेना चाहिए क्योंकि थियोफाइलिन और कैफीन मिलकर टाक्सिक हो सकते हैं। अगर आपके अटैक का कारण चिन्ता है तो आप ज़्यादा मात्रा में कैफीन ले सकते हैं।
ओमेगा 3 फैटी एसिड फेफड़ों में हुई सूजन को कम करने के साथ बार बार हो रहे आस्थमा अटैक से भी बचाने में मदद करता है। ओमेगा 3 फैटी एसिड मछलियों में पाया जाता है।
सेलेनियम भी फेफड़ों में हुई सूजन को कम करने में उपयोगी होता है। अगर सेलेनियम के साथ अस्थमैटिक्स द्वारा विटामिन सी और ई भी लिया जा रहा है तो प्रभाव दोगुना हो जाता है। सेलेनियम सी फूड, चिकेन और मीट में भी पाया जाता है।
वो खाद्य पदार्थ जिनमें कि मैगनिशीयम की मात्रा ज़्यादा होती है वो श्वास नली से अतिरिक्त हवा को अन्दर आने देते हैं जिससे कि सूजन पैदा करने वाले सेल्स भी कम हो जाते है। मैग्निशीयम की मात्रा पालक, हलिबेट, ओएस्टर में ज़्यादा होती है। कुछ खाने पीने की चीज़ों से श्वासनली में मौजूद म्यूकस बहुत पत्ला और पानी सा हो जाता है जैसे स्पाइसी खाना अदरक, प्याज़ आदि।
ऐसे फल व सब्ज़ियां जो गहरे रंग की होती हैं उनमें बीटा कैरोटिन की मात्रा बहुत अधिक होती है जैसे गाज़र, गहरे हरे रंग की सब्ज़ियां पालक आदि। फल व सब्ज़ियों का रंग जितना गहरा होता है उनमें एण्टीआक्सिडेंट की मात्रा उतनी ही अधिक होती है।
विटामिन ई का उपयोग ज़्यादातर खाना बनाने के तेल में होता है। लेकिन अस्थमा के मरीज़ को इसका उपयोग कम कर देना चाहिए।
विटामिन ई गेहूं, पास्ता और ब्रेड में भी पाया जाता है लेकिन इन आहार में विटामिन की मात्रा कम होती है।
ऐसे खाद्य पदार्थ जिनमें विटामिन बी की मात्रा ज़्यादा होती है जैसे दाल और हरी सब्ज़ियां, वो अस्थमैटिक्स को अटैक से बचाती हैं। ऐसा भी पाया गया है कि अस्थमैटिक्स में नायसिन और विटामिन बी 6 की कमी होती है।




कच्चे प्याज़ में सल्फर की मात्रा बहुत ज़्यादा होती है जिससे कि आस्थमा के मरीजों को बहुत लाभ मिलता है।
जो लोग आस्थमा जैसी बीमारी से लड़ रहे हैं, उनके लिए सबसे ज़रूरी है खाने में एण्टीआक्सिडेंट का इस्तेमाल। एण्टीआक्सिडेंट सीधा फेफड़ों में जाकर फेफड़ों की बीमारियों से और सांसों की बीमारियों से लड़ते हैं। वो खाद्य पदार्थ जिनमें विटामिन सी और ई होते है वो हर प्रकार की सूजन कम करते हैं।
साइट्रस फूड जैसे संतरे का जूस, हरी गोभी में विटामिन सी की मात्रा अधिक पायी जाती हैं और यह अस्‍थमा के मरीज़ों के लिये अच्‍छे होते हैं।
ऐसे खाद्य पदार्थ जिनमे विटामिन ए की मात्रा अधिक होती है वो फेफड़ों से एलर्जेन निकालने में बहुत उपयोगी होते हैं।


होम्योपैथी सिर्फ अस्थमा लक्षणों का उपचार नहीं करती, यह अस्थमा को जड़ से ठीक करती है। शोधों ने यह दर्शाया है कि होम्योपैथिक दवाइयां महत्वपूर्ण रूप से हमारी श्वांस लेने की क्षमता, पूर्ण स्वास्थ्य में सुधार लाती है। यह शरीर की रक्षा को भी प्रेरित करती है।


