28.11.16

पुत्र प्राप्ति हेतु गर्भाधान का शास्त्रोक्त वैज्ञानिक तरीका // Scientific way of conception to produce son



किन बातों का रखें /ख्याल कि हो संतान/पुत्र की प्राप्‍ति ? 
मनपसंद संतान प्राप्ति के उपाय/उपचार/तरीके..
प्रायः देखने में आया है की किसी को संतान तो पैदा हुए लेकिन वो कुछ दीन बाद ही परलोक सुधर गया या अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गया है…
किसी को संतान होती ही नहीं है , कोई पुत्र चाहता है तो कोई कन्या …
हमारे ऋषि महर्षियों ने हजारो साल पहले ही संतान प्राप्ति के कुछ नियम और सयम बताये है ,संसार की उत्पत्ति पालन और विनाश का क्रम पृथ्वी पर हमेशा से चलता रहा है,और आगे चलता रहेगा। इस क्रम के अन्दर पहले जड चेतन का जन्म होता है,फ़िर उसका पालन होता है और समयानुसार उसका विनास होता है। मनुष्य जन्म के बाद उसके लिये चार पुरुषार्थ सामने आते है,पहले धर्म उसके बाद अर्थ फ़िर काम और अन्त में मोक्ष, धर्म का मतलब पूजा पाठ और अन्य धार्मिक क्रियाओं से पूरी तरह से नही पोतना चाहिये,धर्म का मतलब मर्यादा में चलने से होता है,माता को माता समझना पिता को पिता का आदर देना अन्य परिवार और समाज को यथा स्थिति आदर सत्कार और सबके प्रति आस्था रखना ही धर्म कहा गया है,अर्थ से अपने और परिवार के जीवन यापन और समाज में अपनी प्रतिष्ठा को कायम रखने का कारण माना जाता है,काम का मतलब अपने द्वारा आगे की संतति को पैदा करने के लिये स्त्री को पति और पुरुष को पत्नी की कामना करनी पडती है,पत्नी का कार्य धरती की तरह से है और पुरुष का कार्य हवा की तरह या आसमान की तरह से है,गर्भाधान भी स्त्री को ही करना पडता है,वह बात अलग है कि पादपों में अमर बेल या दूसरे हवा में पलने वाले पादपों की तरह से कोई पुरुष भी गर्भाधान करले। धरती पर समय पर बीज का रोपड किया जाता है,तो बीज की उत्पत्ति और उगने वाले पेड का विकास सुचारु रूप से होता रहता है,और समय आने पर उच्चतम फ़लों की प्राप्ति होती है,अगर वर्षा ऋतु वाले बीज को ग्रीष्म ऋतु में रोपड कर दिया जावे तो वह अपनी प्रकृति के अनुसार उसी प्रकार के मौसम और रख रखाव की आवश्यकता को चाहेगा,और नही मिल पाया तो वह सूख कर खत्म हो जायेगा,इसी प्रकार से प्रकृति के अनुसार पुरुष और स्त्री को गर्भाधान का कारण समझ लेना चाहिये। जिनका पालन करने से आप तो संतानवान होंगे ही आप की संतान भी आगे कभी दुखों का सामना नहीं करेगा…
कुछ राते ये भी है जिसमे हमें सम्भोग करने से बचना चाहिए .. जैसे अष्टमी, एकादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमवाश्या .चन्द्रावती ऋषि का कथन है कि लड़का-लड़की का जन्म गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष के दायां-बायां श्वास क्रिया, पिंगला-तूड़ा नाड़ी, सूर्यस्वर तथा चन्द्रस्वर की स्थिति पर निर्भर करता है।गर्भाधान के समय स्त्री का दाहिना श्वास चले तो पुत्री तथा बायां श्वास चले तो पुत्र होगा।
मनपंसद संतान-प्राप्ति के योग—
स्त्री के ऋतु दर्शन के सोलह रात तक ऋतुकाल रहता है,उस समय में ही गर्भ धारण हो सकता है,उसके अन्दर पहली चार रातें निषिद्ध मानी जाती है,कारण दूषित रक्त होने के कारण कितने ही रोग संतान और माता पिता में अपने आप पनप जाते है,इसलिये शास्त्रों और विद्वानो ने इन चार दिनो को त्यागने के लिये ही जोर दिया है।
चौथी रात को ऋतुदान से कम आयु वाला पुत्र पैदा होता है,पंचम रात्रि से कम आयु वाली ह्रदय रोगी पुत्री होती है,छठी रात को वंश वृद्धि करने वाला पुत्र पैदा होता है,सातवीं रात को संतान न पैदा करने वाली पुत्री,आठवीं रात को पिता को मारने वाला पुत्र,नवीं रात को कुल में नाम करने वाली पुत्री,दसवीं रात को कुलदीपक पुत्र,ग्यारहवीं रात को अनुपम सौन्दर्य युक्त पुत्री,बारहवीं रात को अभूतपूर्व गुणों से युक्त पुत्र,तेरहवीं रात को चिन्ता देने वाली पुत्री,चौदहवीं रात को सदगुणी पुत्र,पन्द्रहवीं रात को लक्ष्मी समान पुत्री,और सोलहवीं रात को सर्वज्ञ पुत्र पैदा होता है। इसके बाद की रातों को संयोग करने से पुत्र संतान की गुंजायश नही होती है। इसके बाद स्त्री का रज अधिक गर्म होजाता है,और पुरुष के वीर्य को जला डालता है,परिणामस्वरूप या तो गर्भपात हो जाता है,अथवा संतान पैदा होते ही खत्म हो जाती है।
शक्तिशाली व गोरे पुत्र प्राप्ति के लिए—
गर्भिणी स्त्री ढाक (पलाश) का एककोमल पत्ता घोंटकर गौदुग्ध के साथ रोज़ सेवन करे | इससे बालक शक्तिशाली और गोरा होता है | माता-पीता भले काले हों, फिर भी बालक गोरा होगा | इसके साथ सुवर्णप्राश की २-२ गोलियां लेने से संतान तेजस्वी होगी |
प्रश्‍न : पुत्र प्राप्ति हेतु किस समय संभोग करें ?
उत्तर : इस विषय में आयुर्वेद में लिखा है कि
गर्भाधान ऋतुकाल की आठवीं, दसवी और बारहवीं रात्रि को ही किया जाना चाहिए। जिस दिन मासिक ऋतुस्राव शुरू हो उस दिन व रात को प्रथम मानकर गिनती करना चाहिए। छठी, आठवीं आदि सम रात्रियाँ पुत्र उत्पत्ति के लिए और सातवीं, नौवीं आदि विषम रात्रियाँ पुत्री की उत्पत्ति के लिए होती हैं। इस संबंध में ध्यान रखें कि इन रात्रियों के समय शुक्ल पक्ष यानी चांदनी रात वाला पखवाड़ा भी हो, यह अनिवार्य है, यानी कृष्ण पक्ष की रातें हों। इस संबंध में अधिक जानकारी हेतु इसी इसी चैनल के होमपेज पर ‘गर्भस्थ शिशु की जानकारी’ पर क्लिक करें।
प्रश्न : सहवास से विवृत्त होते ही पत्नी को तुरंत उठ जाना चाहिए या नहीं? इस विषय में आवश्यक जानकारी दें ?
उत्तर : सहवास से निवृत्त होते ही पत्नी को दाहिनी करवट से 10-15 मिनट लेटे रहना चाहिए, एमदम से नहीं उठना चाहिए। पर्याप्त विश्राम कर शरीर की उष्णता सामान्य होने के बाद कुनकुने गर्म पानी से अंगों को शुद्ध कर लें या चाहें तो स्नान भी कर सकते हैं, इसके बाद पति-पत्नी को कुनकुना मीठा दूध पीना चाहिए।
प्रश्न : मेधावी पुत्र प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए ?
उत्तर : इसका उत्तर देना मुश्किल है,
प्रश्न : संतान में सदृश्यता होने का क्या कारण होता है ?
उत्तर : संतान की रूप रेखा परिवार के किसी सदस्य से मिलती-जुलती होती है,
पुत्र प्राप्ति हेतु गर्भाधान का तरीका—-
हमारे पुराने आयुर्वेद ग्रंथों में पुत्र-पुत्री प्राप्ति हेतु दिन-रात, शुक्ल पक्ष-कृष्ण पक्ष तथा माहवारी के दिन से सोलहवें दिन तक का महत्व बताया गया है। धर्म ग्रंथों में भी इस बारे में जानकारी मिलती है।
यदि आप पुत्र प्राप्त करना चाहते हैं और वह भी गुणवान, तो हम आपकी सुविधा के लिए हम यहाँ माहवारी के बाद की विभिन्न रात्रियों की महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं।
* चौथी रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र अल्पायु और दरिद्र होता है।
* पाँचवीं रात्रि के गर्भ से जन्मी कन्या भविष्य में सिर्फ लड़की पैदा करेगी।
* छठवीं रात्रि के गर्भ से मध्यम आयु वाला पुत्र जन्म लेगा।
* सातवीं रात्रि के गर्भ से पैदा होने वाली कन्या बांझ होगी।
* आठवीं रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र ऐश्वर्यशाली होता है।
* नौवीं रात्रि के गर्भ से ऐश्वर्यशालिनी पुत्री पैदा होती है।
* दसवीं रात्रि के गर्भ से चतुर पुत्र का जन्म होता है।
* ग्यारहवीं रात्रि के गर्भ से चरित्रहीन पुत्री पैदा होती है।
* बारहवीं रात्रि के गर्भ से पुरुषोत्तम पुत्र जन्म लेता है।
* तेरहवीं रात्रि के गर्म से वर्णसंकर पुत्री जन्म लेती है।
* चौदहवीं रात्रि के गर्भ से उत्तम पुत्र का जन्म होता है।
