21.2.16

बेर खाने के लाभ Benefits of eating berry









बेर बहुत ही उपयोगी और पोषक तत्वों से भरपूर फल है। इन दिनों बेर का मौसम भी है। बेर को अधिकतर लोग बचपन में तो बहुत पसंद करते हैं, लेकिन बड़े होने पर खट्टेपन के कारण इसे नहीं खाते हैं। साथ ही, एक बड़ा कारण यह भी है कि लोग इसके गुणों से अनजान हैं।
बेर दो तरह के होते है एक बड़े आकर वाले और दूसरे छोटे वाले होते है पका बेर स्वाद के साथ शरीर को कई रोग से बचाता है ।
*गुर्दो में दर्द हो जाये तो बेरी के पत्तो को पीस कर उसका लेप पेट के गुर्दे वाली जगह पर करने से दर्द शांत होता है ।

*विटामिन सी से भरपूर होता है-
संतरे और नींबू की ही तरह बेर में भी प्रचूर मात्रा में विटामिन-सी पाया जाता है। इसमें अन्य फलों के मुकाबले विटामिन-सी और एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा ज्यादा होती है। इसके सेवन से त्वचा लंबी उम्र तक जवां बनी रहती है।

*पेट दर्द की समस्या खत्म कर देता है-
बेर को छाछ के साथ लेने से पेट दर्द की समस्या खत्म हो जाती है।
*बालों के झड़ने या रूखेपन से बचाने के लिए बेरी के पत्तो को हाथ से मसल कर पानी में उबाल ले और उस पानी को छान कर उससे सिर धोये तो इन समस्याओ से निजात मिलती है और रुसी की परेशानी भी हल हो जाती है


*मुंह के छालों की समस्या हो जाये तो बेरी की छाल को अच्छी तरह सुखा कर चूर्ण बनाये और उस चूर्ण को छालों पर लगाये तो आराम मिलेगा ।

*टी बी जैसे खतरनाक रोग का बहुत ही सरल उपाय बेर है । मरीज़ दिन में ३-४ बार एक पाव बेर प्रतिदिन सेवन करने से टी बी से बचाव और रोग मुक्ति संभव है ।
*दिल की बीमारियों का खतरा कम हो जाता है-
बेर खाने से कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल में रहता है। इस कारण दिल से जुड़ी बीमारियां होने की संभावना कम हो जाती है।

*बालों के लिए फायदेमंद-

बेर की पत्तियों में 61 आवश्यक प्रोटीन पाए जाने के साथ विटामिन सी, केरिटलॉइड और बी कॉम्प्लेक्स भी अधिक मात्रा में पाया जाता है। यह बालों को घना और हेल्दी बनाता है।
*रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है-
बेर में मैग्नीशियम, पोटैशियम, फॉस्फोरस, कॉपर, कैल्शियम और आयरन और खनिज पदार्थ भी मौजूद होते हैं। इन तत्वों से इम्यून सिस्टम मजबूत होता है। जिससे शरीर में रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ती है।
*नाक में फुंसी हो जाये तो बहुत परेशान करती है अतः एक बेर को छील कर बार बार सूंघे तो ये ठीक हो जाती है

खांसी और बुखार में है फायदेमंद-

बेर का जूस खांसी, फेफड़े संबंधी विकारों और बुखार के इलाज में भी सहायक है। वैज्ञानिकों ने इसमें आठ तरह के फ्लेवेनॉयड ढूंढे हैं। उनके मुताबिक, यह दर्दनाशक होता है। इसमें एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लामेटरी गुण भी हैं।

*अनिद्रा की समस्या दूर हो जाती है-बेर में 18 प्रकार के महत्वपूर्ण एमीनो एसिड मौजूद हैं, जो शरीर में प्रोटीन को संतुलित करते हैं। चीनी दवाओं में इसके बीज से एंग्जाइटी और अनिद्रा (इंसोम्निया) का इलाज होता है।
अंतड़ियों में घाव हो या पाचन शक्ति कमजोर हो तो मरीज़ को सुबह जल्दी उठकर खाली पेट एक पाव बेर खाने चाहिए, दिन में भोजन के बाद बेर खाने चाहिए और साँझ के समय खाने के बाद बेर न खा सके तो उसका रस पी ले तो अंतड़ियों की सभी परेशानी दूर हो जाती है ।
मेडिकल अध्ययन के अनुसार बेर से लो-ब्लड प्रेशर, एनीमिया, लीवर आदि की समस्याओं से राहत मिलती है। यह शरीर में ट्यूमर सेल्स पनपने नहीं देता। यह त्वचा की देखभाल के लिए भी उत्तम स्रोत है।
इनके खाने से शारीरिक दुर्बलता दूर होती है ।