१. अर्सेनिकम अलबम (अर्सेनिकम) : इस दवा का उपयोग सामान्य तौर पर एक एक्यूट अस्थमा के रोगी के लिए किया जाता है। इसका उपयोग आम तौर पर बैचेनी, भय, कमज़ोरी और आधी रात को या आधी रात के बाद इन लक्षणों का बढना, जैसे लक्षणों से पीडित मरीज़ों के लिए किया जाता है।



२. हाऊस डस्ट माईट (हाऊस डस्ट माईट) : इस दवा का उपयोग अक्सर ऐसे मरीज़ो के लिए किया जाता है, जिन्हें घर में होनेवाली धूल से एलर्जी होती है। चूंकि लोगों में धूल की एलर्जी होना आम बात है, इस दवा को अस्थमा के एक गम्भीर दौरे के लिए एक महत्वपूर्ण उपचार माना जाता है।

३. स्पोंजिआ (रोस्टेड स्पंज) : यह दवा उन अस्थमा से पीडित लोगों के लिए उपयोग में लाई जाती है, जिनको बेहद कष्टदायी खांसी होती है, और छाती में बहुत कम या बिल्कुल भी कफ़ नहीं होता है। इस प्रकार का अस्थमा एक व्यक्ति को ठंड लगने के बाद शुरू होता है। इन मरीज़ो में अक्सर सूखी खांसी होती है।

४. लोबेलिआ (भारतीय तंबाकू) : इस दवा का उपयोग उन अस्थमा से पीडित लोगों के लिए बेहद फायदेमन्द है, जिन्हें सांस की घरघराहट के साथ एक लाक्षणिक (टिपिकल) अस्थमा का दौरा पडता है। (इसमें छाती में दबाव का एक अहसास और सूखी खांसी भी शामिल है)

५. सेमबकस नाइग्रा (एल्डर) : इस दवा का उपयोग उन अस्थमा से पीडित लोगों के लिए बेहद फायदेमन्द है, जिन लोगों में सांस की घरघराहट की आवाज़ के साथ दम घुटने के लक्षण दिखाई देते हैं, खासकर यदि ये लक्षण आधी रात को या आधी रात के बाद, या लेटने के दौरान या जब मरीज़ ठंडी हवा के संपर्क में आते हैं, ऐसी स्थिति में अधिक बढते हैं।

६. इपेकक्युआन्हा (इपेकाक रूट) : इस दवा का उपयोग उन अस्थमा से पीडित लोगों के लिए बेहद फायदेमन्द है, जिन लोगों की छाती में बहुत अधिक मात्रा में बलगम होता है।