* पंद्रहवीं रात्रि के गर्भ से सौभाग्यवती पुत्री पैदा होती है।
* सोलहवीं रात्रि के गर्भ से सर्वगुण संपन्न, पुत्र पैदा होता है।
व्यास मुनि ने इन्हीं सूत्रों के आधार पर पर अम्बिका, अम्बालिका तथा दासी के नियोग (समागम) किया, जिससे धृतराष्ट्र, पाण्डु तथा विदुर का जन्म हुआ। महर्षि मनु तथा व्यास मुनि के उपरोक्त सूत्रों की पुष्टि स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपनी पुस्तक ‘संस्कार विधि’ में स्पष्ट रूप से कर दी है। प्राचीनकाल के महान चिकित्सक वाग्भट तथा भावमिश्र ने महर्षि मनु के उपरोक्त कथन की पुष्टि पूर्णरूप से की है।
* दो हजार वर्ष पूर्व के प्रसिद्ध चिकित्सक एवं सर्जन सुश्रुत ने अपनी पुस्तक सुश्रुत संहिता में स्पष्ट लिखा है कि मासिक स्राव के बाद 4, 6, 8, 10, 12, 14 एवं 16वीं रात्रि के गर्भाधान से पुत्र तथा 5, 7, 9, 11, 13 एवं 15वीं रात्रि के गर्भाधान से कन्या जन्म लेती है।
* 2500 वर्ष पूर्व लिखित चरक संहिता में लिखा हुआ है कि भगवान अत्रिकुमार के कथनानुसार स्त्री में रज की सबलता से पुत्री तथा पुरुष में वीर्य की सबलता से पुत्र पैदा होता है।
* प्राचीन संस्कृत पुस्तक ‘सर्वोदय’ में लिखा है कि गर्भाधान के समय स्त्री का दाहिना श्वास चले तो पुत्री तथा बायां श्वास चले तो पुत्र होगा।
* यूनान के प्रसिद्ध चिकित्सक तथा महान दार्शनिक अरस्तु का कथन है कि पुरुष और स्त्री दोनों के दाहिने अंडकोष से लड़का तथा बाएं से लड़की का जन्म होता है।
* चन्द्रावती ऋषि का कथन है कि लड़का-लड़की का जन्म गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष के दायां-बायां श्वास क्रिया, पिंगला-तूड़ा नाड़ी, सूर्यस्वर तथा चन्द्रस्वर की स्थिति पर निर्भर करता है।
* कुछ विशिष्ट पंडितों तथा ज्योतिषियों का कहना है कि सूर्य के उत्तरायण रहने की स्थिति में गर्भ ठहरने पर पुत्र तथा दक्षिणायन रहने की स्थिति में गर्भ ठहरने पर पुत्री जन्म लेती है। उनका यह भी कहना है कि मंगलवार, गुरुवार तथा रविवार पुरुष दिन हैं। अतः उस दिन के गर्भाधान से पुत्र होने की संभावना बढ़ जाती है। सोमवार और शुक्रवार कन्या दिन हैं, जो पुत्री पैदा करने में सहायक होते हैं। बुध और शनिवार नपुंसक दिन हैं। अतः समझदार व्यक्ति को इन दिनों का ध्यान करके ही गर्भाधान करना चाहिए।
* जापान के सुविख्यात चिकित्सक डॉ. कताज का विश्वास है कि जो औरत गर्भ ठहरने के पहले तथा बाद कैल्शियमयुक्त भोज्य पदार्थ तथा औषधि का इस्तेमाल करती है, उसे अक्सर लड़का तथा जो मेग्निशियमयुक्त भोज्य पदार्थ जैसे मांस, मछली, अंडा आदि का इस्तेमाल करती है, उसे लड़की पैदा होती है।
विश्वविख्यात वैज्ञानिक प्रजनन एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. लेण्डरम बी. शैटल्स ने हजारों अमेरिकन दंपतियों पर प्रयोग कर प्रमाणित कर दिया है कि स्त्री में अंडा निकलने के समय से जितना करीब स्त्री को गर्भधारण कराया जाए, उतनी अधिक पुत्र होने की संभावना बनती है। उनका कहना है कि गर्भधारण के समय यदि स्त्री का योनि मार्ग क्षारीय तरल से युक्त रहेगा तो पुत्र तथा अम्लीय तरल से युक्त रहेगा तो पुत्री होने की संभावना बनती है।
पुत्र प्राप्ति का साधन है शीतला षष्ठी व्रत—–
माघ शुक्ल षष्ठी को संतानप्राप्ति की कामना से शीतला षष्ठी का व्रत रखा जाता है। कहीं-कहीं इसे ‘बासियौरा’ नाम से भी जाना जाता हैं। इस दिन प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर मां शीतला देवी का षोडशोपचार-पूर्वक पूजन करना चाहिये। इस दिन बासी भोजन का भोग लगाकर बासी भोजन ग्रहण किया जाता है।
शीतला षष्ठी व्रतकथा—–
एक ब्राह्मण के सात बेटे थे। उन सबका विवाह हो चुका था, लेकिन ब्राह्मण के बेटों को कोई संतान नहीं थी। एक दिन एक वृद्धा ने ब्राह्मणी को पुत्र-वधुओं से शीतला षष्ठी का व्रत करने का उपदेश दिया। उस ब्राह्मणी ने श्रद्धापूर्वक व्रत करवाया। वर्ष भर में ही उसकी सारी वधुएं पुत्रवती हो गई।
एक बार ब्राह्मणी ने व्रत की उपेक्षा करके गर्म जल से स्नान किया। भोजना ताजा खाया और बहुओं से भी वैसा करवाया। उसी रात ब्राह्मणी ने भयानक स्वप्न देखा। वह चौंक पड़ी। उसने अपने पति को जगाया; पर वह तो तब तक मर चुका था। ब्राह्मणी शोक से चिल्लाने लगी। जब वह अपने पुत्रों तथा बधुओं की ओर बढ़ी तो क्या देखती है कि वे भी मरे पड़े हैं। वह धाड़ें मारकर विलाप करने लगी। पड़ोसी जाग गये। उसे पड़ोसियों ने बताया- ”ऐसा भगवती शीतला के प्रकोप से हुआ है।”
ऐसा सुनते ही ब्राह्मणी पागल हो गई। रोती-चिल्लाती वन की ओर चल दी। रास्ते में उसे एक बुढ़िया मिली। वह अग्नि की ज्वाला से तड़प रही थी। पूछने पर मालूम हुआ कि वह भी उसी के कारण दुखी है। वह बुढ़िया स्वयं शीतला माता ही थी। अग्नि की ज्वाला से व्याकुल भगवती शीतला ने ब्राह्मणी को मिट्टी के बर्तन में दही लाने के लिए कहा। ब्राह्मणी ने तुरन्त दही लाकर भगवती शीतला के शरीर पर दही का लेप किया। उसकी ज्वाला शांत हो गई। शरीर स्वस्थ होकर शीतल हो गया।
ब्राह्मणी को अपने किए पर बड़ा पश्चाताप हुआ। वह बार-बार क्षमा मांगने लगी। उसने अपने परिवार के मृतकों को जीवित करने की विनती की। शीतला माता ने प्रसन्न होकर मृतकों के सिर पर दही लगाने का आदेश दिया। ब्राह्मणी ने वैसा ही किया। उसके परिवार के सारे सदस्य जीवित हो उठे। तभी से इस व्रत का प्रचलन हुआ। ऐसी मान्यता है।
पुत्र प्राप्ति के लिए अहोई अष्टमी व्रत की परम्परा—
कार्तिक माह में कश्ष्ण पक्ष की अष्टमी को पुत्रवती स्त्रियां निर्जल व्रत रखती हैं। संध्या समय दीवार पर आठ कानों वाली एक पुतली अंकित की जाती है। जिस स्त्री को बेटा हुआ हो अथवा बेटे का विवाह हुआ हो तो उसे अहोई माता का उजमन करना चाहिए। एक थाली में सात जगह चार-चार पूडयां रखकर उन पर थोडा-थोडा हलवा रखें। इसके साथ ही एक साडी ब्लाउज उस पर सामर्थ्यानुसार रुपए रखकर थाली के चारों ओर हाथ फेरकर श्रद्धापूर्वक सास के पांव छूकर वह सभी सामान सास को दे दें। हलवा पूरी लोगों को बांटें। पुतली के पास ही स्याऊ माता व उसके बच्चे बनाए जाते हैं। इस दिन शाम को चंद्रमा को अर्ध्य देकर कच्चा भोजन खाया जाता है तथा यह कथा पढी जाती है-
कथा—
ननद-भाभी एक दिन मिट्टी खोदने गई। मिट्टी खोदते-खोदते ननद ने गलती से स्याऊ माता का घर खोद दिया। इससे स्याऊ माता के अण्डे टूट गये व बच्चे कुचले गये। स्याऊ माता ने जब अपने घर व बच्चों की दुर्दशा देखी तो क्रोधित होकर ननद से बोली कि तुमने मेरे बच्चों को कुचला है। मैं तुम्हारे पति व बच्चों को खा जाउंगी।
स्याऊ माता को क्रोधित देख ननद तो डर गई। पर भाभी स्याऊ माता के आगे हाथ जोडकर विनती करने लगी तथा ननद की सजा स्वयं सहने को तैयार हो गई। स्याऊ माता बोलीं कि मैं तेरी कोख व मांग दोनों हरूंगी। इस पर भाभी बोली कि मां तेरा इतना कहना मानो कोख चाहे हर लो पर मेरी मांग न हरना। स्याऊ माता मान गईं।
समय बीतता गया। भाभी के बच्चा पैदा हुआ और शर्त के अनुसार भाभी ने अपनी पहली संतान स्याऊ माता को दे दी। वह छह पुत्रों की मां बनकर भी निपूती ही रही। जब सातवीं संतान होने का समय आया तो एक पडोसन ने उसे सलाह दी कि अब स्याऊ मां के पैर छू लेना, फिर बातों के दौरान बच्चे को रुला देना। जब स्याऊ मां पूछे कि यह क्यों रो रहा है तो कहना कि तुम्हारे कान की बाली मांगता है। बाली देकर ले जाने लगे तो फिर पांव छू लेना। यदि वे पुत्रवती होने का आर्शीवाद दें तो बच्चे को मत ले जाने देना।