  • पायरिया के घरेलू इलाज
  • चेहरे के तिल और मस्से इलाज
  • लाल मिर्च के औषधीय गुण
  • लाल प्याज से थायराईड का इलाज
  • जमालगोटा के औषधीय प्रयोग
  • एसिडिटी के घरेलू उपचार
  • नींबू व जीरा से वजन घटाएँ
  • सांस फूलने के उपचार
  • कत्था के चिकित्सा लाभ
  • गांठ गलाने के उपचार
  • चौलाई ,चंदलोई,खाटीभाजी सब्जी के स्वास्थ्य लाभ
  • मसूड़ों के सूजन के घरेलू उपचार
  • अनार खाने के स्वास्थ्य लाभ
  • इसबगोल के औषधीय उपयोग
  • अश्वगंधा के फायदे
  • लकवा की चमत्कारी आयुर्वेदिक औषधि वृहत वात चिंतामणि रस
  • मर्द को लंबी रेस का घोडा बनाने के अद्भुत नुस्खे
  • सदाबहार पौधे के चिकित्सा लाभ
  • कान बहने की समस्या के उपचार
  • पेट की सूजन गेस्ट्राईटिस के घरेलू उपचार
  • पैर के तलवों में जलन को दूर करने के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार
  • लकवा (पक्षाघात) के आयुर्वेदिक घरेलू नुस्खे
  • डेंगूबुखार के आयुर्वेदिक नुस्खे
  • काला नमक और सेंधा नमक मे अंतर और फायदे
  • हर्निया, आंत उतरना ,आंत्रवृद्धि के आयुर्वेदिक उपचार
  • पाइल्स (बवासीर) के घरेलू आयुर्वेदिक नुस्खे
  • चिकनगुनिया के घरेलू उपचार
  • चिरायता के चिकित्सा -लाभ
  • ज्यादा पसीना होने के के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार
  • पायरिया रोग के आयुर्वेदिक उपचार
  • व्हीटग्रास (गेहूं के जवारे) के रस और पाउडर के फायदे
  • घुटनों के दर्द को दूर करने के रामबाण उपाय
  • चेहरे के तिल और मस्से हटाने के उपचार
  • अस्थमा के कारण, लक्षण, उपचार और घरेलू नुस्खे
  • वृक्क अकर्मण्यता(kidney Failure) की रामबाण हर्बल औषधि
  • शहद के इतने सारे फायदे नहीं जानते होंगे आप!
  • वजन कम करने के उपचार
  • केले के स्वास्थ्य लाभ

  • 7.2.16

    खस खस (पोस्तदाना) के स्वास्थ्य लाभ // Benefits of Poppy Seeds




     

    खसखस सूक्ष्म  आकार का बीज होता है। इसे लोग पॉपी सीड के नाम से भी जानते हैं। खसखस प्यास को बुझाता है और ज्वर, सूजन और पेट की जलन से राहत दिलाता है और यह एक दर्द-निवारक भी है। लंबे समय से ही प्राचीन सभ्यता मे इसका उपयोग औषधीय लाभों के लिए किया जाता रहा है| 
    अनिद्रा- खसखस नींद से जुड़ी दिक्कतों  में मदद करता है क्‍योंकि इसके सेवन से आपके अंदर  सोने के लिए मजबूत इच्छा पैदा होती हैं। अगर आप भी अनिद्रा की समस्या  से परेशान हैं, तो सोने से पहले खसखस के पेस्ट  को गर्म दूध के साथ सेवन करना समस्या  में बहुत प्रभावी साबित हो सकता है।

    श्वसन संबंधी विकार-खसखस के बीज में शांतिदायक गुण होने के कारण यह सांस की बीमारियों के इलाज में बहुत कारगर होता है। यह खांसी को कम करने में मदद करता है और अस्थमा जैसी समस्याओं के खिलाफ लंबे समय तक राहत प्रदान करता है। 



    कब्ज,पोषण-खसखस के बीज ओमेगा-6 फैटी एसिड, प्रोटीन, फाइबर का अच्छा स्रोत हैं। इसके अलावा इसमें विभिन्न फाइटोकेमिकल्स, विटामिन बी, थायमिन, कैल्शियम और मैंगनीज भी होता हैं। इसलिए खसखस को एक उच्च पोषण वाला आहार माना जाता है।



    -
    खसखस फाइबर को बहुत अच्छा स्रोत हैं। इसमें इसके वजन से लगभग 20-30 प्रतिशत आहार फाइबर शामिल होता हैं। फाइबर स्वस्थ मल त्याग में और कब्ज की दिक्कत दूर करने में बहुत लाभकारी होती है। लगभग 200 ग्राम खसखस आपके दैनिक फाइबर की जरूरत को पूरा कर सकता हैं|

    शांतिकर 

    औषधि-सूखी खसखस को प्राकृतिक शांति प्रदान करने वाली औषधि माना जाता है कारण ,इसमें थोड़ी सी मात्रा में ओपियम एल्कलॉइड्स नामक रसायन होता है। यह रसायन तंत्रिका की अतिसंवेदनशीलता, खांसी और अनिद्रा को कम करते हुए आपकी तंत्रिका तंत्र पर एक न्यूनतम प्रभाव उत्पन्न करता है।
    एंटीऑक्सीडेंट-माना जाता है कि खसखस में बहुत अधिक मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट मौजूद होने के कारण इसमें अद्भुत एंटीऑक्सीडेंट गुण होते है। ये एंटीऑक्‍सीडेंट फ्री रेडिकल के हमलों से अंगों और ऊतकों की रक्षा करते है। इसलिए इन सब खतरों से बचने के लिए हमें अपने आहार में खसखस को शामिल करना चाहिए।