७. एंटीमोनियम टेर्टारिकम (टार्टर एमेटिक) : इस दवा का उपयोग उन अस्थमा से पीडित बुजुर्गों और बच्चों के लिए बेहद फायदेमन्द है, जिनकी पूर्ण श्वसन-प्रश्वसन प्रक्रिया में शिथिलता या तेज़ी हो।
अस्थमा को नियन्त्रित करने के कुछ उपाय इस प्रकार हैं :-
तुलसी के पत्तों को अच्छी तरह से साफ कर उनमें पिसी काली मिर्च डालकर खाने के साथ देने से दमा नियंत्रण में रहता है।
दमे का दौरा बार-बार न पड़े इसके लिए हल्दी और शहद मिलाकर चांटना चाहिए।
तुलसी दमे को नियंत्रि‍त करने में लाभकरी है। तुलसी को पानी के साथ पीसकर उसमें शहद डालकर चाटने से दमे से राहत मिलती है।
दमे आमतौर पर एलर्जी के कारण भी होता है। ऐसे में एलर्जी को नियंत्रि‍त करने के लिए दूध में हल्दी डालकर पीनी चाहिए।
बच्चे का असाध्य दमा - अमलतास का गूदा 15 ग्राम दो कप पानी में डालकर उबालें चौथाई भाग बचने पर छान लें और सोते समय रोगी को गरम-गरम पिला दें । फेफड़ों में जमा हुआ बलगम शौच मार्ग से निकल जाता है । लगातार तीन दिन लेने से जमा हुआ कफ निकल कर फेफड़े साफ हो जाते है । महीने भर लेने से फेफड़े कर तपेदिक ठीक हो सकती है ।
दमे के उपचार के लिए तो आक एक रामबाण औषधि है। आक के पीले पड़े पत्ते लेकर चूना तथा नमक बराबर मात्रा में लेकर, पानी में घोलकर उसके पत्तों पर लेप करें। इन पत्तों को धूप में सुखाकर मिट्टी की हांड़ी में बंद करके उपलों की आग में रखकर भस्म बना लें। इस भस्म की दो−दो ग्राम मात्रा का दिन में दो बार सेवन करने से दमे में आश्चर्यजनक लाभ होता है। इस दवा के सेवन के साथ−साथ यह भी जरूरी है कि रोगी दही तथा खटाई का सेवन नहीं करे।
दमा के रोगियों में मदार के फूल एवं लौंग 10 से 20 ग्राम क़ी मात्रा में काली मिर्च के पाउडर 2.5 ग्राम की मात्रा के साथ अच्छी तरह पीसकर सुबह शाम 250 मिलीग्राम की मात्रा की एक एक गोली देने से भी लाभ मिलता है।
एक पका केला छिला लेकर चाकू से लम्बाई में चीरा लगाकर उसमें एक छोटा चम्मच दो ग्राम कपड़छान की हुई काली मिर्च भर दें । फिर उसे बगैर छीलेही, केले के वृक्ष के पत्ते में अच्छी तरह लपेट कर डोरे से बांध कर 2-3 घंटे रख दें । बाद में केले के पत्ते सहित उसे आग में इस प्रकार भूने की उपर का पत्ता जले । ठंडा होने पर केले का छिलका निकालकर केला खा लें ।प्रतिदिन सुबह में केले में काली मिर्च का चूर्ण भरें। और शाम को पकावें ।15-20 दिन में खूब लाभ होगा ।
केला के पत्तों को सुखाकर किसी बड़े बर्तन में जला लेवें। फिर कपड़छान कर लें और इस केले के पत्ते की भरम को एक कांच की साफ शीशी या डिब्बे में रख लें । बस, दवा तैयार है ।
एक साल पुराना गुड़ 3 ग्राम चिकनी सुपारी का आधा से थोड़ा कम वनज को 2-3 चम्मच पानी में भिगों दें । उसमें 1-4 चौथाई दवा केले के पत्ते की राख डाल दें और पांच-दस मिनट बाद ले लें । दिनभर में सिर्फ एक बार ही दवा लेनी है, कभी भी ले लेवें ।
दमा में सरसों का तेल और गुड़ मिलाकर चाटने से भी आराम पहुंचता है और कफ भी निकल जाता है।
दमे के रोगी को नित्य प्रात: एक नींबू, दो चम्मच शहद और एक चम्मच अदरक का रस एक कप पानी में पीते रहने से बहुत लाभ होता है। दमे के दौरे के समय भी दिया जा सकता है।
दमा के रोगी के लिए अंगूर का सेवन बहुत लाभदायक है।
रात को सोने से पहले भुने चने खाकर ऊपर से थोड़ा-सा गरम दूध पीना भी लाभप्रद है।
गाजर का रस सुबह व दोपहर प्रतिदिन पीने से इस रोग से मुक्ति में सहारा मिलता है।
रात को सोने से पूर्व एक दो काली मिर्च लेने से भी आराम पहुंचता है।
दूध में दो पीपल उबालकर, छानकर सेवन करें।
सैंधावादि तेल की छाती पर मालिश करने से अस्थमा रोग में बहुत आराम मिलता है।
चौलाई की सब्जी बनाकर खाने से अस्थमा रोगी को बहुत लाभ होता है।
तीन-चार लौंग जल में उबालकर, छानकर, थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पीने से अस्थमा का प्रकोप नष्ट होता है।
नीबू का रस, अदरक का रस और मधु मिलाकर सेवन करने से श्वास प्रकोप की पीड़ा कम होती है।
अंदर की एलर्जी को सही करने के लिये मेथी भी बहुत असरदार होती है। एक ग्‍लास पानी के साथ मेथी के कुछ दानों को तब तक उबालें, जब तक पानी एक तिहाई न हो जाए। अब उसी पानी में शहद और अदरक का रस मिला लें। इस रस को दिन में एक बार पीने से जरुर राहत मिलेगी।
10 ग्राम सरसों का तेल और 10 ग्राम गुड़ को हल्का गुनगुना कर प्रतिदिन सुबह लें। इस नुस्खे को 21 से 40 दिनों तक प्रयोग करें।
एक चम्मच अदरक का रस + एक चम्मच तुलसी का रस+ एक चम्मच शहद सुबह-शाम लें।
शुद्ध आवलासार गधक 2 ग्राम + 2 ग्राम कालीमिर्च पीसकर, 10 ग्राम गाय के घी में मिलाकर चाटें। प्रतिदिन सुबह एक बार 15 दिनों तक।