सातवीं संतान हुई। स्याऊ माता उसे लेने आईं। पडोसन की बताई विधि से उसने स्याऊ के आंचल में डाल दिया। बातें करते-करते बच्चे को चुटकी भी काट ली। बालक रोने लगा तो स्याऊ ने उसके रोने का कारण पूछा तो भाभी बोलीं कि तुम्हारे कान की बाली मांगता है। स्याऊ माता ने कान की बाली दे दी। जब चलने लगी तो भाभी ने पुनः पैर छुए, तो स्याऊ माता ने पुत्रवती होने का आर्शीवाद दिया तो भाभी ने स्याऊ माता से अपना बच्चा मांगा और कहने लगीं कि पुत्र के बिना पुत्रवती कैसे?
स्याऊ माता ने अपनी हार मान ली। तथा कहने लगीं कि मुझे तुम्हारे पुत्र नहीं चाहिएं मैं तो तुम्हारी परीक्षा ले रही थी। यह कहकर स्याऊ माता ने अपनी लट फटकारी तो छह पुत्र पश्थ्वी पर आ पडे। माता ने अपने पुत्र पाए तथा स्याऊ भी प्रसन्न मन से घर गईं।
मंत्र—-
पुत्र प्राप्ति के लिए संतान गणपति स्तोत्र—–
विस्तार :-
पुत्र प्राप्ति के लिए संतान गणपति स्तोत्र
नमो स्तु गणनाथाय सिद्धिबुद्धियुताय च ।
सर्वप्रदाय देवाय पुत्रवृद्धिप्रदाय च ।।
गुरूदराय गुरवे गोप्त्रे गुह्यासिताय ते ।
गोप्याय गोपिताशेषभुवना चिदात्मने ।।
विŸवमूलाय भव्याय विŸवसृष्टिकराय ते ।
नमो नमस्ते सत्याय सत्यपूर्णाय शुण्डिने ।।
एकदन्ताय शुद्धाय सुमुखाय नमो नम: ।
प्रपन्नजनपालाय प्रणतार्तिविनाशिने ।।
शरणं भव देवेश संतति सुदृढां कुरू ।
भवष्यन्ति च ये पुत्रा मत्कुले गणनायक ।।
ते सर्वे तव पूजार्थे निरता: स्युर्वरो मत: ।
पुत्रप्रदमिदं स्तोत्रं सर्वसिद्धप्रदायकम् ।।
पुत्र प्राप्ति हेतु गर्भाधान का तरीका—–
* दो हजार वर्ष पूर्व के प्रसिद्ध चिकित्सक एवं सर्जन सुश्रुत ने अपनी पुस्तक सुश्रुत संहिता में स्पष्ट लिखा है कि मासिक स्राव के बाद 4, 6, 8, 10, 12, 14 एवं 16वीं रात्रि के गर्भाधान से पुत्र तथा 5, 7, 9, 11, 13 एवं 15वीं रात्रि के गर्भाधान से कन्या जन्म लेती है।
* 2500 वर्ष पूर्व लिखित चरक संहिता में लिखा हुआ है कि भगवान अत्रिकुमार के कथनानुसार स्त्री में रज की सबलता से पुत्री तथा पुरुष में वीर्य की सबलता से पुत्र पैदा होता है।
* प्राचीन संस्कृत पुस्तक ‘सर्वोदय’ में लिखा है कि गर्भाधान के समय स्त्री का दाहिना श्वास चले तो पुत्री तथा बायां श्वास चले तो पुत्र होगा।
* यूनान के प्रसिद्ध चिकित्सक तथा महान दार्शनिक अरस्तु का कथन है कि पुरुष और स्त्री दोनों के दाहिने अंडकोष से लड़का तथा बाएं से लड़की का जन्म होता है।
* चन्द्रावती ऋषि का कथन है कि लड़का-लड़की का जन्म गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष के दायां-बायां श्वास क्रिया, पिंगला-तूड़ा नाड़ी, सूर्यस्वर तथा चन्द्रस्वर की स्थिति पर निर्भर करता है।
* कुछ विशिष्ट पंडितों तथा ज्योतिषियों का कहना है कि सूर्य के उत्तरायण रहने की स्थिति में गर्भ ठहरने पर पुत्र तथा दक्षिणायन रहने की स्थिति में गर्भ ठहरने पर पुत्री जन्म लेती है। उनका यह भी कहना है कि मंगलवार, गुरुवार तथा रविवार पुरुष दिन हैं। अतः उस दिन के गर्भाधान से पुत्र होने की संभावना बढ़ जाती है। सोमवार और शुक्रवार कन्या दिन हैं, जो पुत्री पैदा करने में सहायक होते हैं। बुध और शनिवार नपुंसक दिन हैं। अतः समझदार व्यक्ति को इन दिनों का ध्यान करके ही गर्भाधान करना चाहिए।
* जापान के सुविख्यात चिकित्सक डॉ. कताज का विश्वास है कि जो औरत गर्भ ठहरने के पहले तथा बाद कैल्शियमयुक्त भोज्य पदार्थ तथा औषधि का इस्तेमाल करती है, उसे अक्सर लड़का तथा जो मेग्निशियमयुक्त भोज्य पदार्थ जैसे मांस, मछली, अंडा आदि का इस्तेमाल करती है, उसे लड़की पैदा होती है।
विश्वविख्यात वैज्ञानिक प्रजनन एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. लेण्डरम बी. शैटल्स ने हजारों अमेरिकन दंपतियों पर प्रयोग कर प्रमाणित कर दिया है कि स्त्री में अंडा निकलने के समय से जितना करीब स्त्री को गर्भधारण कराया जाए, उतनी अधिक पुत्र होने की संभावना बनती है। उनका कहना है कि गर्भधारण के समय यदि स्त्री का योनि मार्ग क्षारीय तरल से युक्त रहेगा तो पुत्र तथा अम्लीय तरल से युक्त रहेगा तो पुत्री होने की संभावना बनती है।
यदि आप पुत्र चाहते है !
दंपति की इच्छा होती है कि उनके घर में आने वाला नया सदस्य पुत्र ही हो। कुछ लोग पुत्र-पुत्री में भेद नहीं करते, ऐसे लोगों का प्रतिशत बहुत कम है। यदि आप पुत्र चाहते हैं या पुत्री चाहते हैं तो कुछ तरीके यहां दिए जा रहे हैं, जिन पर अमल कर उसी तरीके से सम्भोग करें तो आप कुछ हद तक अपनी मनचाही संतान प्राप्त कर सकते हैं-
* पुत्र प्राप्ति हेतु मासिक धर्म के चौथे दिन सहवास की रात्रि आने पर एक प्याला भरकर चावल का धोवन यानी मांड में एक नीबू का रस निचोड़कर पी जावें। अगर इच्छुक महिला रजोधर्म से मुक्ति पाकर लगातार तीन दिन चावल का धोवन यानी मांड में एक नीबू निचोड़कर पीने के बाद उत्साह से पति के साथ सहवास करे तो उसकी पुत्र की कामना के लिए भगवान को भी वरदान देना पड़ेगा। गर्भ न ठहरने तक प्रतिमाह यह प्रयोग तीन दिन तक करें, गर्भ ठहरने के बाद नहीं करें।
* गर्भाधान के संबंध में आयुर्वेद में लिखा है कि गर्भाधान ऋतुकाल (मासिक धर्म) की आठवीं, दसवीं और बारहवीं रात्रि को ही किया जाना चाहिए। जिस दिन मासिक ऋतु स्राव शुरू हो, उस दिन तथा रात को प्रथम दिन या रात मानकर गिनती करना चाहिए। छठी, आठवीं आदि सम रात्रियां पुत्र उत्पत्ति के लिए और सातवीं, नौवीं आदि विषम रात्रियां पुत्री की उत्पत्ति के लिए होती हैं अतः जैसी संतान की इच्छा हो, उसी रात्रि को गर्भाधान करना चाहिए।
* इस संबंध में एक और बात का ध्यान रखें कि इन रात्रियों के समय शुक्ल पक्ष यानी चांदनी रात (पूर्णिमा) वाला पखवाड़ा भी हो, यह अनिवार्य है, यानी कृष्ण पक्ष की रातें हों तो गर्भाधान की इच्छा से सहवास न कर परिवार नियोजन के साधन अपनाना चाहिए।
* शुक्ल पक्ष में जैसे-जैसे तिथियां बढ़ती हैं, वैसे-वैसे चन्द्रमा की कलाएं बढ़ती हैं। इसी प्रकार ऋतुकाल की रात्रियों का क्रम जैसे-जैसे बढ़ता है, वैसे-वैसे पुत्र उत्पन्न होने की संभावना बढ़ती है, यानी छठवीं रात की अपेक्षा आठवीं, आठवीं की अपेक्षा दसवीं, दसवीं की अपेक्षा बारहवीं रात अधिक उपयुक्त होती है।
* पूरे मास में इस विधि से किए गए सहवास के अलावा पुनः सहवास नहीं करना चाहिए, वरना घपला भी हो सकता है। ऋतु दर्शन के दिन से 16 रात्रियों में शुरू की चार रात्रियां, ग्यारहवीं व तेरहवीं और अमावस्या की रात्रि गर्भाधान के लिए वर्जित कही गई है। सिर्फ सम संख्या यानी छठी, आठवीं, दसवीं, बारहवीं और चौदहवीं रात्रि को ही गर्भाधान संस्कार करना चाहिए।
* गर्भाधान वाले दिन व रात्रि में आहार-विहार एवं आचार-विचार शुभ पवित्र रखते हुए मन में हर्ष व उत्साह रखना चाहिए। गर्भाधान के दिन से ही चावल की खीर, दूध, भात, शतावरी का चूर्ण दूध के साथ रात को सोते समय, प्रातः मक्खन-मिश्री, जरा सी पिसी काली मिर्च मिलाकर ऊपर से कच्चा नारियल व सौंफ खाते रहना चाहिए, यह पूरे नौ माह तक करना चाहिए, इससे होने वाली संतान गौरवर्ण, स्वस्थ, सुडौल होती है।
* गोराचन 30 ग्राम, गंजपीपल 10 ग्राम, असगंध 10 ग्राम, तीनों को बारीक पीसें, चौथे
दिन स्नान के बाद पांच दिनों तक प्रयोग में लाएं, गर्भधारण के साथ ही पुत्र अवश्य पैदा होगा।







