5.11.15

नकसीर से तुरंत राहत पाने के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार Treatment of bleeding from the nose


ज्यादा गर्मी के कारण नाक से खून बहने लगता है जिसे नकसीर कहते हैं। नकसीर बंद करने के कई घरेलू उपाय हैं| वैसे नाक से खून निकलना अपने आप में कोई रोग नहीं है लेकिन, जब बार-बार नाक से खून निकलता है तब यह एक रोग बन जाता है। नाक की अंदरूनी सतह के पास की रक्त वाहिकाएँ फट जाती हैं। इस तरह की नकसीर जल्दी ही ठीक हो जाती है और बहुत कम उपचार की जरूरत होती है। कभी-कभी रक्त वापस मुंह में भी चला जाता है जिससे श्वास नलिका मे रुकावट हो सकती है। स्थिति गंभीर हो सकती है।कुछ गर्म खा लेने या बाहर की गर्मी लग जाने से नकसीर की समस्या कुछ लोगों को ज्यादा ही परेशान करती है। कुछ लोग अपनी नाजुक प्रकृति के कारण नाक पर जरा सी चोट लगते ही नाक से खून बहने की परेशानी से रूबरू हो जाते हैं|
1) रोगी के दोनों हाथों में बर्फ के टुकड़े रखने चाहिए तथा रोगी की नाक पर बर्फ को कपडे में लपेट कर रोगी के सिर को नीचे रखना चाहिए।

2 ) काली मिट्टी पर पानी छिड़ककर इसकी खुशबू सूंघें।
3 ) रुई के फाए को सफेद सिरका में भिगोकर उस नथुने में रखें, जिससे खून बह रहा हो।
4) जब नाक से खून बह रहा हो तो कुर्सी पर बिना टेका लिए बैठ जाएं, नाक की बजाय मुंह से सांस लें।
5) किसी भी प्रकार के धूम्रपान (एक्टिव या पैसिव दोनों) से बचें।

6) पित्त शामक '' गुलकंद''का सेवन करे और साफ हरे धनिए की पत्तियों के रस की कुछ बूंदें नाक में डाल लें।
7) शीशम या पीपल के पत्तों को पीसकर या कूटकर , उसका रस नाक में 4-5 बूँद ड़ाल दिया जाए तो तुरंत आराम आता है .
8) थोड़ा सा सुहागा पानी में घोलकर नथूनों पर लगाऐं नकसीर तुरन्त बन्द हो जाएगी।
9) जिस व्यक्ति को नकसीर चल रही है उसे बिठाकर सिर पर ठण्डे पानी की धार डालते हुए सिर भिगों दें। बाद में थोड़ी पीली मिट्टी को भिगोकर सुंघाने से नकसीर तुरन्त बन्द हो जाएगी
10) प्याज को काटकर नाक के पास रखें और सूंघें।
11) . जिस व्यक्ति को नकसीर चल रही है उसे बिठाकर सिर पर ठण्डे पानी की धार डालते हुए सिर भिगों दें। बाद में थोड़ी पीली मिट्टी को भिगोकर सुंघाने से नकसीर तुरन्त बन्द हो जाएगी

ऩकसीर रोगी के पथ्य परहेज
नकसीर फूटने पर गरम पदार्थों जैसे गरम मसाले, चाट-पकौड़े, चाय, कहवा, शराब या अन्य प्रकार के मादक पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। शरीर की सहनशीलता तथा स्वभाव से अधिक ठंडे पदार्थों को भी नहीं ग्रहण करना चाहिए। सम स्वभाव या तासीर के फल तथा सब्जियां खानी चाहिए। ठंडे पदार्थों का सेवन हितकारी रहता है। वैसे पित्त को शान्त करने वाले नुस्खों का इस्तेमाल किया जा सकता है।
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  • चेहरे के तिल और मस्से इलाज
  • लाल मिर्च के औषधीय गुण
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  • जमालगोटा के औषधीय प्रयोग
  • एसिडिटी के घरेलू उपचार
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  • 25.10.15

    डकार आना रोकने के घरेलू उपचार // Home remedies to prevent belching

                                                   

          डकार अधिक मात्रा में हवा के निगलने के कारण होती है,जब हम हवा निगलते हैं तो उसी तरह बाहर भी निकलती है, इसलिये जब यह मुंह से बाहर निकलती है तो हम इसे डकार कहते हैं। यह पेट से गैस के बाहर निकलने का प्राकृतिक तरीका है, अगर पेट से गैस बाहर न निकले तो यह कई पेट की समस्याओं को रास्ता देता है जैसे पेट में बहुत दर्द और पेट फटने जैसा आदि।

    निम्न घरेलू उपचारों का प्रयोग  आपकी डकार की समस्या को प्रभावी तरीके से ठीक करेगा।
    दही-
     भोजन के पाचन  मे सहायक होता है |इसमे मौजूद बेक्टीरिया पेट तथा आंतों से जुड़ी सभी समस्याओं को दूर करने मे सहायक है| छाछ  या लस्सी  का प्रयोग भी  लाभप्रद साबित होता है| 
    काला जीरा -
     यह पाचन तंत्र को शांत रखता है और कुदरती तौर पर डकार की समस्या  को कम करता है|  इसे एसे  ही खाया जा सकता है या सलाद मे डाला जा सकता है| 

    अदरक-

         अदरक के अच्छे चिकित्सकीय गुण आपकी डकार की समस्या के लिये समाधान प्रस्तुत करते है। अदरक के छोटे टुकड़े को तब तक चबायें जब तक की आपके मुंह में रस न आ जाये। अगर आप तीखी गंध को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं तो स्वाद को बदलने के लिये शहद का प्रयोग साथ में करें, आप अदरक की चाय का भी प्रयोग कर सकते हैं जो अदरक लेने के जैसा परिणाम देगा।