    दर्द-निवारक-

    खसखस में मौजूद ओपियम एल्कलॉइड्स नामक रसायन होता है, जो दर्द-निवारक के रूप में बहुत कारगर होता है। खसखस को दांत में दर्द, मांसपेशियों और नसों के दर्द को दूर करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।खसखस एक लोकप्रिय दर्द-निवारक भी है।

    त्वचा की देखभाल-

    आयुर्वेद में तो हमेशा से ही खसखस को त्‍वचा के लिए अच्‍छा माना जाता है। यह एक मॉइस्‍चराइजर की तरह काम करता है और त्वचा की जलन और खुजली को कम करने में मदद करता है। इसके अलावा इसमें मौजूद लिनोलिक नामक एसिड एक्जिमा के उपचार में भी मददगार होता है।

    4.2.16

    कब्ज नाशक नुस्खे , Effective home remedies of constipation

                          

         आज की जीवनशैली और काम के बोझ में कब्ज होना कोई बड़ी बात नहीं हैं। कब्ज आज बेहद आम समस्या बन गई है। लेकिन क्या आप जानते हैं कब्ज को दूर करने के उपाय आपकी अपनी रसोई में मौजूद हैं।
        रात को सोने से पहले गुड़ खाने से सुबह के समय कब्ज की समस्या नहीं रहती। विटामिन और मिनरल्‍स से भरपूर गुड़ को गर्म करके खाने से कब्ज में बहुत आराम मिलता है। 

    आलूबुखारा खाने से आपकी पेट संबंधी सारी बीमारियां दूर हो जाती हैं। रोजाना 3 ग्राम आलूबुखारा खाने से     कब्ज को आसानी से दूर किया जा सकता है। दरअसल, आूलबुखारा में भारी मात्रा में फाइबर मौजूद होता है जिससे कब्ज को दूर करने में मदद मिलती है।
        नींबू का रस पाचन तंत्र को ठीक करता है। इससे शरीर में मौजूद विषाक्त कण निकल जाते हैं। ताजा नींबू पानी सुबह पीने से कब्ज नहीं होती। चाहे तो लेमन टी भी पी सकते हैं।
    कॉफी पीने से आप बिना देर किए बाथरूम तक पहुंच जाएंगे। दरअसल, कॉफी से प्रेशर जल्दी बनता है।
        रोजाना 15 मिनट टहलने से भी आप आसानी से कई समस्याओं को दूर कर सकते हैं। ज्यादा खाने के बाद यदि आपको नींद आने लगे तो आपको थोड़ा टहलना चाहिए। 


        पुदीना और अदरक दोनों की चाय बनाकर पीने से कब्ज की समस्या नहीं रहती। अदरक की चाय कब्ज से छुटकारा पाने के लिए बेहतरीन घरेलू नुस्‍खा हैं।

    विशिष्ट परामर्श-






    यकृत,प्लीहा,आंतों के रोगों मे अचूक असर हर्बल औषधि "उदर रोग हर्बल " चिकित्सकीय गुणों के लिए प्रसिद्ध है|पेट के रोग,लीवर ,तिल्ली की बीमारियाँ ,पीलिया रोग,कब्ज और गैस होना,सायटिका रोग ,मोटापा,भूख न लगना,मिचली होना ,जी घबराना ज्यादा शराब पीने से लीवर खराब होना इत्यादि रोगों मे अत्यंत  प्रभावशाली है|बड़े अस्पतालों के महंगे इलाज के बाद भी निराश रोगी इस औषधि से ठीक हुए हैं| औषधि के लिए वैध्य दामोदर से 9826795656 पर संपर्क करें|

     




    19.1.16

    घर पर ही दर्द नाशक तेल बनाएँ/ Make painkiller oil at home




    शरीर के विभिन्न अंगों मे  जब तब दर्द होना गैर मामूली  बात नहीं है| दर्द होने पर लोग आम तौर पर दर्द नाशक गोलियों  का  उपयोग करते   हैं| पेन किलर  उपयोग  के कई साईड इफेक्ट होते हैं|  मेरा तोई सुझाव यह है  कि पेन किलर  खाने की गोलियों  का उपयोग न करना ही  ठीक  है|  दर्द नाशक तेल की मालिश करना ज्यादा बेहतर  विकल्प है| मैं यहाँ  एक बहुत बढ़िया  दर्द निवारक तेल बनाने की विधि लिख देता हूँ | बनाकर इस्तेमाल करें ,लाभ उठावें|




      दर्द नाशक तेल बनाने की विधि-

    1) एक काँच की शीशी में 60 ग्राम  तारपीन का तेल  और  25 ग्राम  कपूर डालकर  ढक्कन बंद करें  और इसे धूप मे रख दें| समय समय पर इसे हिलाते भी रहें ताकि  कपूर  भली प्रकार घुल जाये|
    2)  एक बर्तन मे  सरसों का तेल 50 ग्राम ,,लहसुन के दो गांठ  छिले  हुए का पेस्ट ,और आधा छोटा  चम्मच  सेंधा नमक   डालकर धीमी आंच पर  पकाएँ कि लहसुन काली पड जाए|  ठंडा कर छानकर एक काँच की शीशी मे भर लें|
    3)  तीसरी काँच की शीशी मे अजवायन का सत एक छोटा चमच ,कपूर एक  छोटा चम्मच और पुदीने का सत एक छोटा  चम्मच डालकर रखें और जब तीनों वस्तुएँ भली प्रकार  घुल जाये तो  इसमे एक छोटा चामच नीलगिरी का तेल डालकर अच्छी  तरह हिलाएँ| 
    उपरोक्तानुसार तीनों तेल अलग अलग तैयार करें फिर तीनों को एक बोतल मे भरलें | दर्द नाशक मालिश का तेल तैयार है| |यह तेल संधिवात ,कमर दर्द ,गठिया का दर्द के अलावा अन्य शारीरिक दर्दों मे परम हितकारी सिद्ध हुआ है|