शक्तिशाली व गोरे पुत्र प्राप्ति के लिए—
गर्भिणी स्त्री ढाक (पलाश) का एक कोमल पत्ता घोंटकर गौदुग्ध के साथ रोज़ सेवन करे | इससे बालक शक्तिशाली और गोरा होता है | माता-पीता भले काले हों, फिर भी बालक गोरा होगा | इसके साथ सुवर्णप्राश की २-२ गोलियां लेने से संतान तेजस्वी होगी |
यदि आपकी संनात होती हो परन्तु जीवित न रहती हो तो सन्तान होने पर मिठाई के स्थान पर नमकीन बांटें। भगवान शिव का अभिषेक करायें तथा सूर्योदय के समय तिल के तेल का दीपक पीपल के पेड़ के पास जलायें, लाभ अवश्य होगा। मां दुर्गा के दरबार में सुहाग सामिग्री चढ़ाये तथा कुंजिका स्तात्र का पाठ करें तो भी अवश्य लाभ मिलेगा।

पुत्र प्राप्ति हेतु गर्भाधान का तरीका—–
पुराने आयुर्वेद ग्रंथों में पुत्र-पुत्री प्राप्ति हेतु दिन-रात, शुक्ल पक्ष-कृष्ण पक्ष तथा माहवारी के दिन से सोलहवें दिन तक का महत्व बताया गया है। धर्म ग्रंथों में भी इस बारे में जानकारी मिलती है।
यदि आप पुत्र प्राप्त करना चाहते हैं और वह भी गुणवान, तो हम आपकी सुविधा के लिए हम यहाँ माहवारी के बाद की विभिन्न रात्रियों की महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं।
* चौथी रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र अल्पायु और दरिद्र होता है।
* पाँचवीं रात्रि के गर्भ से जन्मी कन्या भविष्य में सिर्फ लड़की पैदा करेगी।
* छठवीं रात्रि के गर्भ से मध्यम आयु वाला पुत्र जन्म लेगा।
* सातवीं रात्रि के गर्भ से पैदा होने वाली कन्या बांझ होगी।
* आठवीं रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र ऐश्वर्यशाली होता है।
* नौवीं रात्रि के गर्भ से ऐश्वर्यशालिनी पुत्री पैदा होती है।
* दसवीं रात्रि के गर्भ से चतुर पुत्र का जन्म होता है।
* ग्यारहवीं रात्रि के गर्भ से चरित्रहीन पुत्री पैदा होती है।
* बारहवीं रात्रि के गर्भ से पुरुषोत्तम पुत्र जन्म लेता है।
* तेरहवीं रात्रि के गर्म से वर्णसंकर पुत्री जन्म लेती है।
* चौदहवीं रात्रि के गर्भ से उत्तम पुत्र का जन्म होता है।
* पंद्रहवीं रात्रि के गर्भ से सौभाग्यवती पुत्री पैदा होती है।
* सोलहवीं रात्रि के गर्भ से सर्वगुण संपन्न, पुत्र पैदा होता है।
व्यास मुनि ने इन्हीं सूत्रों के आधार पर पर अम्बिका, अम्बालिका तथा दासी के नियोग (समागम) किया, जिससे धृतराष्ट्र, पाण्डु तथा विदुर का जन्म हुआ। महर्षि मनु तथा व्यास मुनि के उपरोक्त सूत्रों की पुष्टि स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपनी पुस्तक ‘संस्कार विधि’ में स्पष्ट रूप से कर दी है। प्राचीनकाल के महान चिकित्सक वाग्भट तथा भावमिश्र ने महर्षि मनु के उपरोक्त कथन की पुष्टि
पूर्णरूप से की है।
गर्भाधान मुहूर्त—–
जिस स्त्री को जिस दिन मासिक धर्म हो,उससे चार रात्रि पश्चात सम रात्रि में जबकि शुभ ग्रह केन्द्र (१,४,७,१०) तथा त्रिकोण (१,५,९) में हों,तथा पाप ग्रह (३,६,११) में हों ऐसी लग्न में पुरुष को पुत्र प्राप्ति के लिये अपनी स्त्री के साथ संगम करना चाहिये। मृगशिरा अनुराधा श्रवण रोहिणी हस्त तीनों उत्तरा स्वाति धनिष्ठा और शतभिषा इन नक्षत्रों में षष्ठी को छोड कर अन्य तिथियों में तथा दिनों में गर्भाधान करना चाहिये,भूल कर भी शनिवार मंगलवार गुरुवार को पुत्र प्राप्ति के लिये संगम नही करना चाहिये।
पुत्र जन्म कीपुत्र प्राप्ति का साधन है शीतला षष्ठी व्रत—
माघ शुक्ल षष्ठी को संतानप्राप्ति की कामना से शीतला षष्ठी का व्रत रखा जाता है। कहीं-कहीं इसे ‘बासियौरा’ नाम से भी जाना जाता हैं। इस दिन प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर मां शीतला देवी का षोडशोपचार-पूर्वक पूजन करना चाहिये। इस दिन बासी भोजन का भोग लगाकर बासी भोजन ग्रहण किया जाता है।
शीतला षष्ठी व्रतकथा—
एक ब्राह्मण के सात बेटे थे। उन सबका विवाह हो चुका था, लेकिन ब्राह्मण के बेटों को कोई संतान नहीं थी। एक दिन एक वृद्धा ने ब्राह्मणी को पुत्र-वधुओं से शीतला षष्ठी का व्रत करने का उपदेश दिया। उस ब्राह्मणी ने श्रद्धापूर्वक व्रत करवाया। वर्ष भर में ही उसकी सारी वधुएं पुत्रवती हो गई।
एक बार ब्राह्मणी ने व्रत की उपेक्षा करके गर्म जल से स्नान किया। भोजना ताजा खाया और बहुओं से भी वैसा करवाया। उसी रात ब्राह्मणी ने भयानक स्वप्न देखा। वह चौंक पड़ी। उसने अपने पति को जगाया; पर वह तो तब तक मर चुका था। ब्राह्मणी शोक से चिल्लाने लगी। जब वह अपने पुत्रों तथा बधुओं की ओर बढ़ी तो क्या देखती है कि वे भी मरे पड़े हैं। वह धाड़ें मारकर विलाप करने लगी। पड़ोसी जाग गये। उसे पड़ोसियों ने बताया- ”ऐसा भगवती शीतला के प्रकोप से हुआ है।”
वह बुढ़िया स्वयं शीतला माता ही थी। अग्नि की ज्वाला से व्याकुल भगवती शीतला ने ब्राह्मणी को मिट्टी के बर्तन में दही लाने के लिए कहा। ब्राह्मणी ने तुरन्त दही लाकर भगवती शीतला के शरीर पर दही का लेप किया। उसकी ज्वाला शांत हो गई। शरीर स्वस्थ होकर शीतल हो गया।
ब्राह्मणी को अपने किए पर बड़ा पश्चाताप हुआ। वह बार-बार क्षमा मांगने लगी। उसने अपने परिवार के मृतकों को जीवित करने की विनती की। शीतला माता ने प्रसन्न होकर मृतकों के सिर पर दही लगाने का आदेश दिया। ब्राह्मणी ने वैसा ही किया। उसके परिवार के सारे सदस्य जीवित हो उठे। तभी से इस व्रत का प्रचलन हुआ। ऐसी मान्यता है…
यह व्रत वैशाख शुक्ल षष्ठी को रखा जाता है और एक वर्ष पर्यंन्त तक करने का विधान है। यह तिथि व्रत है। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव के द्वारा बताया गया है। पुत्र प्राप्ति की कामना करने वाले दंपत्ति के लिए इस व्रत का विधान है। इस व्रत में स्कन्द या कार्तिकेय स्वामी की पूजा और आराधना की जाती है। कार्तिकेय स्वामी शिव पुत्र होकर पूजनीय देवता हैं। पुराणों के अनुसार षष्ठी तिथि को कार्तिकेय स्वामी का जन्म हुआ था। संसार को प्रताडित करने वाले तारकासुर के वध के लिए देव सेना का प्रधान बनने के लिए ही उनका जन्म हुआ था। इसलिए उनकी यह प्रिय तिथि है। वह ब्रह्मचारी रहने के कारण कुमार कहलाते हैं। योग मार्ग की साधना में कातिके य स्वामी पावन बल के प्रतीक हैं। तप और ब्रह्मचर्य के पालन से जिस बल या वीर्य की रक्षा होती है, वही स्कन्द या कुमार माने जाते हैं। इस दृष्टि से स्कन्द संयम और शक्ति के देवता है। शक्ति और संयम से ही कामनाओं की पूर्ति में निर्विघ्न होती है। इसलिए इस दिन स्कन्द की पूजा का विशेष महत्व है।


व्रत विधान के अनुसार पंचमी से युक्त षष्टी तिथि को व्रत के श्रेष्ठ मानी जाती है। व्रती को वैशाख शुक्ल पंचमी से ही उपवास करना आरंभ करे। वैशाख शुक्ल षष्ठी को भी उपवास रखते हुए स्कन्द भगवान की पूजा की जाती है। दक्षिण दिशा में मुंह रखकर भगवान को अघ्र्य देकर दही, घी, जल सहित अन्य उपचार मंत्रों के द्वारा पूजा करनी
चाहिए। साथ ही वस्त्र और श्रृंगार सामग्रियां जैसे तांबे का चूड़ा आदि समर्पित करना चाहिए। दीप प्रज्जवलित कर आरती करना चाहिए। स्कन्द के चार रुप हैं – स्कन्द, कुमार, विशाख और गुह। इन नामों का ध्यान कर उपासना करना चाहिए। व्रत के दिन यथा संभव फलाहार करना चाहिए। व्रती के लिए तेल का सेवन निषेध है।
इस व्रत को श्रद्धा और आस्था के साथ वर्ष पर्यन्त करने पर पुत्र की कामना करने वाले को पुत्र प्राप्ति होती है। साथ ही संतान निरोग रहती है। यदि व्रती शुक्ल पक्ष की षष्ठी पर व्रत पालन करता है तो स्वास्थ्य का इच्छुक निरोग हो जाता है। धन क ी कामना करने वाला धनी हो जाता है।
(पुत्र प्राप्ति हेतु पुत्रदा एकादशी व्रत)—
श्रावण शुक्ल एकादशी व पौष शुक्ल एकादशी दोनों ही पुत्रदा एकादशी के नाम से जानी जाती है. इस एकादशी का व्रत रखने से पुत्र की प्राप्ति होती है इस कारण से इसे पुत्रदा एकादशी कहा गया है.
पुत्रदा एकादशी की कथा (Putrada Ekadashi Vrat Katha)
पद्म पुराण (Padma Purana) में वर्णित है कि धर्मराज युधिष्ठिर श्री कृष्ण से एकादशी की कथा एवं महात्मय का रस पान कर रहे थे। उस समय उन्होंने भगवान से पूछा कि मधुसूदन पौष शुक्ल एकादशी के विषय में मुझे ज्ञान प्रदान कीजिए। तब श्री कृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं। पौष शुक्ल एकादशी (Paush shukla paksha Ekadashi) को पुत्रदा एकादशी कहते हैं (Putrda Ekadshi).