    चाय-

    चाय दिन की शुरुआत के लिये अच्छा संकेत है। जब आप चाय बना रहे है तो मिश्रण में मिंट की पत्तियों को मिलायें। इसके एंटीऑक्सीडेंट पेट से निकलने वाले गैस को कम करने में सहायता देगा। भोजन पश्चात  हर्बल चाय डकार से बचने में सहायता कर सकती है।

    पपीता

    पपीते में पपेन नामक महत्वपूर्ण एंज़ाइम पाया जाता है जो आपके पाचन तंत्र को अच्छी स्थिति में रखता है। यह प्राय: उन व्यक्तियों द्वारा उपभोग में लाया जाता है जो अपनी त्वचा की देखभाल करते हैं लेकिन यह पाचन और डकार को ठीक करने की एक दवा है।

    नींबू और बेकिंग सोडा-

    अगर आप बहुत अधिक डकार की समस्या से परेशान हैं तो डकार में प्रभावी कमी के लिये इस घरेलू उपचार को अपनाने का प्रयास कर सकते हैं। एक चम्मच नींबू रस और ¼ चम्मच बेकिंग सोडा को लेकर इसे 2 ग्लास पानी के साथ मिश्रण बनाकर हिलाकर इसे पी डालें। यह रसोई आधारित सलाह डकार से आपको राहत दिलायेगा।

    भोजन करते समय अपना मुँह बंद करें

    अब तक आपने साधारण घरेलू उपचार के बारे में सीखा और अब आप कुछ शिष्टाचार सुझाओं पर ध्यान दें जो आपकी डकार की समस्या में बदलाव लाते है। आप अपना भोजन करते समय अपना मुंह बंद रखें और भोजन करे, अगर आप मुंह खोल कर भोजन करते है तो आप हवा को पेट में जाने का रस्ता देंगें। हम लोगों में से कुछ लोग जल्दी में होते है और वे भोजन को बजाय चबाने के सीधे निगल जाते हैं, इस तरह की छोटी चीज़ें भी डकार की समस्या को बढ़ा सकती हैं

    धूम्रपान बंद करें-

     धूम्रपान की वस्तुओं  में निकोटीन शामिल होता है और इसका शरीर में भण्डारण अधिक संख्या में डकार को जन्म देता है। इसलिये, डकार के समाधान  के लिये धूम्रपान को बंद करना चाहिये।













    30.9.15

    श्वसन समस्याएँ :कारण और निवारण // Respiratory Problems : Causes and cures.








                                   


    सांसें तेज चलना, गहरी सांस न ले पाना, सांस लेने में परेशानी होना कुछ ऐसी बातें हैं, जिनका सामना कभी-कभार सबको करना पड़ता है। लेकिन लंबे समय तक इस स्थिति का बने रहना ठीक नहीं। यह जानना जरूरी हो जाता है कि ऐसा क्यों हो रहा है?



      लगातार अधिक शारीरिक श्रम करने पर सांसें चढ़ने लगती हैं। जल्दबाजी व तनाव की स्थिति में भी सांसें उखड़ जाती हैं, पर ऐसी स्थितियों में सांसों की गति जल्द ही सामान्य भी हो जाती है। कई बार नियमित व्यायाम व जीवनशैली में सुधार करके भी आराम मिल जाता है। पर यदि हर समय सांस लेने में परेशानी हो रही हो तो ध्यान देना जरूरी है। आइये जानते हैं उन रोगों के बारे में, जिनकी वजह से सांस लेने में परेशानी हो सकती है...

    फेफड़ों की समस्याएं-
    सांस नली के जाम होने पर या फेफड़ों में छोटी-मोटी परेशानी होने पर सांसें छोटी आने लगती हैं। किसी प्रोफेशनल की मदद से इस स्थिति से जल्दी ही राहत पाई जा सकती है। लेकिन यदि ऐसा लंबे समय से है तो यह किसी दूसरी बीमारी का लक्षण हो सकता है, जैसे ...

    अस्थमा -
    सांस नली में सूजन आने की वजह से वो संकरी हो जाती है, जिससे सांस लेने में परेशानी होती है। सांस लेते समय घरघराहट और खांसी रहती है।
    पलमोनरी एम्बोलिज्म :
    इसमें फेफड़ों तक जाने वाली धमनियां वसा कोशिकाओं, खून के थक्कों, ट्यूमर सेल या तापमान में बदलाव के कारण जाम हो जाती हैं। रक्त संचार में आए इस अवरोध के कारण सांस लेने और छोड़ने में परेशानी होती है। छाती में दर्द भी होता है।
    क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पलमोनरी डिजीज (सीओपीडी)-


    इस स्थिति में सांस नली बलगम या सूजन की वजह से संकरी हो जाती है। सिगरेट पीने वालों, फैक्टरी में रसायनों के बीच काम करने वालों और प्रदूषण में रहने वाले लोगों को यह खासतौर पर होती है।

    निमोनिया -
    यह बीमारी स्ट्रेप्टोकोकस निमोनिया नाम के एक कीटाणु की वजह से होती है। दरअसल यह बैक्टीरिया श्वास नली में एक खास तरह का तरल पदार्थ उत्पन्न करता है, जिससे फेफड़ों तक पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती और रक्त में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। खून में ऑक्सीजन की कमी के चलते होठ नीले पड़ जाते हैं, पैरों में सूजन आ जाती है और छाती अकड़ी हुई सी लगती है।