    5.1.16

    पालक के अनेक फायदे // Health Benefits of spinach





    सर्दियों में सब्जी मार्केट मे पालक की आवक बढ़ जाती है|। हर सब्जी के ठेले पर ये आपको जरूर मिलेगी। पालक मे मौजूद होता है ओमेगा 3, फैटी एसिड और फॉलिक एसिड। ये शरीर में खून का बहाव अच्छा बनाते हैं और धमनियों को बंद नहीं होने देते।
    पालक में विटामिन सी और आयरन की मात्रा ज्यादा होती है जो शरीर में मेटाबॉलिजम सुधारता है और शरीर ज्यादा कैलोरी बर्न कर पाता है। यानी पालक खा कर आप वजन भी कम कर सकते हैं।
    पालक में कैल्शियम होता है जो दांतों को मजबूत बनाता है। ये दांतों पर से दाग भी हटाता है।
    पालक में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट त्वचा को साफ करते हैं और झुर्रियां नहीं पड़ने देते। आप लंबे समय तक जवां दिखते हैं।
    यह हरी पत्तेदार सब्जी मर्दों में स्पर्म की गुणवत्ता बढ़ाती है। इसमें फॉलिक एसिड, जिंक, आयरन और एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो स्पर्म के लिए फायदेमंद होते हैं और मर्दानगी भी बढ़ती है। इसलिए मर्दों को पालक जरूर खानी चाहिए।


    पालक मधुमेह के मरीजों के लिए बहुत जरूरी बताई जाती है। जिन्हें मधुमेह नहीं होता वो अगर इसका नियमित सेवन करें तो मधुमेह होने का खतरा भी कम हो जाता है।
    बढ़ती उम्र के साथ याद्दाश्त कमजोर होने लगती है क्योंकि दिमाग के सेल बिगड़ने लगते हैं। लेकिन अगर चाहते हैं कि याद्दादश्त मजबूत बनी रहे तो पालक का सेवन करना न छोड़ें।








    पालक में जो खास एंटीऑस्किसीडेंट होते हैं वो आंखों से जुड़ी कई बीमारियों दूर करते हैं। आयरन, विटामिन ए भी इसमें मदद करते हैं। ये आंखओं की रोशनी बढ़ाते हैं।
    अपच दूर करने के लिए पालक से बेहतर क्या हो सकता है। इसमें खूब सारा फाइबर होता है जो शरीर से आसानी से मल को निकलने देता है। जिन्हें कब्ज की ज्यादा शिकायत होती है उन्हें रोज एक गिलाज पालक का जूस पीना चाहिए।


    पुरुष ग्रंथि (प्रोस्टेट) बढ़ने से मूत्र - बाधा का अचूक इलाज 

    *किडनी फेल(गुर्दे खराब ) रोग की जानकारी और उपचार*

    गठिया ,घुटनों का दर्द,कमर दर्द ,सायटिका के अचूक उपचार 

    गुर्दे की पथरी कितनी भी बड़ी हो ,अचूक हर्बल औषधि

    पित्त पथरी (gallstone) की अचूक औषधि



       