इस व्रत को विश्वदेव के कहने पर भद्रावती के राजा सुकेतु ने किया था। राजा सुकेतु प्रजा पालक और धर्मपरायण राजा थे। उनके राज्य में सभी जीव निर्भय एवं आन्नद से रहते थे, लेकिन राजा और रानी स्वयं बहुत ही दुखी रहते थे। उनके दु:ख का एक मात्र कारण पुत्र हीन होना था। राजा हर समय यह सोचता कि मेरे बाद मेरे वंश का अंत हो जाएगा। पुत्र के हाथों मुखाग्नि नहीं मिलने से हमें मुक्ति नहीं मिलेगी। ऐसी कई बातें सोच सोच कर राजा परेशान रहता था। एक दिन दु:खी होकर राजा सुकेतु आत्म हत्या के उद्देश्य से जंगल की ओर निकल गया। संयोगवश वहां उनकी मुलाकात ऋषि विश्वदेव से हुई।

राजा ने अपना दु:ख विश्वदेव को बताया। राजा की दु:ख भरी बातें सुनकर विश्वदेव ने कहा राजन आप पौष शुक्ल पक्ष की एकादशी (Paushya Shukla Paksha Ekadasi) का व्रत कीजिए, इससे आपको पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। राजा ने ऋषि की सलाह मानकर व्रत किया और कुछ दिनों के पश्चात रानी गर्भवती हुई और पुत्र को जन्म दिया। राजकुमार बहुत ही प्रतिभावान और गुणवान हुआ वह अपने पिता के समान प्रजापालक और धर्मपरायण राजा हुआ।
श्री कृष्ण कहते हैं जो इस व्र का पालन करता है उसे गुणवान और योग्य पुत्र की प्राप्ति होती है। यह पुत्र अपने पिता एवं कुल की मर्यादा को बढ़ाने वाला एवं मुक्ति दिलाने वाला होता है।
पुत्र प्राप्ति की इच्छा से जो व्रत रखना चाहते हैं उन्हें दशमी को एक बार भोजन करना चाहिए। एकादशी के दिन स्नानादि के पश्चात गंगा जल, तुलसी दल, तिल, फूल पंचामृत से भगवान नारायण की पूजा करनी चाहिए। इस व्रत में व्रत रखने वाले को नर्जल रहना चाहिए। अगर व्रती चाहें तो संध्या काल में दीपदान के पश्चात फलाहार कर सकते हैं। द्वादशी तिथि को यजमान को भोजन करवाकर उचित दक्षिणा दे कर उनका आशीर्वाद लें तत्पश्चात भोजन करें।
ध्यान देने वाली बात यह है कि पुत्र प्राप्ति की इच्छा से जो यह एकादशी का व्रत रख रहे हैं उन्हें अपने जीवनसाथी के साथ इस ब्रत का अनुष्ठान करना चाहिए इससे अधिक पुण्य प्राप्त होता है. संतान प्राप्ति के लिए महिलाएं भरती हैं यशोदा की गोद—
मध्य प्रदेश की व्यापारिक नगरी इंदौर में एक ऐसा यशोदा मंदिर है जहां महिलाएं जन्माष्टमी के मौके पर यशोदा की गोद भरकर संतान की प्राप्ति की कामना करती हैं। इस मंदिर में भजन-पूजन के बीच गोद भराई का दौर शुरू हो गया है।




महाराजबाड़े के करीब स्थित यशोदा मंदिर में स्थापित मूर्ति में माता यशोदा कृष्ण जी को गोद में लिए हुई हैं। यह मूर्ति लगभग 200 साल पहले राजस्थान से इंदौर लाई गई थी। तभी से लोगों की मान्यता है कि जन्माष्टमी के मौके पर यशोदा जी की गोद भरने से मनचाही संतान की प्राप्ति होती है।
जो महिलाएं यशोदा जी की गोद भरती हैं, उनकी मनोकामना पूरी होती है। पुत्र प्राप्ति के लिए गेहूं के साथ नारियल और पुत्री की प्राप्ति के लिए चावल के साथ नारियल एवं सुहाग के सामान से यशोदा जी की गोद भरी जाती है। यह परंपरा वर्षो से चली आ रही है।
कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर महिलाएं संतान प्राप्ति की कामना के साथ यशोदा जी की गोद भरती हैं। बुधवार से यहां गोद भराई का सिलसिला शुरू हो गया है।

सन्तान प्रप्ति हमारे पूर्व जन्मोंपार्जित कर्मो पर है आधारित—
विवाह के उपरान्त प्रत्येक माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे को जल्द से जल्द सन्तान हो जाये और वे दादा-दादी, नाना-नानी बन जाये। मगर ऐसा सभी दम्पत्तियों के साथ नहीं हो पाता है। शादी के बाद 2-3 वर्ष तक सन्तान न होने पर यह एक चिन्ता का विषय बन जाता है। भारतीय सनातन परंपरा में सन्तान होना सौभाग्यशाली होने का सूचक माना जाता है। दाम्पत्य जीवन भी तभी खुशहाल रह पाता है जब दम्पत्ति के सन्तान हो अन्यथा समाज भी हेय दृष्टि से देखता है। पुत्र सन्तान का तो हमारे समाज में विशेष महत्व माना गया है क्योंकि वह वंश वृद्धि करता है। सन्तान प्राप्ति हमारे पूर्व जन्मोपार्जित कर्मों पर आधारित है। अत: हमें नि:सन्तान दम्पत्ति की कुण्डली का अध्ययन करते वक्त किसी एक की कुण्डली का अध्ययन करने की बजाये पति-पित्न दोंनो की कुण्डली का गहन अध्ययन करने के बाद ही निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिये। अगर पंचमेश खराब है या पितृदोष, नागदोष व नाड़ीदोष है तब उनका उपाय मन्त्र, यज्ञ, अनुष्ठान तथा दान-पुण्य से करना चाहिये। प्रस्तुत लेख में सन्तान प्राप्ति में होने वाली रूकावट के कारण व निवारण पर प्रकाश डाला गया है। सन्तान प्राप्ति योग के लिये जन्मकुण्डली का प्रथम स्थान व पंचमेश महत्वपूर्ण होता है। अगर पंचमेश बलवान हो व उसकी लग्न पर दृष्टि हो या लग्नेश के साथ युति हो तो निश्चित तौर पर दाम्पत्ति को सन्तान सुख प्राप्त होगा। यदि सन्तान के कारक गुरू ग्रह पंचम स्थान में उपनी स्वराशि धनु, मीन या उच्च राशि कर्क या नीच राशि मकर में हो तब कन्याओं का जन्म ज्यादा देखा गया है। पुत्र सन्तान हो भी जाती है तो बीमार रहती है अथवा पुत्र शोक होता है। यदि पंचम स्थान में मेष, सिंह, वृश्चिक या मीन राशि पर गुरू की दृष्टि या मंगल का प्रभाव होने पर पुत्र प्राप्ति होती है। यदि पंचम स्थान के दोनों ओर शुभ ग्रह हो व पंचम भाव तथा पंचमेश पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो पुत्र के होने की संभावना ज्यादा होती है। पंचमेश के बलवान होने पर पुत्र लाभ होता है। परन्तु पंचमेश अष्टम या षष्ठ भाव में नहीं होना चाहियें। बलवान पंचम, सप्तम या लग्न में स्थित होने पर उत्तम सन्तान सुख प्राप्त होता है। बलवान गुरू व सूर्य भी पुत्र सन्तान योग का निर्माण करते हैं। पंचमेश के बलवान हाने पर, शुभ ग्रहों के द्वारा दृष्ट होने पर, शुभ ग्रहों से युत हाने पर पुत्र सन्तान योग बनता है। पंचम स्थान पर चन्द्र ग्रह हो व शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तब भी पुत्र सन्तान योग होता है। पुरूष जातक की कुण्डली में सूर्य व शुक्र बलवान हाने पर वह सन्तान उत्पन्न करने के अधिक योग्य होता है। मंगल व चन्द्रमा के बलवान हाने पर स्त्री जातक सन्तान उत्पन्न करने के योग्य होती है। सन्तान न होने के योग – पंचम स्थान या पंचमेश के साथ राहू होने पर सर्पशाप होता है। ऐसे में जातक को पुत्र नहीं होता है अथवा पुत्र नाश होता है। शुभ ग्रहों की दृष्टि हाने पर पुत्र प्राप्ति हो सकती है। यदि लग्न व त्रिकोण स्थान में शनि हो और शुभ ग्रहो द्वारा दृष्ट न हो तो पितृशाप से पुत्र प्राप्ति में कठिनाई होती है। पंचमेश मंगल से दृष्ट हो या पंचम भाव में कर्क राशि का मंगल हो तब पुत्र प्राप्ति में कठिनाई होती है तथा शत्रु के प्रभाव से पुत्र नाश भी होता है। पंचमेश व पंचम स्थान पर क्रूर ग्रहों की दृष्टि हो तब देवशाप द्वारा पुत्र नाश होता है। चतुर्थ स्थान में पाप ग्रह हो पंचमेश के साथ शनि हो एवं व्यय स्थान में पाप ग्रह हो तो मातृदोष कें कारण सन्तान प्राप्ति में कठिनाई होती है। भाग्य भाव में पाप ग्रह हो व पंचमेश के साथ शनि हो तब पितृदोष से सन्तान होने में कठनाई होती है। गुरू पंचमेश व लग्नेश निर्बल हो तथा सूर्य, चन्द्रमा व नावमांश निर्बल हो तब देवशाप के प्रभाव से सन्तान हानि होती है। गुरू, शुक्र पाप युक्त हों तो ब्राह्मणशाप व सूर्य, चन्द्र के खराब या नीच के होने पर पितृशाप के कारण सन्तान प्राप्ति में कठिनाई होती है। यदि लग्नेश, पंचमेश व गुरू निर्बल हों या 6वें,8वें,12वें स्थान में हो तों भी सन्तान प्राप्ति में कठिनाई होती है। पाप ग्रह चतुर्थ स्थान में हो तो भी सन्तान प्राप्ति की राह में कठिनाई होती है। नवम भाव में पाप ग्रह हो तथा सूर्य से युक्त हो तब पिता (जिसकी कुण्डली में यह योग हो उसके पिता) के जीवन काल में पोता देखना नसीब नहीं होता है। सन्तान बाधा के उपाय- सूर्य व चन्द्रमा साथ-साथ होने पर सन्तान प्रप्ति के लिये पितृ व पितर का पूजन करना करना चाहियें। चन्द्रमा के लिये गया (बिहार) क्षेत्र में श्राद्ध करना चाहियें व मन्दिरों में पूजा व जागरण का आयोजन करने से भी लाभ होता है। मंगल के कारण सन्तान प्राप्ति में कठिनाई हो रही हो तो ब्राह्मणों को भोजन करायें तथा मां दुर्गा की आरधना करें। यदि बुध के कारण सन्तान प्राप्ति में बाधा आ रही हो तो भगवान विष्णु का पूजन करें तथा ब्राह्मणों को भोजन करयें। गुरू के कारण यदि सन्तान प्राप्ति में कठिनाई हो रही हो तो ब्राह्मणें की सेवा करें। गुरूवार को मिठाइयों से युक्त ब्राह्मणों को भोजन करायें। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। पुत्रदायक औषधियां भी अच्छा कार्य करती हैं। शिवलिंगी के बीज तथा पुत्र जीवी के प्रयोग से भी लाभ मिलता है। गुरू के कारण सन्तान प्राप्ति में कठिनाई हो तब शुक्रवार को सफेद वस्तुओं, सुगन्धित तेल आदि दान करे तथा यक्ष की पूजा करें। ब्राह्मणों को भोजन करने कर उनका आशिर्वाद प्राप्त करें। शनि के कारण यदि सन्तान प्राप्ति में कठिनाई उत्पन्न हो रही हो तो सर्प की पूजा करें व सर्पों की दो मूर्तियों की पूजा करके दान में देनी चाहियें। सन्तान गोपाल यन्त्र के सामने पुत्र जीवी की माला के द्वारा सन्तान गोपाल मत्रं का जप करें। यदि कोई दाम्पती प्रात: स्नानादि से निवत्तृ होकर भगवान श्री राम और माता कौशल्या की शोड्शोपचार पूजा करके नियमित रूप से एक माला इस चौपाई का पाठ करे तो पुत्र प्राप्ति अवश्य होगी:-प्रेम मगन कौशल्या, लिस दिन जात न जात। सुत सनेह बस माता, बाल चरित कर गाय। सन्तान प्राप्ति हेतु यदि दाम्पति नौं वर्ष से कम आयु वाली कन्याओं के पैर छूकर 90 दिन तक यदि आशीर्वाद प्राप्त करे तो सन्तान अवश्य प्राप्त होगी।