    ह्रदय रोग-
    दिल की बीमारियों के चलते भी सांस लेने में तकलीफ हो सकती है। दिल के रोग मसलन, एन्जाइना, हार्ट अटैक, हार्ट फेल्योर, जन्मजात दिल में परेशानी या एरीथमिया आदि में ब्रेथलेसनेस होती है। दिल की मांसपेशियां कमजोर होने पर वे सामान्य गति से पंप नहीं कर पातीं। फेफड़ों पर दबाव बढ़ जाता है और व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ होती है। ऐसे लोग रात में जैसे ही सोने के लिए लेटते हैं, उन्हें खांसी आने लगती है और सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। इसमें पैरों या टखनों में भी सूजन आ जाती है। सामान्य से ज्यादा थकान रहती है।बेचैनी भी हो सकती है वजह -
    बेचैन रहना या बात-बात पर चिंता करना भी सांस को असामान्य बना देता है। दरअसल बेचैनी हाईपरवेंटिलेशन की वजह से होती है यानी जरूरत से ज्यादा सांस लेना। सामान्य स्थिति में हम दिन में 20,000 बार सांस लेते और छोड़ते हैं। ओवर-ब्रीदिंग में यह आंकड़ा बढ़ जाता है। हम ज्यादा ऑक्सीजन लेते हैं और उसी के अनुसार कार्बन डाईऑक्साइड भी छोड़ते हैं। शरीर को यही महसूस होता रहता है कि हम पर्याप्त सांस नहीं ले रहे। कई बार सांस व रोगों के बारे में बहुत सोचते रहने पर भी ऐसा होता है। पैनिक अटैक में ऐसा ही होता है। सांसों पर नियंत्रण रखने की बहुत अधिक कोशिश करने तक से ऐसा हो जाता है।
    हो सकती है एलर्जी -
    कई लोगों का प्रतिरक्षा तंत्र संवेदनशील होता है, जिससे उन्हें प्रदूषण, धूल, मिट्टी, फफूंद और जानवरों के बाल आदि से एलर्जी रहने लगती है। ऐसे लोगों को एलर्जन के संपर्क में आने व मौसम में बदलाव आने पर एलर्जी का अटैक पड़ने लगता है। सांस लेने में परेशानी होती है। सीने में जकड़न आने लगती है। सांस फूलने लगता है।

    मोटापा घटाएं-
    शोधकर्ताओं का दावा है कि मोटापा बढ़ते ही सांस की पूरी प्रणाली प्रभावित हो जाती है। सांस के लिए मस्तिष्क से आने वाले निर्देश का पैटर्न बदल जाता है। वजन में इजाफा और सक्रियता की कमी रोजमर्रा के कामों को प्रभावित करने लगते हैं। थोड़ा सा चलने, दौड़ने या सीढि़यां चढ़ने पर परेशानी होती है। सांस लेने में परेशानी होना वजन कम करने और व्यायाम को जीवनशैली में शामिल करने का भी संकेत है।
    अन्य कारण -
    शरीर में कैंसर कोशिकाओं के कारण सांस नली पर दबाव बढ़ता है और सांस लेने में परेशानी होती है। गर्भाशय व लिवर कैंसर में पेट में तरल पदार्थ जमा हो जाते हैं, जिससे पेट में सूजन आ जाती है। डायफ्राम पर पड़ा दबाव फेफड़ों को खुलने नहीं देता और सांस लेने में परेशानी होती है।

        शरीर में खून की कमी यानी एनीमिया होने की स्थिति में भी सांस लेने में परेशानी की समस्या होती है। इस दौरान रक्त कोशिकाओं में हीमोग्लोबिन नामक प्रोटीन कम हो जाता है, जिससे ऑक्सीजन फेफड़ों से शरीर के सब हिस्सों तक नहीं पहुंच पाती। शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण में कमी का कारण शरीर में आयरन, विटामिन बी-12 या प्रोटीन की कमी होना है।
    ये उपाय देंगे राहत की सांस
    घर के वेंटिलेशन का रखें खास ध्यान। कार्पेट, तकिए और गद्दों पर धूप लगाएं। परदों की साफ-सफाई करें। रसोई और बाथरूम में लगाएं एग्जॉस्ट फैन। एसी का इस्तेमाल कम करें।
    धूम्रपान न करें, सिगरेट पीने वालों से दूरी बनाएं।

    खाने में ब्रोकली, गोभी, पत्ता गोभी, केल (एक प्रकार की गोभी), पालक और चौलाई को शामिल करें।
    बाहर का काम सुबह-सुबह या शाम को सूरज ढलने के बाद करें। इस वक्त प्रदूषण का स्तर कम होता है।
    किसी फैक्ट्री या व्यस्त सड़क के आसपास व्यायाम न करें।
    चलें, खेलें और दौड़ें। सप्ताह में कम से कम तीन दिन आधे घंटे की दौड़ लगाएं या पैदल चलें।
    वजन कम करने पर ध्यान दें। मोटापा फेफड़े को सही ढंग से काम करने से रोकता है।
    देर तक बैठे रहते हैं या अकसर हवाई यात्रा करते हैं तो थोड़ी देर पर उठ कर टहलते रहें। सूजन का ध्यान रखें।
    यदि अस्थमा है तो इनहेलर साथ रखें।
    कम दूरी वाले कामों के लिए वाहन का इस्तेमाल न करें।







    20.9.15

    हिचकी रोकने के उपचार, Remedies to stop hiccups


    हिचकी रोकेंगे ये पांच आसान उपाय
    *चीनी खाएं हिचकी शुरु होते ही एक चम्मच शक्कर तुरंत मुंह में डाल लें। ...
    *ध्यान भटकाएं कनाडा के रीडर्स डायजेस्ट में प्रकाशित शोध की मानें तो ध्यान भटकाने से भी हिचकी दूर हो जाती है। ...