मदार या आक का एक पत्ता + 25 दाने कालीमिर्च ठीक से पीसकर 250 मि.ग्रा. की गोलिया बना लें। 1 से 2 गोली शहद से प्रतिदिन लें।
कालीमिर्च, छोटी पीपल और भुना सुहागा समान मात्रा में लेकर, पीसकर, छानकर रखें। इस चूर्ण को 2 से 4 ग्राम मात्रा में सुबह-शाम शहद से सेवन करें।
आयुर्वेद के योग जैसे श्वास कास चितामणि रस, श्वास कुठार रस, स्वर्ण बसत मालती रस, लक्ष्मी बिलास रस, अभ्रक भस्म, अगस्त्य हरीतिकी, कंटकार्यावलेह, वासावलेह, ब्याघ्री-हरीतकी और कनकासव आदि का प्रयोग योग्य चिकित्सक के परामर्श से करना चाहिए।
अनार के दानों को कूट-पीसकर चूर्ण बनाकर, 3 ग्राम चूर्ण मधु के साथ दिन में दो बार सेवन करें।
खजूर की गुठली निकालकर, सोंठ के चूर्ण के साथ पान में रखकर खांए।
अस्थमा में श्वास अवरोध होने पर कॉफी पिएं।
कोष्ठबद्धता के कारण रोगी को बहुत परेशानी होती है। कोष्ठबद्धता को नष्ट करने के लिए रात्रि को एरंड का तेल 5 ग्राम मात्रा में दूध या हल्के गर्म जल के साथ सेवन करें।
प्रति दिन एक गिलास दूध में हल्दी चूर्ण मिलाकर पीने से भी लाभ मिलता है खाली पेट हल्दी दूध पीने से ज्यादा फायदा होता है जिन तत्वों से दमा भड़कने की आशंका हो या साँस लेने में तकलीफ बढ़ती हो उससे बचने की कोशिश करे अस्थमा के मरीज को नियमित रूप से अलग-अलग किस्म की दालों और सूखे अंगूरों का सेवन करना चाहिए ताकि यह रोग दूर रहे तली भुनी सामग्री का सेवन न करे और रात के समय मरीज को हल्का भोजन करने से भी फायदा मिलता है ।
शहद एक सबसे आम घरेलू उपचार है, जो कि अस्‍थमा के इलाज के लिये प्रयोग होती है। अस्‍थमा अटैक आने पर शहद वाले पानी से भाप लेने से जल्‍द राहत मिलती है। इसके अलावा दिन में तीन बार एक ग्‍लास पानी के साथ शहद मिला कर पीने से बीमारी से राहत मिलती है। शहद बलगम को ठीक करता है, जो अस्‍थमा की परेशानी पैदा करता है।
एक कप घिसी हुई मूली में एक चम्‍मच शहद और नींबू का रस मिला कर 20 मिनट तक पकाएं। इस मिश्रण को हर रोज एक चम्‍मच खाएं। यह इलाज बड़ा ही प्रसिद्ध और असरदार है।
रातभर एक गरम पानी वाले ग्‍लास में सूखी अंजीर को भिगो कर रख दें। सुबह होते ही इसे खाली पेट खाएं। ऐसा करने से बलगम भी ठीक होता है और संक्रमण से भी राहत मिलती है।
करेला, जो कि अस्‍थमा का असरदार इलाज है, उसके एक चम्‍मच पेस्‍ट को लेकर शहद और तुलसी के पत्‍ते के रस के साथ मिला कर खाएं। इससे अंदर की एलर्जी से बहुत राहत मिलती है।
४-५ लौंग लें और १२५ मि.ली.पानी में ५ मिनट तक उबालें इस मिश्रण को छानकर इसमें एक चम्मच शुद्ध शहद मिलें और गर्म-गर्म पि लें हर रोज दो -तीन बार यह काढ़ा बनाकर पिने से मरीज को निश्चित रूप से लाभ होता है ।