    1.1.16

    अकरकरा के गुण और लाभ



    भृंगराज कुल का यह झाड़ीदार पौधा पूरे भारत वर्ष में पाया जाता है।आयुर्वेदिक ग्रंथों में खासकर मध्यकालीन ग्रंथों में इसे आकारकरभ नाम से वर्णित किया गया है जिसे हिंदी में अकरकरा भी कहा जाता है।अंग्रेजी में इसी वनस्पति का नाम पेलिटोरी है।इस वनस्पति का प्रयोग ट्रेडीशनल एवं पारंपरिक चिकित्सकों द्वारा दांतों एवं मसूड़े से सम्बंधित समस्याओं को दूर करने हेतु सदियों से किया जाता रहा है|
    इस पौधे के सबसे अधिक महत्वपूर्ण भाग इसके फूल एवं जडें हैं।जब इसके फूलों एवं पत्तियों को चबाया जाता है तो यह एक प्रकार से दाँतों एवं मसूड़ों में सुन्नता उत्पन्न करता है।इसके फूल इसके सबसे महत्वपूर्ण भाग हैं।यूँ तो इसे मूल रूप से ब्राजील एवं अफ्रीका से आयी वनस्पति माना जाता है लेकिन यह हर प्रकार के वातावरण चाहे वो उष्णता हो या शीतकालीन में उगने वाली वनस्पति है।इस पौधे की विशेषता इसके फूलों का विशिष्ट आकार है जो कोन यानि शंकु के आकार के होते हैं।पत्तियों का प्रयोग त्वचा रोग में भी किया जाता है।इस वनस्पति में पाया जानेवाला स्पाइलेंथनॉल अपने एनाल्जेसिक एवं एनेस्थेटिक प्रभाव को उत्पन्न करने के लिए जाना जाता है।यह लालास्राव भी उत्पन्न करता है।यह मुखगुहा से ट्रांस्डर्मली अवशोषित होकर एक विशेष प्रकार के ट्रांजेएन्ट रिसेप्टर को स्टिम्युलेट करता है जिस कारण केटेकोलामीन पाथवे प्रभावित होता है और लार उत्पन्न होता है।इस वनस्पति के अन्य लाभकारी प्रभाव भी है जैसे रक्तगत पैरासाइटस को समाप्त करना साथ ही लेयुकोसाटस को बढ़ाना एवं फेगोसायटिक एक्टीविटी को बढ़ाना।इसे इम्युनोमाडुलेटर एवं मलेरिया नाशक के रूप में भी प्रयोग में लाया जाता है।
    आयुर्वेद अनुसार यह कफवातजनित व्याधियों में प्रयुक्त होनेवाली प्रमुख औषधि है।पक्षाघात एवं नाडीदौर्बल्य में इसके मूल से तेल सिद्धित कर अभ्यंग का विधान है।इसके मूल के क्वाथ का गण्डूष दंतकृमि,दंतशूल आदि में बेहद लाभकारी होता है।विद्रधि पर इसके मूल या पत्तियों का लेप करने भर मात्र से लाभ मिलता है।
    उष्ण वीर्य प्रभाव वाली यह औषधि बल प्रदान करनेवाली साथ ही प्रतिश्याय शोथ एवं वात विकारों में लाभकारी है।
    नाड़ी दौर्बल्य जनित विकारों ,ध्वज भंग के साथ प्रीमेच्युर इजेकुलेशन में भी इसका प्रयोग किया जाता है।
    इसका प्रमुख योग आकारकरभादि चूर्ण है। उष्ण एवं उत्तेजक होने से इसे वाजीकारक तथा शुक्रस्तम्भक प्रभाव हेतु भी प्रयोग में लाया जाता है।




    18.11.15

    नेत्र रोगों का आयुर्वेदिक घरेलू ईलाज // Ayurvedic Home Treatment of Eye Diseases

    1) आँखों की सुरक्षा बहुत ही आवश्यक हैं। नेत्र दृष्टि बिना सब संसार सूना प्रतीत होता है अत: नेत्रों की सुरक्षा हेतु-
    प्रात:काल ठन्डे जलसे आँखों को ८—१० बार धोना चाहिए।
    2) त्रिफला (हर्र बहेड़ा, आँवला) के चूर्ण को १ चम्मच १० ग्राम लेकर ५०० ग्राम जल में मिट्टी के साफ बर्तन में जो पानी भरते भरते पुराना हो गया हो तो उसमें त्रिफला रात्रि में भिगों दें प्रात:काल उसके छने पानी से आँखे धोने से नेत्र के समस्त रोग दूर हो जाते हैं।
    नोट—आई वाश नाम से प्लास्टिक का छोटा गिलास भी आता है उससे आँख धोने में सुविधा रहती है।
    3) चश्मा उतारने का नुस्खा-
    २० ग्राम त्रिफला चूर्ण को २५० ग्राम जल में धीरे—धीरे पकाएँ चौथाई शेष रहने पर उतार कर छान लें फिर उसमें २—१/२ ग्राम जल लौंह भस्म १०० पुटी की ३० पुड़िया बनाकर रख ले उसमें से १ पुडिया दवाई २ चम्मच देशी घी २ चम्मच चीनी (बूरा) मिलाकर प्रतिदिन पीने से नेत्र ज्योति शीध्र बढ़ जाती है। कम से कम २—३ माह करते रहे।
    नोट— मिर्च, खटाई, कम खाएँ।
    4) आईफ्लू— पर पाईरिमोन आई ड्रॉप डालें।
    बेटनो सोल आई ड्राप्प डालने से भी ठीक होती है। आँखों पर काला चस्मा लगाए रखें।
    5) फुली-आँख फुली होने पर लाल चन्दन स्वच्छ पत्थर पर पानी (जल) से घिसकर लगाने से फुली कट जाती है।
    6) मोतियाबिन्द आने पर-
    2-3 हल्दी की छोटी-छोटी गाँठें ७ दिन तक प्राणसुधा में भिगोकर रखें। बाद में निकाल कर पत्थर पर घिसकर जल में लगाएँ।
    7) आँख में पानी झरना-
    निर्मली के बीज को पानी या गुलाब जल में घिसकर आँखों में आजने से पानी का गिरना बन्द हो जाता है।
    8) रतौंधी-सौंठ, कालीमिर्च, पीपल—समभाग शहद में पीसकर अंजन करने से रतौधी दूर हो जाती है।


    5.11.15

    नकसीर से तुरंत राहत पाने के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार Treatment of bleeding from the nose