पुत्र कामना पूरी करे पार्थिव लिंग पूजा—
सावन में भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए शिव स्तुति और स्त्रोत का पाठ करने का विशेष महत्व है। इन स्त्रोतों में शिव महिम्र स्त्रोत सबसे प्रभावी माना जाता है। इस स्त्रोत का पूरा पाठ तो शुभ फल देने वाला है ही, बल्कि यह ऐसा देव स्त्रोत है, जिसका कामना विशेष की पूर्ति के लिए प्रयोग भी निश्चित फल देने वाला होता है।
शिव महिम्र स्त्रोत के इन प्रयोगों में एक है – पुत्र प्राप्ति प्रयोग। पुत्र की प्राप्ति दांपत्य जीवन का सबसे बड़ा सुख माना जाता है। इसलिए हर दंपत्ति ईश्वर से पुत्र प्राप्ति की कामना करता है। अनेक नि:संतान दंपत्ति भी पुत्र प्राप्ति के लिए धार्मिक उपाय अपनाते हैं। शास्त्रों में शिव महिम्र स्त्रोत के पाठ से पुत्र प्राप्ति का उपाय बताया है। जानते है प्रयोग विधि –
– पुत्र प्राप्ति का यह उपाय विशेष तौर पर सावन माह से शुरु करें।
– स्त्री और पुरुष दोनों सुबह जल्दी उठे। स्त्री इस दिन उपवास रखे।
– पति-पत्नी दोनों साथ मिलकर गेंहू के आटे से ११ पार्थिव लिंग बनाए। पार्थिव लिंग विशेष मिट्टी के बनाए जाते हैं।
– पार्थिव लिंग को बनाने के बाद इनका शिव महिम्र स्त्रोत के श्लोकों से पूजा और अभिषेक के ११ पाठ स्वयं करें। अगर ऐसा संभव न हो तो पूजा और अभिषेक के लिए सबसे श्रेष्ठ उपाय है कि यह कर्म किसी विद्वान ब्राह्मण से कराएं। पार्थिव लिंग निर्माण और पूजा भी ब्राह्मण के बताए अनुसार कर सकते हैं।
– पार्थिव लिंग के अभिषेक का पवित्र जल पति-पत्नी दोनों पीएं और शिव से पुत्र पाने के लिए प्रार्थना करें।
– यह प्रयोग २१ या ४१ दिन तक पूरी श्रद्धा और भक्ति से करने पर शिव कृपा से पुत्र जन्म की कामना शीघ्र ही पूरी होती है।

विशिष्ट परामर्श -

श्री दामोदर 9826795656 द्वारा विनिर्मित " दामोदर नारी कल्याण " हर्बल औषधि स्त्रियों के सभी रोगों खासकर गर्भाशय संबन्धित रोगों मे परम उपकारी साबित हुई है | ल्यूकोरिया,पीरियड्स संबन्धित अनियमितताएँ,बांझपन ,रक्ताल्पता आदि लक्षणों मे व्यवहार करने योग्य रामबाण औषधि है|नारी के लिए  ऊर्जावान यौवन  प्राप्ति मे सहायक |











23.11.16

पीठ दर्द, टांगो के दर्द और रीढ की हड्डी के दर्द को कहें अलविदा :say goodbye to Back pain, pain in the limbs and spine pain,




   अगर आपकी कमर अक्सर दर्द करती रहती हैं और आप अनेक प्रकार की दवाये खा खा कर अपने शरीर को चला रहे हैं तो ये साधारण सा उपाय करने से आपकी कमर दर्द हो सकता हैं छू मंतर।
   ये समस्या बहुत अधिक  शरीरिक काम या देर तक बैठने से होता है |लेकिन खुश किस्मती से चिंता करने की कोई बात नही है क्योंकि इस लेख में हम आपको 100% प्राक्रतिक और असरदार तरीका बताएँगे जिस के इस्तेमाल से आप इन समस्याओं से छुटकारा पा सकते हैं|इसके इस्तेमाल के कुछ के दिन बाद आपको सकारात्मक नतीजे नजर आने शुरू हो जायेंगे और 2 महीने से कम समय में आप पूरी तरह से ठीक हो जायेंगे
तो इस प्राक्रतिक नुस्खे को अजमाने में जरा भी संकोच न करें और इस असहनीय दर्द से छुटकारा पायें| ये एक बहुत हे आसान औषधि है इसे रात को सोने से पहले खाए |

सामग्री : 
5 सूखे अलुबुखरे
1 सुखी खुबानी
1 सुखी अंजीर
सुखी अंजीर :
इस में फाइबर होता है जो हमारे पाचन तन्त्र को मज़बूत करता है और दिल को सेहतमंद रखने में मदद करता है |फाइबर से कब्ज़ भी ठीक होती है| ये फल कई खनिज पदार्थो से भरपूर होता है जैसे के magnesium, iron, calcium, और potassium. ये खनिज हडिओं की मजबूती के लिए ज़रूरी होते हैं साथ ही प्रतिरोधक क्षमता और चमडी के लिए भी फायदेमंद होता है|अंजीर शरीर से हानिकारक एस्ट्रोजीन को कुदरती तौर  से निकालने  में मदद करता है| शरीर में एस्ट्रोजिन की अधिक  मात्रा कई समस्याओं को उत्पन करती है जैसे केसर दर्द, गर्भाशय और ब्रेस्ट केन्सर  भी हो सकता है|
सुखी खुबानी: 
 फायबर का बहुत ही अच्छा स्रोत है| खुबानी में पाए जाने वाले एंटी ओक्सीडेंट्स  हमारे शरीर में प्रतिरोधक क्षमता , सेल की वृद्धि और आँखों के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं| Non-heme iron शरीर में लोह तत्व की कमी को पूरा करता है , जो के संसार में सबसे आम पाई जाने वाली समस्या है |
   सुखा आलूबुखारा : 

सूखे आलूबुखारा में पाए जाने वाले जैविक सक्रिय पदार्थ रेडियोथेरेपी या अन्य विकिरण आवरण से होने वाले अस्थि क्षति को रोकने में प्रभावी होते हैं सूखा आलूबुखारा विकिरण से हडिडयों की रक्षा करता है | फाइबर से भरपूर होने के कारण ये कब्ज से छुटकारा दिलाता है और पाचन शक्ति बढ़ता है |