    *गहरी सांस लें ...
    *पानी पिएं|नाक बंद करें और पानी का बड़ा घूंट मुंह में भरें और कुछ सेकेंड मुंह में रखने के बाद पी जाएं। हिचकी बंद हो जाएगी।
    *जीभ बाहर निकालें-
    *हिचकी ज्यादा आने पर अपनी जीभ को जितना ज्यादा बाहर निकाल सको निकालें | इससे गले का वह भाग खुल जाएगा जो नाक के रास्ते वोकल कार्ड को जोड़ता है| इससे हिचकी बंद हो जाती है|
    1. पायरिया के घरेलू इलाज
    2. चेहरे के तिल और मस्से इलाज
    3. लाल मिर्च के औषधीय गुण
    4. लाल प्याज से थायराईड का इलाज
    5. जमालगोटा के औषधीय प्रयोग
    6. एसिडिटी के घरेलू उपचार
    7. नींबू व जीरा से वजन घटाएँ
    8. सांस फूलने के उपचार
    9. कत्था के चिकित्सा लाभ
    10. गांठ गलाने के उपचार
    11. चौलाई ,चंदलोई,खाटीभाजी सब्जी के स्वास्थ्य लाभ
    12. मसूड़ों के सूजन के घरेलू उपचार
    13. अनार खाने के स्वास्थ्य लाभ
    14. इसबगोल के औषधीय उपयोग
    15. अश्वगंधा के फायदे
    16. लकवा की चमत्कारी आयुर्वेदिक औषधि वृहत वात चिंतामणि रस
    17. मर्द को लंबी रेस का घोडा बनाने के अद्भुत नुस्खे
    18. सदाबहार पौधे के चिकित्सा लाभ
    19. कान बहने की समस्या के उपचार
    20. पेट की सूजन गेस्ट्राईटिस के घरेलू उपचार
    21. पैर के तलवों में जलन को दूर करने के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार
    22. लकवा (पक्षाघात) के आयुर्वेदिक घरेलू नुस्खे
    23. डेंगूबुखार के आयुर्वेदिक नुस्खे
    24. काला नमक और सेंधा नमक मे अंतर और फायदे
    25.  कालमेघ जड़ी बूटी लीवर रोगों की महोषधि
    26. हर्निया, आंत उतरना ,आंत्रवृद्धि के आयुर्वेदिक उपचार
    27. पाइल्स (बवासीर) के घरेलू आयुर्वेदिक नुस्खे
    28. चिकनगुनिया के घरेलू उपचार
    29. चिरायता के चिकित्सा -लाभ
    30. ज्यादा पसीना होने के के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार
    31. पायरिया रोग के आयुर्वेदिक उपचार
    32. व्हीटग्रास (गेहूं के जवारे) के रस और पाउडर के फायदे
    33. घुटनों के दर्द को दूर करने के रामबाण उपाय
    34. चेहरे के तिल और मस्से हटाने के उपचार
    35. अस्थमा के कारण, लक्षण, उपचार और घरेलू नुस्खे
    36. वृक्क अकर्मण्यता(kidney Failure) की रामबाण हर्बल औषधि
    37. शहद के इतने सारे फायदे नहीं जानते होंगे आप!
    38. वजन कम करने के उपचार
    39. केले के स्वास्थ्य लाभ
    40. लीवर रोगों की महौषधि भुई आंवला के फायदे
    41. हरड़ के गुण व फायदे
    42. कान मे मेल जमने से बहरापन होने पर करें ये उपचार
    43. पेट की खराबी के घरेलू उपचार
    44. शिवलिंगी बीज के चिकित्सा उपयोग


    17.8.15

    वर्षा ऋतु मे संधिवात गठिया के उपचार:Treatment of Arthritis in Rainy Season





    बरसात के मौसम में अक्सर लोगों को जोड़ों के दर्द की शिकायत बढ़ जाती है जिसे संधिवात या अर्थराइटिस भी कहा जाता है। आपके जोड़ों का दर्द स्थानीय मौसम विज्ञान विभाग की तुलना में बदलते मौसम का बेहतर संकेत माना जा सकता है।