    ज्यादा गर्मी के कारण नाक से खून बहने लगता है जिसे नकसीर कहते हैं। नकसीर बंद करने के कई घरेलू उपाय हैं| वैसे नाक से खून निकलना अपने आप में कोई रोग नहीं है लेकिन, जब बार-बार नाक से खून निकलता है तब यह एक रोग बन जाता है। नाक की अंदरूनी सतह के पास की रक्त वाहिकाएँ फट जाती हैं। इस तरह की नकसीर जल्दी ही ठीक हो जाती है और बहुत कम उपचार की जरूरत होती है। कभी-कभी रक्त वापस मुंह में भी चला जाता है जिससे श्वास नलिका मे रुकावट हो सकती है। स्थिति गंभीर हो सकती है।कुछ गर्म खा लेने या बाहर की गर्मी लग जाने से नकसीर की समस्या कुछ लोगों को ज्यादा ही परेशान करती है। कुछ लोग अपनी नाजुक प्रकृति के कारण नाक पर जरा सी चोट लगते ही नाक से खून बहने की परेशानी से रूबरू हो जाते हैं|
    1) रोगी के दोनों हाथों में बर्फ के टुकड़े रखने चाहिए तथा रोगी की नाक पर बर्फ को कपडे में लपेट कर रोगी के सिर को नीचे रखना चाहिए।

    2 ) काली मिट्टी पर पानी छिड़ककर इसकी खुशबू सूंघें।
    3 ) रुई के फाए को सफेद सिरका में भिगोकर उस नथुने में रखें, जिससे खून बह रहा हो।
    4) जब नाक से खून बह रहा हो तो कुर्सी पर बिना टेका लिए बैठ जाएं, नाक की बजाय मुंह से सांस लें।
    5) किसी भी प्रकार के धूम्रपान (एक्टिव या पैसिव दोनों) से बचें।

    6) पित्त शामक '' गुलकंद''का सेवन करे और साफ हरे धनिए की पत्तियों के रस की कुछ बूंदें नाक में डाल लें।
    7) शीशम या पीपल के पत्तों को पीसकर या कूटकर , उसका रस नाक में 4-5 बूँद ड़ाल दिया जाए तो तुरंत आराम आता है .
    8) थोड़ा सा सुहागा पानी में घोलकर नथूनों पर लगाऐं नकसीर तुरन्त बन्द हो जाएगी।
    9) जिस व्यक्ति को नकसीर चल रही है उसे बिठाकर सिर पर ठण्डे पानी की धार डालते हुए सिर भिगों दें। बाद में थोड़ी पीली मिट्टी को भिगोकर सुंघाने से नकसीर तुरन्त बन्द हो जाएगी
    10) प्याज को काटकर नाक के पास रखें और सूंघें।
    11) . जिस व्यक्ति को नकसीर चल रही है उसे बिठाकर सिर पर ठण्डे पानी की धार डालते हुए सिर भिगों दें। बाद में थोड़ी पीली मिट्टी को भिगोकर सुंघाने से नकसीर तुरन्त बन्द हो जाएगी

    ऩकसीर रोगी के पथ्य परहेज
    नकसीर फूटने पर गरम पदार्थों जैसे गरम मसाले, चाट-पकौड़े, चाय, कहवा, शराब या अन्य प्रकार के मादक पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। शरीर की सहनशीलता तथा स्वभाव से अधिक ठंडे पदार्थों को भी नहीं ग्रहण करना चाहिए। सम स्वभाव या तासीर के फल तथा सब्जियां खानी चाहिए। ठंडे पदार्थों का सेवन हितकारी रहता है। वैसे पित्त को शान्त करने वाले नुस्खों का इस्तेमाल किया जा सकता है।
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  • 25.10.15

    डकार आना रोकने के घरेलू उपचार // Home remedies to prevent belching

                                                   

          डकार अधिक मात्रा में हवा के निगलने के कारण होती है,जब हम हवा निगलते हैं तो उसी तरह बाहर भी निकलती है, इसलिये जब यह मुंह से बाहर निकलती है तो हम इसे डकार कहते हैं। यह पेट से गैस के बाहर निकलने का प्राकृतिक तरीका है, अगर पेट से गैस बाहर न निकले तो यह कई पेट की समस्याओं को रास्ता देता है जैसे पेट में बहुत दर्द और पेट फटने जैसा आदि।

    निम्न घरेलू उपचारों का प्रयोग  आपकी डकार की समस्या को प्रभावी तरीके से ठीक करेगा।
    दही-
     भोजन के पाचन  मे सहायक होता है |इसमे मौजूद बेक्टीरिया पेट तथा आंतों से जुड़ी सभी समस्याओं को दूर करने मे सहायक है| छाछ  या लस्सी  का प्रयोग भी  लाभप्रद साबित होता है| 
    काला जीरा -
     यह पाचन तंत्र को शांत रखता है और कुदरती तौर पर डकार की समस्या  को कम करता है|  इसे एसे  ही खाया जा सकता है या सलाद मे डाला जा सकता है| 

    अदरक-

         अदरक के अच्छे चिकित्सकीय गुण आपकी डकार की समस्या के लिये समाधान प्रस्तुत करते है। अदरक के छोटे टुकड़े को तब तक चबायें जब तक की आपके मुंह में रस न आ जाये। अगर आप तीखी गंध को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं तो स्वाद को बदलने के लिये शहद का प्रयोग साथ में करें, आप अदरक की चाय का भी प्रयोग कर सकते हैं जो अदरक लेने के जैसा परिणाम देगा।

    चाय-

    चाय दिन की शुरुआत के लिये अच्छा संकेत है। जब आप चाय बना रहे है तो मिश्रण में मिंट की पत्तियों को मिलायें। इसके एंटीऑक्सीडेंट पेट से निकलने वाले गैस को कम करने में सहायता देगा। भोजन पश्चात  हर्बल चाय डकार से बचने में सहायता कर सकती है।