विशिष्ट परामर्श-  

संधिवात,कमरदर्द,गठिया, साईटिका ,घुटनो का दर्द आदि वात जन्य रोगों में जड़ी - बूटी निर्मित हर्बल औषधि ही अधिकतम प्रभावकारी सिद्ध होती है| रोग को जड़ से निर्मूलन करती है| हर्बल औषधि होने के बावजूद यह तुरंत असर चिकित्सा है| सैकड़ों वात रोग पीड़ित व्यक्ति इस औषधि से आरोग्य हुए हैं|  बिस्तर पकड़े पुराने रोगी भी दर्द मुक्त गतिशीलता हासिल करते हैं|औषधि के लिए वैध्य श्री दामोदर से 98267-95656 पर संपर्क कर सकते हैं| 




20.11.16

काली जीरी का चमत्कारिक त्रियोग




काली जीरी क्या है?
काली जीरी एक औषधीय पौधा होता है। यह देखने में या आकार छोटी होती है। यह स्वाद में थोड़ी तीखी और तेज होती है और इसमें जरा सा तीखा पन भी पाया जाता है। इसके पौधे का स्वाद कटू (कडवा) होता है। यह हमारे मन और मस्तिष्क को ज्यादा तीव्र (उत्तेजित) करती है। यह बहुत लाभकारी पौधा होता है।
यह काला जीरा से अलग होती है।
काली जीरी को किन किन नामों से जाना जाता है?
इसे आम भाषा में काली जीरी कहते है, लेकिन इसके अलग अलग नामों को जान लेना भी बहुत आवश्यक है।
अंग्रेजी में इसे black cumin seed कहा जाता है,
संस्कृत में कटुजीरक और अरण्यजीरक कहते हैं,
मराठी में कडूजीरें,
गुजराती भाषा में इसको कालीजीरी ही कहते हैं
लैटिन भाषा में वर्नोनिया एन्थेलर्मिटिका (Vernonia anthelmintika) कहा जाता है।
काली जीरी के क्या क्या लाभ है?
यह एक औषधीय पौधा है और बहुत सी बीमारियों को दूर करने में मदद करता है, इसके मुख्य उपयोग निम्न है:
शुगर (डायबिटीज) पर नियंत्रण में उपयोगी
बालों की देखभाल और वृद्धि में लाभ
चरम रोगों में फायदेमंद
कोलेस्ट्रॉल घटाने में मदद करता है
पाचन शक्ति बढ़ाता है
पेट के कीड़े नष्ट करने में कारगर
खून साफ़ करती है
सफेद दाग (कुष्ठ) में भी लाभप्रद
पेशाब सम्बन्धी समस्याओं में फायदा करती है
गर्भाशय के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद
मेथी और अजवाइन के साथ लेने पर वजन घटाने में उपयोगी
जहरीले जीवों के काटने या डंक लगने पर इसका उपयोग बहुत अच्छा होता है।
आम के अचार में भी प्रयोग किया जाता है।
कुछ सब्जियों में छौंक के साथ भी प्रयोग किया जाता है।
जिन लोगों को कब्ज या पेट वाली बीमारियाँ है। उनके लिए तो यह रामबाण औषधि का काम करती है। पेट की बीमारियों के लिए इसमें दो औषधि और मिलाकर प्रयोग किया जाता है। इन तीनों औषधियों को त्रियोग भी कहा जाता है। तीनों औषधियों में मैथीदाना, जमाण और काली जीरी का सही अनुपात होता है। यह तीनों चीजें आपको आराम से मिल सकती हैं। और तीनों ही औषधीय गुणों से भरपूर हैं।

वजन घटाने के लिए काली जीरी का प्रयोग-
निम्न सामग्री लें 

20 ग्राम काली जीरी
40 ग्राम अजवायन (carom seeds)
100 ग्राम मेथी (fenugreek seeds)
इन सब को अलग अलग हल्का भून लें
सबको  मिलाकर "हवा बंद डब्बे" में रखें
एक चम्मच रोज सोने से पहले हल्के गुनगुने पानी के साथ सेवन करें
यह महिलाओं के लिए वजन घटाने का एक विशेष उपाय है, इस पाउडर से पाचन में भी सुधार होता है।
इस औषधि के अन्य भी बहुत लाभ हैं।
जैसे-: गठिया, हड्डियां, आँखों की रोशनी, बालों का विकास और शरीर में रक्तसंचार उत्तेजित होता है। कफ (खासी) में आराम मिलता है। शरीर की रक्तवाहिनियां शुद्ध होंगी। स्त्रियों में होने वाली तकलीफें दूर होती है।

विशिष्ट परामर्श-  


संधिवात,कमरदर्द,गठिया, साईटिका ,घुटनो का दर्द आदि वात जन्य रोगों में जड़ी - बूटी निर्मित हर्बल औषधि ही अधिकतम प्रभावकारी सिद्ध होती है| रोग को जड़ से निर्मूलन करती है|   बिस्तर पकड़े पुराने रोगी भी दर्द मुक्त गतिशीलता हासिल करते हैं| बड़े  अस्पताल   मे  महंगे इलाज के  बावजूद   निराश रोगी   इस  औषधि से लाभान्वित हुए हैं|औषधि  के लिए वैध्य श्री दामोदर से 98267-95656 पर संपर्क कर सकते हैं| 






आर्थराइटिस(संधिवात),गठियावात की तुरंत असर हर्बल औषधि





19.11.16

दालचीनी वाला दूध पीने से होते है ये अद्भुत चमत्कारिक फायदे




-

• क्या आप अपनी दिनभर की थकान मिटा कर रात में आराम की नींद सोना चाहते हैं? या फिर आपको कैंसर और मधुमेह जैसी घातक बीमारियों से सदा के लिये बचाव चाहिये? तो ऐसे में आपके लिये दालचीनी वाला दूध काफी फायदेमंद हो सकता है।
• जैसा की आप सभी जानते हैं कि रात में गरम दूध पीने से नींद काफी अच्छे से आती है। ऐसा इसलिये क्योंकि इसमें अमीनो एसिड होता है जो आपके दिमाग को शांत कर के नींद दिलाता है। और अगर इसके साथ आप दालचीनी तथा शहद मिला दें, तो इसमें एंटी बैक्टीरियल गुण बढ़ जाते हैं, जो स्किन प्रॉब्लम और इंफेक्शन से लड़ने में सहायक हो जाती है। इसके अलावा यह दूध आपके दिमागी तनाव को दूर करने के साथ साथ मोटापा घटाने में भी मददगार है।


दालचीनी वाले दूध के फायदे -



* अच्छे पाचन के लिए :

 अगर आपकी पाचन क्रिया अच्छी नहीं है तो दालचीनी वाला दूध पीना आपके लिए बहुत फायदेमंद रहेगा। इसके साथ ही गैस की प्रॉब्लम में भी ये राहत देने का काम करता है।
 

*मधुमेह रोगियों के लिये फायदेमंद : 

कई अध्ययनों में इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि दालचीनी में कई ऐसे कंपाउंड पाए जाते हैं जो ब्लड शुगर को कंट्रोल करने में मदद करते हैं। दालचीनी वाला दूध खासतौर पर टाइप-2 डायबिटीज के मरीजों के लिए फायदेमंद होता है।




 

*गले की खराश और दर्द के लिये : 

दालचीनी गले के दर्द को ठीक करती है। दालचीनी वाला दूध बनाने के लिये एक पैन में दूध गरम करें, उसमें दालचीनी का एक छोटा टुकडा डालें और गैस को बंद कर दें। फिर इसमें शहद मिला कर छान कर पियें।


* खूबसूरत बालों और त्वचा के लिए

दालचीनी वाला दूध पीने से बालों और स्किन से जुड़ी लगभग हर समस्या दूर हो जाती है। इसका एंटी-बैक्टीरियल गुण स्किन और बालों को इंफेक्शन से सुरक्षित रखता है।


* अच्छी नींद के लिए : 

अगर आपको अच्छी नींद नहीं आती है तो आपको दालचीनी वाला दूध पीना चाहिये। सोने से पहले एक गिलास दालचीनी वाला दूध लें, इससे आपको अच्छी नींद आएगी।


 *मजबूत हड्डियों के लिये :

दालचीनी वाले दूध में शहद मिला कर पीने से हड्डियां मजबूत होती हैं। विशेषज्ञों की मानें तो इस दूध के नियमित सेवन से गठिया की समस्या नहीं होती है।


* कैंसर से बचाए : 

शहद और दालचीनी में पाया जाने वाला कैमिकल आपको सदा के लिये कैंसर से बचाएगा।


 *शरीर की इम्यूनिटी बढाए

नियमित दालचीनी वाला दूध पीने से शरीर की इम्यूनिटी बढ़ती है। यह दूध पुराने जमाने से ही बच्चों को पिलाया जाता था, जिससे उनकी शक्ती बढ़े।

दालचीनी वाला दूध बनाने की विधि :


 एक भगौन में दूध गरम करें, फिर उसमें दालचीनी का छोटा टुकड़ा डालें और गरम करें। फिर गैस बंद कर दें और दूध में शहद मिला कर उसे छान लें। फिर इसे पियें।


17.11.16

मक्खी, मच्छर, चींटी ,कॉकरोच भगाने के अद्भुत उपाय // Tips to Get Rid of Insects from Home




 मच्छर :
मच्छर भगाने के लिये कमरे मे नीम के तेल का दीपक सावधानी के साथ जलायें इसके अलावा ऑलआउट की खाली बोतल में भी नीम का तेल भरकर मशीन में लगाकर प्रयोग किया जा सकता है । जो कि पूरी तरह सुरक्षित है ।
 कॉकरोच :
खाली कॉलिन स्प्रे की बोटल में नहाने वाली साबुन का घोल भर लें । कॉकरोच दिखने पर उनके ऊपर इसका स्प्रे कर दें । साबुन का यह घोल कॉकरोच को मार देता है । रात के समय सोने से पहले वॉशबेसिन आदि के पाईप के पास भी इस घोल का अच्छी मात्रा में स्प्रे कर देना चाहिये ऐसा करने से कॉकरोच नाली के रास्ते घर में अंदर नही घुस पायेंगे।