        कई ऐसे खाद्य पदार्थ भी हैं जो संधिवात की समस्या बढ़ा सकते हैं, हालांकि खुराक या खाद्य संवेदनशीलता या अस्वीकार्यता के कारण शायद ही अर्थराइटिस की समस्या होती है। संधिवात की चेतावनी देने वाले लक्षणों में दर्द, सूजन, अकडऩ और जोड़ों को मोडऩे में दिक्कत शामिल हैं। संधिवात के लक्षण धीरे-धीरे या अचानक उभर सकते हैं और कई बार जब अर्थराइटिस पुराना रोग बन जाता है तो इसके लक्षण आते-जाते रहते हैं और लंबे समय तक बरकरार रहते हैं। अर्थराइटिस की पीड़ा विशेष रूप से एक या अधिक जोड़ों में या इनके आसपास दर्द, कष्ट, जकडऩ और सूजन से समझी जा सकती है जिसे रूमेटिक स्थितियों से पहचाना जाता है। इसके लक्षण धीरे-धीरे या अचानक से बढ़ सकते हैं। कुछ रूमेटिक स्थितियों में इम्युन सिस्टम (प्रतिरक्षा प्रणाली) तथा शरीर के विभिन्न अंदरूनी अंगों का भी योगदान रहता है। रूमेटोइड अर्थराइटिस और लूपस जैसे अर्थराइटिस के कुछ प्रकार कई अंगों को प्रभावित कर सकते हैं और व्यापक लक्षण का कारण बन सकते हैं।
    यह रोग 50 वर्ष या इससे अधिक आयु वाले लोगों में अधिक पाया जाता है लेकिन बच्चों समेत हर उम्र के व्यक्तियों को यह रोग प्रभावित कर सकता है। मौसम के बदलाव संबंधी जोड़ों का दर्द आम तौर पर ऑस्टियोअर्थराइटिस तथा रूमेटोइड अर्थराइटिस से पीडि़त व्यक्तियों में देखा गया है जिन्हें नितंब, घुटने, कुहनी, कंधे तथा हाथ में दर्द की शिकायत हो सकती है। इन जोड़ों में बैरोरिसेप्टर्स नामक संवेदी नाडिय़ां होती हैं जो बैरोमेट्रिक (वायुदाबीय) बदलाव की पहचान कर सकती हैं। ये रिसेप्टर्स खास तौर पर जब प्रतिक्रिया देते हैं जब बैरोमेट्रिक दबाव निम्न रहता है, मसलन जब बारिश की बौछार से पहले मौसम बदल जाता है। अर्थराइटिस जोड़ के दर्द से पीडि़त व्यक्ति ऐसे बैरोमेट्रिक बदलावों के प्रति अधिक संवेदनशील पाए गए हैं। निम्न बैरोमेट्रिक दबाव के साथ उच्च नमी का ताल्लुक जोड़ों का दर्द और अकडऩ बढऩे से होता है, हालांकि इनमें से कोई एक कारण भी इस दर्द की वजह बन सकता है। कुल मिलाकर, आंधी-तूफान से पहले निम्न बैरोमेट्रिक दबाव और नमी में वृद्धि जोड़ों के दर्द एवं अकडऩ बढ़ाने का कारण बन सकती है। ऐसे में सबसे अच्छी सलाह यही है कि आप पूरे वर्ष किसी भी मौसम में यथासंभव अत्यंत सक्रिय बने रहें। खूब सारा पानी पीयें और बिना वजन उठाने वाला व्यायाम करते हुए अपने जोड़ों को सक्रिय रखें।
       ओमेगा-3 फैटी एसिड, ग्लूकोसामाइन तथा कोंड्रोइटिन सल्फेट भी ऐसे लोगों के लिए काफी लाभकारी हो सकता है।अर्थराइटिस से पीडि़त व्यक्तियों को दर्द, कामकाज तथा मानसिक स्वास्थ्य में सुधार लाने में शारीरिक सक्रियता और व्यायाम के लाभ देखे गए हैं। हल्के-फुल्के व्यायाम से अर्थराइटिस से पीडि़त व्यक्तियों को कार्डियोवैस्क्यूलर रोग, डायबिटीज, मोटापा और शिथिलता की चपेट में आने का खतरा कम हो जाता है। इनमें से कुछ रिस्क फैक्टर्स में सुधार किया जा सकता है जबकि अन्य में नहीं। नहीं सुधारे जा सकने वाले (अपरिवर्तनीय) रिस्क फैक्टर्स: उम्र: ज्यादातर प्रकार के अर्थराइटिस का खतरा उम्र बढऩे के साथ ही बढ़ता जाता है।
       अर्थराइटिस के ज्यादातर प्रकार महिलाओं में अधिक आम होते हैं। अर्थराइटिस से पीडि़त लोगों में 60 प्रतिशत महिलाएं ही होती हैं। लेकिन महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में गठिया की शिकायत अधिक देखी गई है।
    कुछ पेशे में बार-बार घुटने को मोडऩा और झुकाना पड़ता है और यह घुटने में ऑस्टियोअर्थराइटिस का कारण बन सकता है। कई ऐसे खाद्य पदार्थ भी हैं जो अर्थराइटिस की समस्या बढ़ा सकते हैं, हालांकि खुराक या खाद्य संवेदनशीलता या अस्वीकार्यता के कारण शायद ही अर्थराइटिस की समस्या होती है। अर्थराइटिस की चेतावनी देने वाले लक्षणों में दर्द, सूजन, अकडऩ और जोड़ों को मोडऩे में दिक्कत शामिल हैं। अर्थराइटिस के लक्षण धीरे-धीरे या अचानक उभर सकते हैं और कई बार जब अर्थराइटिस पुराना रोग बन जाता है तो इसके लक्षण आते-जाते रहते हैं और लंबे समय तक बरकरार रहते हैं।
    अर्थराइटिस के चार मुख्य चेतावनी भरे लक्षण हैं -

    दर्द: 

    अर्थराइटिस का दर्द लगातार बना रह सकता है या फिर यह आता-जाता रह सकता है। यह दर्द या तो एक ही जगह बना रह सकता है या फिर शरीर के कई हिस्सों में हो सकता है।
    वर्षा ऋतु मे संधिवात गठिया के उपचारसूजन: कुछ प्रकार के अर्थराइटिस प्रभावित जोड़ की ऊपरी त्वचा को लाल और सूजन-भरा बना देते हैं जिसे छूने पर गर्माहट का अहसास होता है।
     
    अकडऩ: 

    अकडऩ अर्थराइटिस का एक विशेष लक्षण होता है, खासकर जब आप सुबह के वक्त टहल रहे हों या लंबे समय बाद डेस्क पर बैठ रहे हों या कार चला रहे हों। किसी जोड़ को मोडऩे में दिक्कत: जोड़ को मोडऩे में या कुर्सी से उठने में कठिनाई होती है और यह कष्टकारी होता है। रूमेटोइड अर्थराइटिस के कुछ लक्षणों में शामिल हैं:-
      सांस लेते वक्त सीने में दर्द की शिकायत, आंख और मुंह का सूखना, आंखों मे जलन, खुजलाहट और पानी आना, हाथों और पैरों में संवेदनशून्यता, सिहरन या जलन, नींद आने में परेशानियां अर्थराइटिस को दवाइयों के साथ-साथ उचित गतिविधियों और व्यायाम से भी नियंत्रित किया जा सकता है। ये दवाइयों रोग में सुधार लाने वाली दवाइयां कहलाती हैं।
      जहां तक खानपान की बात है तो अर्थराइटिस से पीडि़त व्यक्ति को डेयरी उत्पादों, गेहूं, मांस, आलू, काली मिर्च, बैंगन और टमाटर जैसी सब्जियों, अल्कोहल, कॉफी, चीनी, सैचुरेटेड फैट, अधिक नमक और बादाम के सेवन से बचना चाहिए। इसकी सूजन और दर्द से राहत पाने के लिए इप्सम सॉल्ट बॉथ की सलाह दी जाती है। जोड़ों पर स्थानीय मिट्टी का लेप भी लगाया जा सकता है।
    एक कप गर्म पानी में दो चम्मच शहद और एक चम्मच दालचीनी का पाउडर मिलाकर इसे नियमित रूप से पीने से बेहतर असर होता है।