    पपीता

    पपीते में पपेन नामक महत्वपूर्ण एंज़ाइम पाया जाता है जो आपके पाचन तंत्र को अच्छी स्थिति में रखता है। यह प्राय: उन व्यक्तियों द्वारा उपभोग में लाया जाता है जो अपनी त्वचा की देखभाल करते हैं लेकिन यह पाचन और डकार को ठीक करने की एक दवा है।

    नींबू और बेकिंग सोडा-

    अगर आप बहुत अधिक डकार की समस्या से परेशान हैं तो डकार में प्रभावी कमी के लिये इस घरेलू उपचार को अपनाने का प्रयास कर सकते हैं। एक चम्मच नींबू रस और ¼ चम्मच बेकिंग सोडा को लेकर इसे 2 ग्लास पानी के साथ मिश्रण बनाकर हिलाकर इसे पी डालें। यह रसोई आधारित सलाह डकार से आपको राहत दिलायेगा।

    भोजन करते समय अपना मुँह बंद करें

    अब तक आपने साधारण घरेलू उपचार के बारे में सीखा और अब आप कुछ शिष्टाचार सुझाओं पर ध्यान दें जो आपकी डकार की समस्या में बदलाव लाते है। आप अपना भोजन करते समय अपना मुंह बंद रखें और भोजन करे, अगर आप मुंह खोल कर भोजन करते है तो आप हवा को पेट में जाने का रस्ता देंगें। हम लोगों में से कुछ लोग जल्दी में होते है और वे भोजन को बजाय चबाने के सीधे निगल जाते हैं, इस तरह की छोटी चीज़ें भी डकार की समस्या को बढ़ा सकती हैं

    धूम्रपान बंद करें-

     धूम्रपान की वस्तुओं  में निकोटीन शामिल होता है और इसका शरीर में भण्डारण अधिक संख्या में डकार को जन्म देता है। इसलिये, डकार के समाधान  के लिये धूम्रपान को बंद करना चाहिये।













    30.9.15

    श्वसन समस्याएँ :कारण और निवारण // Respiratory Problems : Causes and cures.








                                   


    सांसें तेज चलना, गहरी सांस न ले पाना, सांस लेने में परेशानी होना कुछ ऐसी बातें हैं, जिनका सामना कभी-कभार सबको करना पड़ता है। लेकिन लंबे समय तक इस स्थिति का बने रहना ठीक नहीं। यह जानना जरूरी हो जाता है कि ऐसा क्यों हो रहा है?



      लगातार अधिक शारीरिक श्रम करने पर सांसें चढ़ने लगती हैं। जल्दबाजी व तनाव की स्थिति में भी सांसें उखड़ जाती हैं, पर ऐसी स्थितियों में सांसों की गति जल्द ही सामान्य भी हो जाती है। कई बार नियमित व्यायाम व जीवनशैली में सुधार करके भी आराम मिल जाता है। पर यदि हर समय सांस लेने में परेशानी हो रही हो तो ध्यान देना जरूरी है। आइये जानते हैं उन रोगों के बारे में, जिनकी वजह से सांस लेने में परेशानी हो सकती है...

    फेफड़ों की समस्याएं-
    सांस नली के जाम होने पर या फेफड़ों में छोटी-मोटी परेशानी होने पर सांसें छोटी आने लगती हैं। किसी प्रोफेशनल की मदद से इस स्थिति से जल्दी ही राहत पाई जा सकती है। लेकिन यदि ऐसा लंबे समय से है तो यह किसी दूसरी बीमारी का लक्षण हो सकता है, जैसे ...

    अस्थमा -
    सांस नली में सूजन आने की वजह से वो संकरी हो जाती है, जिससे सांस लेने में परेशानी होती है। सांस लेते समय घरघराहट और खांसी रहती है।
    पलमोनरी एम्बोलिज्म :
    इसमें फेफड़ों तक जाने वाली धमनियां वसा कोशिकाओं, खून के थक्कों, ट्यूमर सेल या तापमान में बदलाव के कारण जाम हो जाती हैं। रक्त संचार में आए इस अवरोध के कारण सांस लेने और छोड़ने में परेशानी होती है। छाती में दर्द भी होता है।
    क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पलमोनरी डिजीज (सीओपीडी)-


    इस स्थिति में सांस नली बलगम या सूजन की वजह से संकरी हो जाती है। सिगरेट पीने वालों, फैक्टरी में रसायनों के बीच काम करने वालों और प्रदूषण में रहने वाले लोगों को यह खासतौर पर होती है।

    निमोनिया -
    यह बीमारी स्ट्रेप्टोकोकस निमोनिया नाम के एक कीटाणु की वजह से होती है। दरअसल यह बैक्टीरिया श्वास नली में एक खास तरह का तरल पदार्थ उत्पन्न करता है, जिससे फेफड़ों तक पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती और रक्त में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। खून में ऑक्सीजन की कमी के चलते होठ नीले पड़ जाते हैं, पैरों में सूजन आ जाती है और छाती अकड़ी हुई सी लगती है।