दमे को नियंत्रित रखने के लिए शहद और तुलसी की पत्तियों का पीसकर मिश्रण तैयार करें और प्रतिदिन सुबह सुबह इसका सेवन करें
यदि आपको एलर्जी पैदा करने वाला तत्व अपने आसपास नजर आए और आपको लगे की दमा भड़क सकता है तो इसे में तत्काल तुलसी की पत्तियों में सेंधा नमक मिलाकर सेवन करे ।
श्वसन मार्ग को स्वच्छ रखने के लिए दूध के साथ भुने चनों का प्रयोग करें ।
एक चम्मच शहद हल्दी का चूर्ण मिलाकर सेवन करना भी अस्थमा का एक और बेहद कारगर घरेलु उपचार है ।
अस्थमा से तत्काल अस्थाई राहत पाने के लिए काली मिर्च में तुलसी की पत्तियां मिलाकर सेवन करे ।
अदरख का एक चम्मच ताजा रस , एक कप मैथी के काढ़े और स्वादानुसार शहद इस मिश्रण में मिलें दमे के मरीजों के लिए यह मिश्रण लाजबाब साबित होता है ।
मैथी का काढ़ा तैयार करने के लिए एक चम्मच मैथी दाना , औए एक कप पानी उबालें हर रोज सुबह - शाम इस मिश्रण का सेवन करने से निश्चित लाभ मिलता है ।
लहसुन भी दमा के इलाज में काफी कारगर साबित होता है ३० मि.ली.दूध में लहसुन की ५ कलियाँ उबालें और इस मिश्रण को हर रोज सेवन करने से दमे में शुरुआती अवस्था में काफी फायदा मिलता है अदरख की गर्म चाय में लहसुन की दो पिसी कलियाँ मिलाकर पिने से भी अस्थमा नियंत्रित रहता है सुबह-शाम इस चाय के सेवन करने से मरीज को फायदा होता है ।
दमा रोगी पानी में अजवाइन मिलाकर इसे उबालें और पानी से उठती भाप लें यह घरेलु उपाय काफी फायदेमंद रहता है ।
180 मिमी पानी में मुट्ठीभर सहजन की पत्तियां मिलाकर करीब 5 मिनट तक उबालें। मिश्रण को ठंडा होने दें, उसमें चुटकीभर नमक, कालीमिर्च और नीबू रस भी मिलाया जा सकता है। इस सूप का नियमित रूप से इस्तेमाल दमा उपचार में कारगर माना गया है।
अदरक का एक चम्मच ताजा रस, एक कप मैथी के काढ़े और स्वादानुसार शहद इस मिश्रण में मिलाएं। दमे के मरीजों के लिए यह मिश्रण लाजवाब साबित होता है। मैथी का काढ़ा तैयार करने के लिए एक चम्मच मैथीदाना और एक कप पानी उबालें। हर रोज सबेरे-शाम इस मिश्रण का सेवन करने से निश्चित लाभ मिलता है।
१८० मि.मी.पानी में मुट्ठी भर सहजन की पत्तियां मिलकर करीब ५ मिनट तक उबालें मिश्रण को ठंडा होने दें उसमे चुटकी भर नमक , काली मिर्च और नीबू भी मिलाया जा सकता है इस सूप का नियमित रूप से इस्तेमाल दमा उपचार में कारगर माना गया है ।
दमा रोग से पीड़ित रोगी को भोजन में नमक तथा चीनी का सेवन बंद कर देना चाहिए।
लहसुन दमा के इलाज में काफी कारगर साबित होता है। 30 मिली दूध में लहसुन की पांच कलियां उबालें और इस मिश्रण का हर रोज सेवन करने से दमे में शुरुआती अवस्था में काफी फायदा मिलता है।
अदरक की गरम चाय में लहसुन की दो पिसी कलियां मिलाकर पीने से भी अस्थमा नियंत्रित रहता है। सबेरे और शाम इस चाय का सेवन करने से मरीज को फायदा होता है।