      संधिवात,कमरदर्द,गठिया
      साईटिका ,घुटनो का दर्द आदि वात जन्य रोगों में जड़ी - बूटी निर्मित हर्बल औषधि ही अधिकतम प्रभावकारी सिद्ध होती है| रोग को जड़ से निर्मूलन करती है| बड़े अस्पताल के महंगे इलाज के बावजूद निराश रोगी इस औषधि से निरोग हुए हैं| बिस्तर पकड़े पुराने रोगी भी दर्द मुक्त गतिशीलता हासिल करते हैं| 
      औषधि के लिए वैध्य श्री दामोदर से 98267-95656 पर संपर्क कर सकते हैं|
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    14.7.15

    अलसी (flax seeds)के स्वास्थ्य लाभ


    श्रेष्ठ भोज्य पदार्थ अलसी में ओमेगा 3 फेटी एसिड व सबसे अधिक फाइबर होता है। इसे देव भोजन कहा गया है| यह कई रोगों के उपचार में लाभप्रद है। अब निम्न पंक्तियों मे यह बताया जाएगा कि अलग अलग रोगों मे अलसी का उपयोग कैसे किया जा सकता है-
     खाँसी होेने पर अलसी की चाय पीएं। पानी को उबालकर उसमें अलसी पाउडर मिलाकर चाय तैयार करें।एक चम्मच अलसी पावडर को दो कप (360 मिलीलीटर) पानी में तब तक धीमी आँच पर पकाएँ जब तक यह पानी एक कप न रह जाए। थोड़ा ठंडा होने पर शहद, गुड़ या शकर मिलाकर पीएँ। सर्दी, खाँसी, जुकाम, दमा आदि में यह चाय दिन में दो-तीन बार सेवन की जा सकती है। दमा रोगी एक चम्मच अलसी का पाउडर केा आधा गिलास पानी में 12 घंटे तक भिगो दे और उसका सुबह-शाम छानकर सेवन करे तो काफी लाभ होता है। गिलास काँच या चाँदी को होना चहिए।

    3. समान मात्रा में अलसी पाउडर, शहद, खोपरा चूरा, मिल्क पाउडर व सूखे मेवे मिलाकर
    औषधि तैयार करें। कमजोरी में व बच्चों के स्वास्थ्य के लिए उपकारी है


    4 डायबीटिज के मरीज को आटा गुन्धते वक्त प्रति व्यक्ति 25 ग्राम अलसी काॅफी ग्राईन्डर में ताजा पीसकर आटे में मिलाकर इसका सेवन करना चाहिए। अलसी मिलाकर रोटियाँ बनाकर खाई जा सकती हैं। अलसी एक जीरो-कार फूड है अर्थात् इसमें कार्बोहाइट्रेट अधिक होता है।शक्कर की मात्रा न्यूनतम है।
    5 कैंसर रोगियों को ठंडी विधि से निकला तीन चम्मच तेल, छः चम्मच पनीर में मिलाकर उसमें सूखे मेवे मिलाकर देने चाहिए। कैंसर रोगियों को ठंडी विधि से निकले तेल की मालिश भी करनी चाहिए।
    6 साफ बीनी हुई और पोंछी हुई अलसी को धीमी आंच पर तिल की तरह भून लें। इसमें सेंधा नमक भी मिलाया जा सकता है। ज्यादा पुरानी भुनी हुई अलसी का प्रयोग कदापि न करें
    7 बेसन में 25 प्रतिशत अलसी मिलाकर व्यंजन बनाएं। बाटी बनाते वक्त भी उसमें भी अलसी पाउडर मिलाया जा सकता है। सब्जी की ग्रेवी में भी अलसी पाउडर का प्रयोग करें।
    8 अलसी सेवन के दौरान खूब पानी पीना चाहिए। इसमें पर्याप्त रेशा होता है जिसे ज्यादा पानी की जरूरत होती है|

         इस लेख के माध्यम से दी गयी जानकारी आपको अच्छी और लाभकारी लगी हो तो कृपया लाईक,comment  और शेयर जरूर कीजियेगा । आपके एक शेयर से किसी जरूरतमंद तक सही जानकारी पहुँच सकती है और हमको भी आपके लिये और बेहतर लेख लिखने की प्रेरणा मिलती है|




















    29.5.15

    गठिया,संधिवात के अनुभूत आयुर्वेदिक घरेलू उपचार // Gout, Arthritis Treatment


     