    ह्रदय रोग-
    दिल की बीमारियों के चलते भी सांस लेने में तकलीफ हो सकती है। दिल के रोग मसलन, एन्जाइना, हार्ट अटैक, हार्ट फेल्योर, जन्मजात दिल में परेशानी या एरीथमिया आदि में ब्रेथलेसनेस होती है। दिल की मांसपेशियां कमजोर होने पर वे सामान्य गति से पंप नहीं कर पातीं। फेफड़ों पर दबाव बढ़ जाता है और व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ होती है। ऐसे लोग रात में जैसे ही सोने के लिए लेटते हैं, उन्हें खांसी आने लगती है और सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। इसमें पैरों या टखनों में भी सूजन आ जाती है। सामान्य से ज्यादा थकान रहती है।बेचैनी भी हो सकती है वजह -
    बेचैन रहना या बात-बात पर चिंता करना भी सांस को असामान्य बना देता है। दरअसल बेचैनी हाईपरवेंटिलेशन की वजह से होती है यानी जरूरत से ज्यादा सांस लेना। सामान्य स्थिति में हम दिन में 20,000 बार सांस लेते और छोड़ते हैं। ओवर-ब्रीदिंग में यह आंकड़ा बढ़ जाता है। हम ज्यादा ऑक्सीजन लेते हैं और उसी के अनुसार कार्बन डाईऑक्साइड भी छोड़ते हैं। शरीर को यही महसूस होता रहता है कि हम पर्याप्त सांस नहीं ले रहे। कई बार सांस व रोगों के बारे में बहुत सोचते रहने पर भी ऐसा होता है। पैनिक अटैक में ऐसा ही होता है। सांसों पर नियंत्रण रखने की बहुत अधिक कोशिश करने तक से ऐसा हो जाता है।
    हो सकती है एलर्जी -
    कई लोगों का प्रतिरक्षा तंत्र संवेदनशील होता है, जिससे उन्हें प्रदूषण, धूल, मिट्टी, फफूंद और जानवरों के बाल आदि से एलर्जी रहने लगती है। ऐसे लोगों को एलर्जन के संपर्क में आने व मौसम में बदलाव आने पर एलर्जी का अटैक पड़ने लगता है। सांस लेने में परेशानी होती है। सीने में जकड़न आने लगती है। सांस फूलने लगता है।

    मोटापा घटाएं-
    शोधकर्ताओं का दावा है कि मोटापा बढ़ते ही सांस की पूरी प्रणाली प्रभावित हो जाती है। सांस के लिए मस्तिष्क से आने वाले निर्देश का पैटर्न बदल जाता है। वजन में इजाफा और सक्रियता की कमी रोजमर्रा के कामों को प्रभावित करने लगते हैं। थोड़ा सा चलने, दौड़ने या सीढि़यां चढ़ने पर परेशानी होती है। सांस लेने में परेशानी होना वजन कम करने और व्यायाम को जीवनशैली में शामिल करने का भी संकेत है।
    अन्य कारण -
    शरीर में कैंसर कोशिकाओं के कारण सांस नली पर दबाव बढ़ता है और सांस लेने में परेशानी होती है। गर्भाशय व लिवर कैंसर में पेट में तरल पदार्थ जमा हो जाते हैं, जिससे पेट में सूजन आ जाती है। डायफ्राम पर पड़ा दबाव फेफड़ों को खुलने नहीं देता और सांस लेने में परेशानी होती है।

        शरीर में खून की कमी यानी एनीमिया होने की स्थिति में भी सांस लेने में परेशानी की समस्या होती है। इस दौरान रक्त कोशिकाओं में हीमोग्लोबिन नामक प्रोटीन कम हो जाता है, जिससे ऑक्सीजन फेफड़ों से शरीर के सब हिस्सों तक नहीं पहुंच पाती। शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण में कमी का कारण शरीर में आयरन, विटामिन बी-12 या प्रोटीन की कमी होना है।
    ये उपाय देंगे राहत की सांस
    घर के वेंटिलेशन का रखें खास ध्यान। कार्पेट, तकिए और गद्दों पर धूप लगाएं। परदों की साफ-सफाई करें। रसोई और बाथरूम में लगाएं एग्जॉस्ट फैन। एसी का इस्तेमाल कम करें।
    धूम्रपान न करें, सिगरेट पीने वालों से दूरी बनाएं।

    खाने में ब्रोकली, गोभी, पत्ता गोभी, केल (एक प्रकार की गोभी), पालक और चौलाई को शामिल करें।
    बाहर का काम सुबह-सुबह या शाम को सूरज ढलने के बाद करें। इस वक्त प्रदूषण का स्तर कम होता है।
    किसी फैक्ट्री या व्यस्त सड़क के आसपास व्यायाम न करें।
    चलें, खेलें और दौड़ें। सप्ताह में कम से कम तीन दिन आधे घंटे की दौड़ लगाएं या पैदल चलें।
    वजन कम करने पर ध्यान दें। मोटापा फेफड़े को सही ढंग से काम करने से रोकता है।
    देर तक बैठे रहते हैं या अकसर हवाई यात्रा करते हैं तो थोड़ी देर पर उठ कर टहलते रहें। सूजन का ध्यान रखें।
    यदि अस्थमा है तो इनहेलर साथ रखें।
    कम दूरी वाले कामों के लिए वाहन का इस्तेमाल न करें।