दमा रोगी पानी में अजवाइन मिलाकर इसे उबालें और पानी से उठती भाप लें, यह घरेलू उपाय काफी फायदेमंद होता है। 4-5 लौंग लें और 125 मिली पानी में 5 मिनट तक उबालें। इस मिश्रण को छानकर इसमें एक चम्मच शुद्ध शहद मिलाएँ और गरम-गरम पी लें। हर रोज दो से तीन बार यह काढ़ा बनाकर पीने से मरीज को निश्चित रूप से लाभ होता है।
तुलसी तथा अदरक का रस शहद मिलाकर पीने से दमा रोग में बहुत लाभ मिलता है।
दमा रोग से पीड़ित रोगी यदि मेथी को भिगोकर खायें तथा इसका पाने में थोड़ा सा शहद मिलाकर पिए तो रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
दमा रोग से पीड़ित रोगी को कभी भी दूध या दूध से बनी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।
दमा रोग से पीड़ित रोगी को 1 चम्मच त्रिफला को नींबू पानी में मिलाकर सेवन करने से दमा रोग बहुत जल्दी ही ठीक हो जाता हैं।
1 कप गर्म पानी में शहद डालकर प्रतिदिन दिन में 3 बार पीने से दमा रोग से पीड़ित रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
गर्म पानी में अजवाइन डालकर स्टीम लेने से भी दमे को नियंत्रि‍त करने में राहत मिलती है।
अस्थमा रोगी को लहसून की चाय या फिर दूध में लहसून उबालकर पीना भी लाभदायक है।
सरसों के तेल को गर्म कर छाती पर मालिश करने से दमे के दौरे के दौरान आराम मिलता है।
मेथी के बीजों को पानी में पकाकर पानी जब काढ़ा बन जाए तो उसे पीना दमें में लाभकारी होता है।
लौंग को गर्म पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर उसमें शहद डालकर पीने से दमे को नियंत्रि‍त करने में आसानी होती है।
दमा रोग से पीड़ित रोगी को नारियल पानी, सफेद पेठे का रस, पत्ता गोभी का रस, चुकन्दर का रस, अंगूर का रस, दूब घास का रस पीना बहुत अधिक लाभदायक रहता है।
तुलसी के पत्तों को अच्छी तरह से साफ कर उनमें पिसी काली मिर्च डालकर खाने के साथ देने से दमा नियंत्रण में रहता है।
दमे का दौरा बार-बार न पड़े इसके लिए हल्दी और शहद मिलाकर चांटना चाहिए।
तुलसी दमे को नियंत्रि‍त करने में लाभकरी है। तुलसी को पानी के साथ पीसकर उसमें शहद डालकर चाटने से दमे से राहत मिलती है।
दमे आमतौर पर एलर्जी के कारण भी होता है। ऐसे में एलर्जी को नियंत्रि‍त करने के लिए दूध में हल्दी डालकर पीनी चाहिए।
शहद की गंध को दमे रोगी को सुधांने से भी आराम मिलता है।
नींबू पानी दमे के दौरे को नियंत्रि‍त करता है। खाने के साथ प्रतिदिन दमे रोगी को नींबू पानी देना चाहिए।
आंवला खाना भी ऐसे में अच्छा रहता है। आंवले को शहद के साथ खाना तो और भी अच्छा है।

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