      
    जिसकी अग्नि मंद है और नियमित व्यायाम नहीं करने वाला अगर विरुद्ध आहार करता है या अति स्निग्ध अन्न का सेवन कर तुरंत व्यायाम करता है उसे आम वात उत्पन्न होता है। अंग्रेजी में इसे (Rheumatism)रह्युमेटोईड अर्थराइटिस कहा जाता है।
    इसे साधारण बोलचाल की भाषा में गठिया भी कहते है।भूख कम होने पर भी जीभ के वश हो कर खाया गया अन्न पचता नहीं और आँव स्वरूप हो जाता है जिसे आयुर्वेद में “आम” कहा गया है।यह आम प्रकुपित हुए वात दोष के द्वारा सम्पूर्ण शरीर में घुमने लगता है।
    जब चलने-फिरने में तकलीफ होने लगे तो मन में तुरंत एक बीमारी का नाम आता है और वह है गठिया। यूं तो यह बीमारी आम-सी हो गई है, लेकिन इसका दर्द कई बार जीना मुहाल कर देता है। इससे बचाव के लिए क्या करें, क्या न करें-
    शारीरिक रूप से स्वस्थ रहना बहुत जरूरी है। अपने सारे काम हम शरीर से ही तो करते हैं, लेकिन कई बार कुछ बीमारियों के कारण हम परेशान भी हो जाते हैं। उन्हीं में से एक बीमारी है गठिया। इसमें शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है, जिसकी वजह से जोड़ों में सूजन आ जाती है। ऐसे में पीडित दर्द के कारण ज्यादा चल नहीं सकता, दौड़ नहीं सकता, यहां तक कि हिलने-डुलने में भी परेशानी होने लगती है। पैरों के अंगूठे में इसका असर सबसे पहले देखने को मिलता है। अंगूठे बुरी तरह से सूज जाते हैं और तब तक ठीक नहीं होते, जब तक कि उनका इलाज न करवाया जाए। कई बार तो उंगलियों के जोड़ों में यूरिक एसिड के क्रिस्टल जमा हो जाते है, जिससे उंगलियों के जोड़ों में बहुत दर्द होता है। इस रोग की सबसे बड़ी पहचान ये है कि रात को जोड़ों का दर्द बढ़ता है और सुबह थकान महसूस होती है। इसका उपचार अगर जल्दी न कराया गया तो यह बीमारी भयंकर रूप ले सकती है। इसलिए हम आपको बता रहे हैं कि इसमें किन चीजों से परेहज करें और किन चीजों को डाइट में शामिल करें।

    अल्कोहल और सॉफ्ट ड्रिंक के सेवन से बचें: वैसे तो गठिया से पीडित व्यक्तियों को ढेर सारा पानी पीने और तरल पदार्थों का सेवन करने को कहा जाता है, लेकिन अगर वे अल्कोहल और सॉफ्ट ड्रिंक का सेवन करते हैं तो उनकी समस्या और भी बढ़ सकती है। अल्कोहल खासकर बीयर शरीर में यूरिक एसिड के लेवल को तो बढ़ाता ही है और तो और शरीर से गैर जरूरी तत्व निकालने में शरीर को रोकता है। अगर आप बीयर पीने के आदी हैं तो डॉंक्टर की सलाह लेकर एक या दो ड्रिंक ले सकते हैं। उसी तरह सॉफ्ट ड्रिंक खासकर मीठे पेय या सोडा से बचें, क्योंकि इसमें फ्रेक्टोस नामक तत्व होता है, जो यूरिक एसिड के बढ़ने में मदद करता है।

    एक शोध से यह बात सामने आई है कि जो लोग ज्यादा मात्रा में फ्रेक्टोस वाली चीजों का सेवन करते हैं, उनमें गठिया होने का खतरा दोगुना हो जाता है।

    मछली और मीट से परहेज करें:

    खाने-पीने के शौकीन लोगों को अपने पसंदीदा खाने को छोड़ना पड़े तो उन्हें बहुत मुश्किल होती है। उन्हें भी और उनके परिवार वालों को भी। लेकिन बात जब अपनों की सेहत से जुड़ी हो तो थोड़ा ख्याल तो रखना ही पड़ता है। जब आपको गठिया हो तो उन खाद्य पदार्थों को खाने से बचना चाहिए, जिनमें अधिक मात्रा में प्यूरिन पाया जाता हो, क्योंकि ज्यादा प्यूरिन हमारे शरीर में ज्यादा यूरिक एसिड पैदा करता है। रेड मीट, हिलसा मछली, टूना, और एन्कोवी जैसी मछलियों में काफी मात्रा में प्यूरिन पाया जाता है, इसलिए इन्हें अपने खाने की मेन्यू से हटा दें।
    परहेज - जितनी भी खाने-पीने की चीजें हमें कुदरत ने दी हैं, वे किसी बीमारी में फायदा करती हैं तो किसी में नुकसान भी करती हैं, इसलिए हमें उनका चुनाव अपने शरीर के हिसाब से करना होगा। उदाहरण के तौर पर लें तो शतावरी, पत्तागोभी, पालक, मशरूम, टमाटर, सोयाबीन तेल जैसी चीजें हमारे स्वस्थ खानपान का हिस्सा हैं, लेकिन गठिया से पीडित व्यक्तियों को इनसे परहेज करना चाहिए। जैसे कि 99 ग्राम पालक में 100 मिलीग्राम प्यूरिन पाया जाता है।

    पथ्य -

    गाजर, शकरकंद और अदरक का सूप पिएं:

    गठिया परेशान कर रही है तो जड़ों वाले फल और सब्जियां जैसे गाजर, आलू, शकरकंद या दूसरे फल खाएं। आप अदरक का सूप भी पी सकते हैं। इनमें प्यूरिन की मात्रा काफी कम होती है।
    योग के कतिपय रूप गठिया रोग में अत्यंत लाभकारी हो सकते हैं जो निम्न चित्र में दिखाए गये हैं-



















    संधिवात में निम्न योगा लाभकारी सिद्ध हुए हैं-






    वीर भद्रासन










    भुजंगासन











    पवन मुक्तासन








    बालासन


    विशिष्ट परामर्श-  


    संधिवात,कमरदर्द,गठियासाईटिका ,घुटनो का दर्द आदि वात जन्य रोगों में जड़ी - बूटी निर्मित हर्बल औषधि ही अधिकतम प्रभावकारी सिद्ध होती है| रोग को जड़ से निर्मूलन करती है| औषधि से बिस्तर पकड़े पुराने रोगी भी दर्द मुक्त गतिशीलता हासिल करते हैं| बड़े अस्पतालों के महंगे इलाज़ के बावजूद निराश रोगी इस औषधि से आरोग्य हुए हैं|  त्वरित असर औषधि के लिए वैध्य श्री दामोदर से 98267-95656 पर संपर्क कर सकते हैं|