 मक्खियाँ :
घर में उड़ने वाली मक्खियों से मुक्ति पाने के लिये नीम्बू का इस्तेमाल करना चाहिये । नीम्बू मक्खियों को दूर करने का बहुत कारगर उपाय है । घर में पोछा लगाते समय पानी में 2-3 नीम्बू का रस निचोड़ देना चाहिये । नीम्बू की महक से कई घण्टे तक मक्खियॉ दूर रहती हैं और घर में ताजगी का भी अहसास होता रहता है ।




 चींटी :
चींटी अगर घर में एक जगह बना लेती हैं तो जगह जगह से निकलने लगती हैं। चींटी के रास्ते बंद करने का सबसे अच्छा उपाय यह है कि उनके निकलने की जगह पर एक दो स्लाईस कड़वे खीरे के रख दें। कड़वे खीरे की महक से चींटी दूर भागती हैं और जब उनके निकलने की जगह पर ही यह स्लाईस रखा होगा तो वे निकलेंगी ही नहीं।बिल के मुहाने पर लौंग फँसा कर रख देने से चींटियॉ उस रास्ते का प्रयोग करना ही बंद कर देती हैं ।

 घरेलु कीटों के इंफेक्शन से बचाव :
घर से सभी तरह के इंफेक्शन को खत्म करने के लिये आम की सूखी टहनी पर कपूर और हल्दी पाउडर दालकर सुलगाना चाहिये। इस दौरान छोटे बच्चों को ध्यान से आग से दूर रखना चाहिये। यह प्रयोग किसी बड़े के द्वारा ही किया जाना चाहिये। लगभग 12 इंच लम्बी टहनी को जलाना पर्याप्त होता है ।
ये सरल उपाय अपनायेंगे तो निश्चित ही आप अपने घर से कॉकरोच, मक्खी, मच्छर आदि अनचाहे मेहमानों को दूर रख सकते हैं और उनकी विदाई हमेशा के लिए कर दे। एक बार आजमा कर जरूर देखें।




आर्थराइटिस(संधिवात),गठियावात की तुरंत असर हर्बल औषधि





15.11.16

भीगे चने खाने से होते है ये हैरान करने वाले फायदे


शरीर को सबसे ज्यादा पोषण काले चनों से मिलता है। काले चने अंकुरित होने चाहिए। क्योंकि इन अंकुरित चनों में सारे विटामिन्स और क्लोरोफिल के साथ फास्फोरस आदि मिनरल्स होते हैं जिन्हें खाने से शरीर को कोई बीमारी नहीं लगती है। काले चनों को रातभर भिगोकर रख लें और हर दिन सुबह दो मुट्ठी खाएं। कुछ ही दिनों में र्फक दिखने लगेगा।
 रातभर भिगे हुए चनों से पानी को अलग कर उसमें अदरक, जीरा और नमक को मिक्स कर खाने से कब्ज और पेट दर्द से राहत मिलती है।

शरीर की गंदगी साफ करनाकाला चना शरीर के अंदर की गंदगी को अच्छे से साफ करता है। जिससे डायबिटीज, एनीमिया आदि की परेशानियां दूर होती हैं। और यह बुखार आदि में भी राहत देता है।
डायबिटीज के मरीजों के लिए चना ताकतवर होता है। यह शरीर में ज्यादा मात्रा में ग्लूकोज को कम करता है जिससे डायबिटीज के मरीजों को फायदा मिलता है। इसलिए अंकुरित चनों को सेवन डायबिटीज के रोगियों को सुबह-सुबह करना चाहिए।
 शरीर की ताकत बढ़ाने के लिए अंकुरित चनों में नींबू, अदरक के टुकड़े, हल्का नमक और काली मिर्च डालकर सुबह नाश्ते में खाएं। आपको पूरे दिन की एनर्जी मिलेगी।
चने का सत्तूचने का सत्तू भी सेहत के लिए बेहद फायदेमंद औषघि है। शरीर की क्षमता और ताकत को बढ़ाने के लिए गर्मीयों में आप चने के सत्तू में नींबू और नमक मिलकार पी सकते हैं। यह भूख को भी शांत रखता है।
पथरी की समस्या में चनापथरी की समस्या अब आम हो गई है। दूषित पानी और दूषित खाना खाने से पथरी की समस्या बढ़ रही है। गाल ब्लैडर और किड़नी में पथरी की समस्या सबसे अधिक हो रही है। एैसे में रातभर भिगोए चनों में थोड़ा शहद मिलाकर रोज सेवन करें। नियमित इन चनों का सेवन करने से पथरी आसानी से निकल जाती है। इसके अलावा आप आटे और चने का सत्तू को मिलाकर बनी रोटियां भी खा सकते हो।

कफ दूर करेलंबे समय से चली आ रही कफ की परेशानी में भुने हुए चनों को रात में सोते समय अच्छे से चबाकर खाएं और इसके बाद दूध पी लें। यह कफ और सांस की नली से संबंधित रोगों को ठीक कर देता है।
चेहरे की चमक के लिए चनाचेहरे की रंगत को बढ़ाने के लिए नियमित अंकुरित चनों का सेवन करना चाहिए। साथ ही आप चने का फेस पैक भी घर पर बनाकर इस्तेमाल कर सकेत हो। चने के आटे में हल्दी मिलाकर चेहरे पर लगाने से त्वचा मुलायम होती है। महिलाओं को हफ्ते में कम से कम एक बार चना और गुड जरूर खाना चाहिए।




दाद खाज और खुजलीएक महीने तक चने के आटे की रोटी का सेवन करने से त्वचा की बीमारियां जैसे खुजली, दाद और खाज खत्म हो जाती हैं।
धातु पुष्ट :दस ग्राम शक्कर और दस ग्राम चने की भीगी हुई दाल को मिलाकर कम से कम एक महीने तक खाने से धातु पुष्ट होती है।
मूत्र संबंधी रोगमूत्र से संबंधित किसी भी रोग में भुने हुए चनों का सवेन करना चाहिए। इससे बार-बार पेशाब आने की दिक्कत दूर होती है। भुने हुए चनों में गुड मिलाकर खाने से यूरीन की किसी भी तरह समस्या में राहत मिलती है।
पुरूषों की कमजोरी दूर करनाअधिक काम और तनाव की वजह से पुरूषों में कमजोरी होने लगती है। एैसे में अंकुरित चना किसी वरदान से कम नहीं है। पुरूषों को अंकुरित चनों को चबा-चबाकर खाने से कई फायदे मिलते हैं। इससे पुरूषों की कमजोरी दूर होती है। भीगे हुए चनों के पानी के साथ शहद मिलाकर पीने से पौरूषत्व बढ़ता है। और नपुंसकता दूर होती है।
पीलिया के रोग में : पीलिया की बीमारी में चने की 100 ग्राम दाल में दो गिलास पानी डालकर अच्छे से चनों को कुछ घंटों के लिए भिगो लें और दाल से पानी को अलग कर लें अब उस दाल में 20 ग्राम गुड़ मिलाकर 4 से 5 दिन तक रोगी को देते रहें। पीलिया से लाभ जरूरी मिलेगा।
कुष्ठ रोग में चनाकुष्ठ रोग से ग्रसित इंसान यदि तीन साल तक अंकुरित चने खाएं। तो वह पूरी तरह से ठीक हो सकता है।
गर्भवती महिला को यदि मितली या उल्टी की समस्या बार-बार होती हो। तो उसे चने का सत्तू पिलाना चाहिए। अस्थमा रोग मेंअस्थमा से पीडि़त इंसान को चने के आटे का हलवा खाना चाहिए। इस उपाय से अस्थमा रोग ठीक होता है।
भीगे चनेयह जरूरी नहीं कि आपको केवल अंकुरित चने ही खाने हैं। रात को चनों को पानी में भिगों लें और सुबह व्यायाम करने के बाद इन भीगे हुए चनों को चबाकर खाएं। और बाद में चनों का बचा हुआ पानी भी पी लें। इस उपाय से आपको ताकत व बल मिलता है।
सौदर्य के लिए चनानियमित रूप से यदि आप अंकुरित चनों का सेवन करते हो तो आप के उपर बुढ़ापा बहुत ही देर में आएगा। अंकुरित चनों में इंसान को ताकत देने की शक्ति होती है जिससे इंसान बूढ़ा नहीं होता है।और वह चुस्त रहता है।
चना सेवन किन लोगों को नहीं करना है वे लोग जिन्हें अफरा व गैस की समस्या होती हो वेअंकुरित चनों का सेवन करने से बचें।

त्वचा की समस्या मेंचने के आटे का नियमित रूप से सेवन करने से थोड़े ही दिनों में खाज, खुजली और दाद जैसी त्वचा से संबंधित रोग ठीक हो जाते हैं।
:



रात को सोने से पहले गर्म दूध के साथ भुने हुए चने खाने से सांस की नली व कफ से संबंधित रोग ठीक होते हैं।
शहद को चने में मिलाकर पीने से नपुंसकता खत्म होती है।
खून साफ और त्वचा की रंगत को सुधारता है चना।
रूमाल व कपड़े में गर्म चने बांधकर सूंघने से सर्दि जुकाम में राहत मिलती है।
सुबह के व्यायाम के बाद यदि आप भीगे हुए चने खाते हैं तो इससे आपकी सेहत हमेशा स्वस्थ रहेगी।
चना सेहत और सौंदर्य को बढ़ाता है। इसलिए जो लोग निमित रूप से अंकुरित चने को खाते हैं वे कभी बीमार नहीं पड़ते हैं साथ ही साथ उनकी त्वचा के रंग में भी निखार आता है।
चने को आप खाने में जरूर इस्तेमाल करें। यह किसी दवा से कम नहीं है। चने खाने से एक नहीं कई फायदे मिलते हैं तो क्यों नहीं अंकुरित चनों का इस्तेमाल रोज किया जा सकता है। वैदिक वाटिका का प्रयास है आपके स्वास्थ के लिए हर जरूरी चीज को आप तक पहुंचाना जो आप और आपके परिवार के लिए जरूरी और फायदेमंद है।