    9.3.15

    टी.बी (क्षय रोग). निवारक आयुर्वेदिक,घरेलू उपाय //TB (tuberculosis) :simple treatment


    यक्ष्मा रोग बेहद संक्रामक श्वसन पथ का रोग है इसे तपेदिक अथवा क्षय रोग के नाम से भी जाना जाता है| यह mycobacterium tuberculosis नामक बेक्टीरिया से उत्पन्न होने वाला रोग है| वैसे तो यह रोग फेफड़े पर हमला करता है लेकिन रक्त संचरण के जरिये यह रोग शरीर के अन्य अंगों को भी अपनी लपेट में ले सकता है| रोगी के निरंतर संपर्क में रहने वाले व्यक्ति को भी यह रोग आक्रान्त कर सकता है| जिसकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है वह सहज ही रोग की चपेट में आ सकता है|
    लक्षणों की बात करें तो थकावट इसका प्रमुख लक्षण है| खांसी बनी रहती है| बीमारी ज्यादा बढ़ जाने पर बलगन में खून के रेशे भी आते हैं| सांस लेने में दिक्कत आने लगती है| छोटी सांस इसका एक लक्षण है| बुखार बना रहता है या बार बार आता रहता है| वजन कम होंने लगता है| रात को अधिक पसीना आता है|छाती ,गुर्दे और पीठ में दर्द की अनुभूति होती है| टीबी के लिए उचित आधुनिक चिकित्सा जरूरी है.
    मैं इस रोग में उपयोगी पांच उपचार दे रहा हूँ |ये सहायक उपचार हैं और रोग को काबू में लेने के लिए लाभदायक हैं-
    १) लहसुन- में सल्फुरिक एसिड होता है जो टीबी के जीवाणु को खत्म करता है|
    लहसुन का एलीसिन तत्व टीबी के जीवाणु की ग्रोथ को बाधित करता है| एक कप दूध में ४ कप पानी मिलाएं\ इसमें ५ लहसुन की कुली पीसकर डालें और उबालें जब तरल चौथाई भाग शेष रहे तो आंच से उतार् लें और ठंडा होने पर पीलें| ऐसा दिन में तीन बार करना है|

       दूसरा उपचार यह कि एक गिलास गरम दूध में लहसुन के रस की दस बूँदें डालें| रात को सोते वक्त पीएं|
    २) केला - पौषक तात्वि, से परिपूर्ण फल है| केला शरीर के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है\ एक पका कला लें|मसलकर इसमें एक कप नारियल पानी ,आधा कप दही और एक चम्मच शहद मिलाएं| दिन में दो बार लेना कर्त्तव्य है|
    कच्चे केले का जूस एक गिलास मात्रा में रोज सेवन करें|



    ३) सहजन की फली - सहजन की फली में जीवाणु नाशक और सूजन नाशक तत्व होते हैं| टीबी के जीवाणु से लड़ने में मदद करता है| मुट्ठी भर सहजन के पत्ते एक गिलास पानी में उबालें | नमक,काली मिर्च और निम्बू का रस मिलाएं| रोज सुबह खाली पेट सेवन करें| सहजन की फलियाँ उबालकर लेने से फेफड़े को जीवाणु मुक्त करने में सहायता मिलती है|

    ४) आंवला अपने सूजन विरोधी एवं जीवाणु नाशक गुणों के लिए प्रसिद्ध है| आंवला के पौषक तत्त्व शरीर की प्रक्रियाओं को सुचारू चलाने की ताकत देते है| चार या पांच आंवले के बीज रहित कर लें जूसर में जूस निकालें| यह जूस सुबह खाली पेट लेना टीबी रोगी के लिए अमृत तुल्य है\ कच्चा आंवला या चूर्ण भी लाभदायक है|
    ५) संतरा - फेफड़े पर संतरे का क्षारीय प्रभाव लाभकारी है| यह इम्यून सिस्टम को बल देने वाला है| कफ सारक है याने कफ को आसानी से बाहर निकालने में सहायता कारक है| एक गिलास संतरे के रस में चुटकी भर नमक ,एक बड़ा चम्मच शहद अच्छी तरह मिलाएं\ सुबह और शाम पीएं|
    ६) तपेदिक का योग - आक का दूध १ तोला (10 ग्राम ), हल्दी बढ़िया १५ तोले(150 ग्राम ) - दोनों को एक
    साथ खूब खरल करें । खरल करते करते बारीक चूर्ण बन जायेगा । मात्रा - दो रत्ती से चार रत्ती(1/4 ग्राम से
    1/2 ग्राम तक )तक मधु (शहद) के साथ दिन में तीन-चार बार रोगी को देवें । तपेदिक के साथी ज्वर खांसी,
    फेफड़ों से कफ में रक्त (खून) आदि आना सब एक दो मास के सेवन से नष्ट हो जाते हैं और रोगी भला चंगा
    हो जाता है|
    इस औषध से वे निराश हताश रोगी भी अच्छे स्वस्थ हो जाते हैं जिन्हें डाक्टर अस्पताल से
    असाध्य कहकर निकाल देते हैं । बहुत ही अच्छी औषध है
    ७) प्रयोग शाला में किए गए अध्ययनों में यह बात सामने आई कि विटामिन सी शरीर में कुछ ऐसे तत्वों के उत्पादन को सक्रिय करता है जो टीबी को खत्म करती हैं.
     ये तत्व फ्री रैडिकल्स के नाम से जाने जाते हैं और यह t b के उस स्वरूप में भी कारगर होता है जब पारंपरिक antibiotics दवाएं भी नाकाम हो जाती हैं.विटामिन सी की ५०० एम जी की एक गोली दिन में तीन बार लेना चाहिये|